Mahashivratri 2023: हमारी भारतीय संस्कृति की अपनी अनूठी विशेषता है कि यहां प्रत्येक महीने में किसी न किसी पर्व को मनाने का विवरण देखने को मिलता है। इसी कारण हमारे देश को त्योहारों का देश कहा जाता है। यहां मुख्य रुप से मकर संक्रान्ति, होली, बैशाखी, नवरात्रि, दशहरा, दीपावली, ईद, क्रिसमस आदि त्योहारों की अद्भुत छटा देखने को मिलती है। इन त्योहारों में महाशिव रात्रि का पर्व अपने आप में कल्याण कारी मार्ग प्रशस्त करता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार महाशिवरात्रि का त्योहार प्रतिवर्ष फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी को मनाया जाता है। सामान्यतया प्रत्येक मास में शिवरात्रि आती है, लेकिन यह पर्व महाशिवरात्रि के रुप में उद्घाटित होने के कारण इसका महत्व अधिक बड़ जाता है। शिव भगवान को कल्याण, मंगल, महादेव, नीलकंठ, भोले बाबा आदि अनेक नामों से भी जाना जाता है। शिव भगवान की आराधना करने से कल्याण कारी भावना का प्रकटीकरण होता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों का धरती पर प्रकाट्य हुआ था।
शिव भगवान को अत्यंत दयालू माना जाता है। सामान्य नाम का उच्चारण करने मात्र से भक्तों का कल्याण कर देते हैं। शिव में शि ध्वनि का अर्थ ऊर्जा का प्रतीक है। इस आधार पर केवल शिव का ही प्रयोग करेंगें तो असन्तुलन की स्थिति आ जाती है। दूसरा वह शब्द है जिसका अर्थ नाम से लिया गया है। जो प्रवीणता के भाव को उजागर करता है।इस प्रकार शिव नाम में एक शब्द ऊर्जा देता है। दूसरा उसे नियन्त्रित करता है।
विद्येश्वर में शिव भगवान की महिमा का गुणगान इस प्रकार से किया गया है कि वे धन्य हैं और कृतार्थ हैं, उन्हीं का शरीर धारण करना भी सफल है, उन्होंने ही अपने कुल का उद्धार कर लिया है, जो शिव की उपासना करते हैं। शिव का नाम विभूति, भस्म, तथा रुद्राक्ष ये तीनों त्रिवेणी के समान परम पुण्य काल वाले माने गए हैं। भगवान शिव का नाम गंगा है। विभूति यमुना मानी गई है। रुद्राक्ष को सरस्वती कहा गया है। इन तीनों की संयुक्त त्रिवेणी समस्त पापों का नाश करने वाली है।
इस बार महाशिवरात्रि की तारीख को लेकर लोगों में बड़ा कन्फ्यूजन है। कुछ लोग 18 फरवरी की महाशिवरात्रि बता रहे हैं तो कुछ 19 फरवरी की। देखें महाशिवरात्रि का पर्व किस दिन मनाया जाएगा।
कब मनाई जाएगी महाशिवरात्रि?
हिंदू पंचांग के अनुसार, महाशिवरात्रि का त्योहार शनिवार, 18 फरवरी को रात 8 बजकर 03 मिनट पर प्रारंभ होगा और इसका समापन रविवार, 19 फरवरी को शाम 04 बजकर 19 मिनट पर होगा। चूंकि महाशिवरात्रि की पूजा निशिता काल में की जाती है, इसलिए यह त्योहार 18 फरवरी को ही मनाना उचित होगा। इस वर्ष महाशिव रात्रि पर विशिष्ट व प्रभाव कारी संयोग बन रहा है। शिव रात्रि का पर्व शनिवार को है। शनि देव शिव भगवान के बड़े भक्त माने जाते हैं। पूरे 30 साल बाद शनि कुम्भ राशि में विचरण कर रहे हैं। इस तरह की स्थिति आने पर शनि सूर्य महाशिव रात्रि पर कुम्भ राशि के साथ रहेंगे। शुक्र ग्रह अपनी उच्च राशि में विराजमान होंगे। इस दिन प्रदोष व्रत का भी संयोग बन रहा है।
शिव रात्रि के विषय में यह माना जाता है कि इस दिन भगवान शंकर रूद्र के रूप में प्रजापिता ब्रह्मा के शरीर से अवतरित हुए। इनका तीसरा नेत्र प्रलयकारी है। इस रुप में नृत्य करते हुए सृष्टि का नाश करते हैं। शिवरात्रि के दिन शिव शक्ति का भी परस्पर मिलन माना जाता है। भगवान शंकर भी इस रात्रि से असीम स्नेह करते हैं।
ईशान संहिता में कहा गया है फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि को आदिदेव भगवान शंकर करोड़ो सूर्य के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए। ज्योतिष शास्त्र के आधार पर फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चन्द्रमा सूर्य के समीप होता है। वही समय जीवन रुपी चन्द्रमा का शिव रुपी सूर्य के साथ योग मिलन होता है। इस पर्व पर शिव की पूजा करने से सम्पूर्ण मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। शिव भगवान को निराकार निर्गुण परम तत्व के रुप में माना जाता है। यही परम निर्गुण स्वरुप शिवरात्रि के दिन सगुण साकार रुप में अवतरित हो जाता है। यही अवतरण की रात्रि महा शिव रात्रि कहलाती है। शिव भगवान ने इस दिन कालकूट नामक बिष पीकर के राक्षसों को समुद्र मंथन में निकले हुए अमृत से दूर रखकर देवताओं को अभय प्रदान किया।
महाशिव रात्रि का रात में मनाने का कारण यह भी है कि रात्रि को तमोगुण का प्रतीक माना जाता है। शिव शक्ति का यह स्वरूप है जिसके सामने कोई भी वस्तु नहीं टिक सकती हैं। यह रात्रि मनुष्य के अन्दर की सम्पूर्ण तामसिक बृत्तियों को समाप्त कर देती है। रात्रि का समय ही शिव भक्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। व्रत में शिव जी पूजा करने के लिए फल, पुष्प, गन्ध, बेल पत्र, धतूरा, धूप, दीप, नैवेद्य की आवश्यक्ता होती है। दूध, दही, घी, शहद और चीनी मिलाकर पंचामृत से शिव भगवान का स्नान कर जलधारा से अभिषेक करना चाहिए। ग्यारह सौ बार ऊं नमः शिबाय का जप करके ही भगवान शिव की आरती तथा परिक्रमा करनी चाहिए। अन्त में निश्चल हृदय से इस प्रकार प्रार्थना करनी चाहिए-हे महादेव मैंने जो व्रत लिया, वह परम व्रत पूर्ण हुआ। अतः अब उसका बिसर्जन करता हूं। हे देबेश्वर आप मुझ पर कृपा करके संतुष्ट हों।
महाशिवरात्रि की पूजन विधि
महाशिवरात्रि पर सूर्योदय से पहले उठें और स्नान करने के बाद साफ-सुथरे कपड़े पहनकर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव की पूजा करें। गन्ने के रस, कच्चे दूध या शुद्ध घी से शिवलिंग का अभिषेक करें। फिर महादेव को बेलपत्र, भांग, धतूरा, जायफल, कमल गट्टे, फल, फूल, मिठाई, मीठा पान, इत्र आदि अर्पित करें। इसके बाद वहीं खड़े होकर शिव चालीसा का पाठ करें और शिव आरती गाएं।
बेलपत्र का महत्व
बेलपत्र की तीन पत्तियों वाला गुच्छा भगवान शिव को चढ़ाया जाता है और माना जाता है कि इसके मूलभाग में सभी तीर्थों का वास होता है। मान्यता है कि जिस घर में बेल का वृक्ष होता है वहां धन-धान्य की कभी कोई कमी नहीं होती। जो भक्त भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाता है उसके सारे दुख दूर हो जाते हैं और भोलेनाथ उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं। महाशिव रात्रि का व्रत लेने से व्यक्ति सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है। जीवन में सुख समृद्धि की बृद्वि होने लगती है। अन्धकार समाप्त हो जाता है। सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
महाशिवरात्रि के दिन क्या न करें
महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर भूलकर भी तुलसी दल यानी तुलसी का पत्ता न चढ़ाएं। इसमें अनाज या अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। आप फलाहार ये व्रत रख सकते हैं। शिवजी की पूजा में केतकी और चंपा फूल ना चढ़ाएं। शिवजी को टूटे चावल भी अर्पित न करें। शिव या शिवलिंग को सिंदूर भी नहीं चढ़ाना चाहिए।
लेखक: अखिलेश चन्द्र चमोला