शरद पूर्णिमा : एक ऐसा पर्व जिसमें उत्सव है, चांदनी का बिखरा हुआ यौवन है। आसमान में चारों और रोशनी का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। इसके साथ कई धार्मिक परंपराएं भी हैं। इस रात खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखने की सदियों पुरानी परंपरा रही है। मान्यता है कि इस रात खीर में अमृत बरसता है। हम बात कर रहे हैं शरद पूर्णिमा की। वैसे तो हर महीने पूर्णिमा आती है लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व धार्मिक और परंपरा की दृष्टि से बहुत अधिक है।
आज पूरे देश में शरद पूर्णिमा का उत्सव धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। हिंदू पंचांग के अनुसार आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा मनाई जाती है। इस दिन चांद की चांदनी पृथ्वी पर अमृत के समान होती है और चंद्रमा पृथ्वी के काफी करीब आ जाता है। जिससे चांद का आकार बहुत बढ़ा दिखाई देता है। इसके अलावा शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी की विशेष आराधना की जाती है। बता दें कि आज ही के दिन महर्षि वाल्मीकि की जयंती भी मनाई जाती है। महर्षि वाल्मीकि के द्वारा ही हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण महाकाव्य रामायण की रचना की गई थी।
शरद पूर्णिमा की रात में चंद्रमा सोलह कलाओं में चमकता है और पूरी रात अपनी धवल चांदनी से पृथ्वी को रोशन करता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की शीतल चांदनी के साथ ही अमृत वर्षा होती है। इस तिथि को देश के अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है। इसे कौमुदी उत्सव, कुमार उत्सव, शरदोत्सव, रास पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा और कमला पूर्णिमा भी कहते हैं। शारदीय नवरात्रों के समाप्त होने पर शरद पूर्णिमा की रात को मां लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और धर्म-कर्म के काम में लगे लोगों को आशीर्वाद देती हैं। इस रात से शीत ऋतु का आरंभ भी होता है।
मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा में चंद्रमा अपनी किरणों के माध्यम से अमृत गिराते हैं। लंका नरेश रावण शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा से निकलने वाली किरणों को दर्पण के माध्यम से नाभि में ग्रहण करता था। शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा की तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण सभी गोपियों संग वृंदावन में महारास लीला रचाते हैं। इस कारण से शरद पूर्णिमा पर वृंदावन में विशेष आयोजन होता है। इसलिए इस महीने की पूर्णिमा का महत्व और भी बढ़ जाता है।
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि रविवार सुबह 3 बजकर 41 मिनट से शुरू होगी। ये तिथि अगले दिन 10 अक्टूबर को सुबह 2 बजकर 25 मिनट पर समाप्त होगी। ध्रुव योग शाम 6 बजकर 36 मिनट तक रहेगा। सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 6.31 बजे से शाम 4.21 बजे तक रहेगा। ज्योतिषियों के अनुसार शरद पूर्णिमा पर गुरु अपनी ही राशि मीन में चंद्रमा के साथ रहेंगे।
आज शरद पूर्णिमा पर युति से गजकेसरी नाम का बड़ा शुभ योग बन रहा है। बुध ग्रह अपनी ही राशि में सूर्य के साथ है। इससे बुद्धादित्य योग बनेगा। इस पर्व पर शनि भी स्व राशि में रहेंगे। इससे शश योग रहेगा। तिथि, वार और नक्षत्र से मिलकर सर्वार्थसिद्धि, ध्रुव और स्थिर नाम के शुभ योग बनेंगे।
शरद पूर्णिमा के दिन खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखा जाता है
इस दिन खीर बनाकर उसे चंद्रमा की रोशनी में रखा जाए और अगले दिन पूरे परिवार में बांट दिया जाए तो इससे किसी भी प्रकार का रोग नहीं लगता है। साथ ही मिट्टी के कलश या करवे में पानी भरकर छत पर रख दें और अगले दिन इसे पानी में मिलाकर स्नान करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है। शरद पूर्णिमा की पूरी रात जागकर मां लक्ष्मी और विष्णु भगवान की पूजा करने का खास महत्व बताया गया है।
पौराणिक मान्यतओं के अनुसार माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था इसीलिए देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है। नारद पुराण के अनुसार शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में माता लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर सवार होकर अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए निशीथ काल में पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और देखती हैं कि कौन जाग रहा है। इस कारण से इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहते हैं। शरद पूर्णिमा के दिन आपने बहुत से लोगों को छत पर खीर रखते हुए देखा होगा।
कहा जाता है इस दिन आसमान से अमृत की वर्षा होती है। ऐसे में जो भी इस रात चंद्रमा के नीचे रखकर खीर खाता है उसे किसी भी प्रकार की बीमारी नहीं होती है। कई पौराणिक कथाओं में भी शरद पूर्णिमा के दिन खीर खाने के प्रचलन के बारे में बताया गया है। मान्यता है कि 3-4 घंटे तक खीर पर जब चन्द्रमा की किरणें पड़ती है तो यही खीर अमृत तुल्य हो जाती है, जिसको प्रसाद रूप में ग्रहण करने से व्यक्ति वर्ष भर निरोग रहता है।
शंभू नाथ गौतम