Pitru Paksha 2023: आत्मा को अजर अमर मानना भारतीय संस्कृति की अदभुत व अनूठी विशेषता है। गीता में इस बात का उद्घघोष किया गया है कि जिस प्रकार से मनुष्य वस्त्रों को पुराने होने पर उन्हें बदलकर नवीन वस्त्र धारण करता है, उसी प्रकार आत्मा भी शरीर के जीर्ण शीर्ण होने पर नवीन शरीर में रुपान्तरित हो जाती है। इस प्रकार से आत्मा की मृत्यु नहीं होती है। यदि आत्मा अतृप्त रह जाती है, तो उसे तृप्त करना बहुत जरूरी है। इसी कारण से 12 मासों में अश्विन मास को पितरों की तृप्ति के लिये बडा ही शुभ माना जाता है।
जब सूर्य नारायण कन्या राशि में विचरण करते हैं,तब पितृ लोक पृथ्वी के सबसे निकट आ जाता है। श्राद्ध आश्विन कृष्ण पक्ष में होने का कारण यह भी है कि सूर्य भगवान अपनी मित्र राशि कन्या जिसका स्वामी बुध है, और बुध के स्वामी नारायण हैं। इसलिये नारायण से नारायण का मिलन इस पक्ष में होता है, नारायण मोक्ष के भी कारक हैं। इस कारण आश्विन कृष्ण पक्ष पितृ पक्ष के लिये महत्वपूर्ण है। पितरों से सम्बन्धित कार्य करने से पित्रो को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितृ पक्ष भाद्र मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिधि से शुरु हो कर आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक रहता है। इस वर्ष श्राद्ध 29 सितम्बर से शुरु होकर 14 अक्टूबर तक हैं। इस दिन पितरों का विसृजन किया जायेगा।
क्यों करते हैं श्राद्ध
श्राद्ध में श्रद्वा का होना बहुत ही जरुरी है। पितरों की संतुष्टि के लिये श्रृद्वा पूर्वक किये जाने वाले तर्पण ब्राह्मण भोजन दान आदि कर्मो को श्राद्ध कहा जाता है। शास्त्रों में श्राद्ध को पितृ यज्ञ भी कहा गया है। श्राद्ध करने से पितृ दोष व पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती है। मार्केन्डेय पुराण में कहा गया है कि श्राद्ध करने से पितृ संतुष्ट हो जाते हैं तो श्राद्ध कर्ता को दीर्घायू, संतति धन विद्या तथा सभी प्रकार के सुख और मरने के बाद स्वर्ग एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितरों के निमित्त तिथि के अनुसार तर्पर्ण देने से पूरे परिवार की अदभुत कल्याणकारी प्रगति होती है।
श्राद्ध के विषय में महाभारत में एक कथा भी है। एक बार कर्ण घायल होकर अर्द्ध मृत्यू को प्राप्त हुये, स्वर्ग की प्राप्ति होने पर उन्हें भूख प्यास का अनुभव हु आ, तो उन्होने भोजन, पानी मांगा, तब यमराज ने उन्हें खाने पीने के लिये सोना दिया और कहा कि तुमने जीवन पर्यन्त सोने का दान किया है, इस कारण से सोने का ही उपभोग करो। तब कर्ण ने आश्विन कृष्घ पक्ष को पन्द्रह दिन पृथ्वी लोक में आकर अन्न जल का दान किया। तब उन्हें वहां भोजन व जल की प्राप्ति हुयी। कहने का आशय यह है कि जीवन में अन्न जल का दान करना बहुत ही जरूरी है। श्राद्ध के दौरान यदि कोई पशु या अतिथि घर में आये तो इनका बडे ही श्रद्वा व प्रेम पूर्वक से सम्मान करना चाहिये। क्योंकि कभी-कभी पितृ दूसरे शरीर में भी प्रविष्ट हो जाते हैं।
श्राद्ध की पूजा दोपहर के समय बडी ही शुभ मानी जाती है। श्राद्ध में संकल्प लेने के बाद पांच पत्तों में भोजन सामग्री रखनी चाहिये। गाय पृथ्वी तत्व का प्रतीक है इसलिए पहले पत्ते में गाय को, कुत्ता जल तत्त्व का प्रतीक है इसलिए दूसरे में कुत्ते के लिये, कौवा वायु तत्व का प्रतीक है इसलिए तीसरे में कौवे के लिये, देवता आकाश तत्व का प्रतीक हैं इसलिए चौथे में देवताओं के लिये, चींटी अग्नि तत्व का प्रतीक है इसलिए पांचवें में छोटी-छोटी चींटियों के लिये, इसके बाद ब्राह्मण को भोजन दक्षिणा देकर विदा करना चाहिये। इस प्रकार इन पांचों को आहार देकर हम पंच तत्वों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। केवल गाय में ही एक साथ पांच तत्व पाए जाते हैं। इसलिए पितृ पक्ष में गाय की सेवा विशेष फलदाई होती है।
ब्रह्म पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि श्राद्ध न करने वाले ब्यक्ति को पितृ शाप देते हैं। शाप के कारण वह वंशहीन हो जाता है। जीवन में निरन्तर कष्ट की स्थिति बनी रहती है। यदि आर्थिक स्थिति ठीक नही है तो इसमें गरीब ब्यक्ति को भोजन कराने या गाय माता को हरी घास खिलाने से भी श्राद्ध के महात्म्य का फल मिल जाता है।
कौन-कौन कर सकता है तर्पण, पिंडदान?
शास्त्रों के अनुसार पितृगणों का श्राद्ध कर्म करने के लिए वर्ष में 96 अवसर मिलते हैं। साल के 12 माह में 12 अमावस्या तिथि को भी श्राद्ध किया जा सकता है। श्राद्ध कर्म करने से तीन पीढ़ियों के पूर्वजों को तर्पण किया जा सकता है। श्राद्ध तीन पीढ़ियों तक होता है। श्राद्ध पुत्र, पोता, भतीजा या भांजा करते हैं। प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथों में से एक गरुड़ पुराण के अनुसार जिस घर में पुरुष सदस्य नहीं होते हैं उस घर की महिलाएं श्राद्ध कर्म और पिंडदान कर सकती हैं। पितृ पक्ष में सभी तिथियों का अलग-अलग महत्व है। जिस व्यक्ति की मृत्यु जिस तिथि पर होती है, पितृ पक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध कर्म किए जाते हैं।
श्राद्ध की तिथियां
- 29 सितम्बर-प्रतिपदा श्राद्ध
- 30 सितम्बर-द्वितीय श्राद्ध
- 1 अक्तूबर -तीसरा श्राद्ध
- 2 अक्तूबर- चौथा श्राद्ध
- 3 अक्तूबर- पांचवां श्राद्ध
- 4 अक्तूबर- छठा श्राद्ध
- 5 अक्तूबर-सातवां श्राद्ध
- 6 अक्तूबर -आठवां श्राद्ध
- 7 अक्तूबर- नवां श्राद्ध
- 8 अक्तूबर -दसवां श्राद्ध
- 9 और 10 अक्तूबर ग्यारहवां श्राद्ध
- 11 अक्तूबर-द्वादश श्राद्ध
- 12 अक्तूबर- त्रयोदशी श्राद्ध
- 13 अक्तूबर- चतुर्दशी श्राद्ध
- 14 सर्व पितृ श्राद्ध -अमावस्या पूरे दिन
(लेखक: अखिलेश चन्द्र चमोला)