Shardiya Navratri 2024: हमारी भारतीय संस्कृति सभी संस्कृतियों में अनुपम तथा बेजोड़ मानी जाती है। यह अपने आप में विशिष्ट तथा प्रभावकारी दृष्टिगोचर होती है। इस अदभुत संस्कृत के कारण भारतवर्ष की गरिमा जगतगुरु के रूप में रही है। यहां नारी शक्ति को सर्वोपरि महत्व दिया जाता रहा है। इसी आधार पर मनुस्मृति में इस सत्यता को इस प्रकार से उद्घाटित किया गया है–यात्र नार्येस्तु पुजयन्ते रमन्ते तत्र देवता,,,, अर्थात् जिस कुल में नारियों की पूजा अर्थात् सत्कार होता है उस कुल में दिव्य भोग और उतम संतान होते हैं और जिस कुल स्त्रियों की पूजा नहीं होती । वहाँ सब प्रकार की क्रिया निष्फल होती है। जहाँ नारियों की पूजा होती है ‘ वहां देवता भी निवास करते हैं।
जब हम इतिहास के पन्नों पर नजर डालते हैं ‘ तो नारी की गरिमा प्राचीन काल से ही देखने को मिलती है । प्राचीन साहित्य में गार्गी का स्थान सर्वोपरि था। जिसने अपनी बुद्धि और ज्ञान से याज्ञवल्क्य ऋषि को चुनौती देकर पराजित किया। मन्डन मिश्र की पत्नी भारती ने भी शंकराचार्य को शास्तार्थ में पराजित किया । वास्तव में सही अर्थों में चिन्तन किया जाय तो नारी नर से बढ़ कर है। नारी मनुष्य के जीवन में कई रूपों में प्रकटित होती है। इसी कारण हमारी संस्कृति में नारी को देवी का रूप माना जाता है। इसका साक्षात प्रमाण. ‘ नवरात्री का त्योहार. माना जाता है। नव रात्रि पूजा के आठवें व नौवें दिन कन्यायोंका पूजन कर उन्हें भोजन कराने व यथोचित उपहार देने की परम्परा रही है। जीवन के विभिन्न रूपो में नारी ही जीवन . की .सच्ची मार्गदर्शिका होती है। माँ ही जीवन का .केन्द्र बिन्दु और आधार होती है। नाँ के बिता जीवन की कल्पना नहीं कर सकते। नाँ .बच्चे को नौ मास गर्भ में धारणकरके अनेक प्रकार का कष्ट सहत करती है । इसी कारण माँ को सर्व श्रेष्ठ स्थान दिया गया है। जिसका स्मरण करने मात्र से ही सब प्रकार के दुः खों से मुक्ति मिल जाती है। यही कारण है यहाँ गंगा माता ‘ गो माता पृथ्वी माता कहकर उस निष्ठा को बड़ी श्रद्धा के साथ सम्बोधित किया जाता है। नवरात्रि का तोहार इसी शक्ति का प्रतीक है।
नवरात्रि का अर्थ है नौ दिन और नौ रात्रि तक एकाप्रचित्त होकर माँ की आराधाना में लीन होकर सम्पूर्ण भाव से जप तप करता । पूरे वर्ष में चैत्र आषाढ़ अश्विन एवं माघ मास मे शुक्ल पक्ष के प्रथम नौ दिन दुर्गा माँ की पूजा परम शुभ मानी जाती है। इन चारों महिता महीनों में चैत माह वसन्तीय एवं आश्विन माह में शारदीय नवरात्रिप्रमुख विशिष्ट माने जाते हैं ।असर एवं माघ मास के नवरात्रि .गुप्त नवरात्रि के नाम से जाने जाते हैं ।इन सभी नवरात्रों मेंमां भगवती की पूजादुर्गा सप्तशती के पाठो से की जाती है। ऋग्वेद में कहां गया है -मां भगवती . ही .महत्वपूर्ण शक्ति है। उन्हीं से संपूर्ण विश्व का संचालन होता है। उनके अतिरिक्त कोई दूसरी शक्ति नहीं है।
इस वर्ष यह पुनीत त्यौहार 3 अक्टूबर से 12 अक्टूबर तक है । तृतीय नवरात्रिकितनी बड़ी हुई है6 7 अक्टूबरदोनों तिथियां मेंमां कुष्मांडा देवी की पूजा होगी ।12 अक्टूबर को विजयदशमी का पर मनाया जाएगा ।नवरात्रि गुरुवार से शुरू होने के कारणमां भगवती .का आगमन .पालकी पर होगा ।तिथि बढ़ाने के कारणनवरात्रि का पूजन 10 दिन तक होगा ।ईश्वर से नवरात्रि मेंस्वार्थ सदैव बना रहा है ‘ ।रितिका बढ़ाना भी अपने आप में सुरता का प्रतीक माना जाता है। घटस्थापना 3 अक्टूबर को 6:25 से 8:45 तक। अभिजीत मुहूर्त दिन में 11:52 से 12:59 तक सुरता की योग को दर्शा रहा है। देवी भागवत पुराण में मां दुर्गा के नाम का वर्णन इस प्रकार से देखने को मिलता है-प्रथम शैलपुत्री च . द्वितीयम .ब्रह्मचारिणी। तृतीयम चन्द्र घटे ति कुष्माण्डे ति चतुर्थक॥ पंचम स्कन्दमाते ति षष्टम कात्या यती ति च । सप्तम कालराति ति यहा गौरिति चाष्टम ” नवमं सिद्धिदात्री च नव दुर्गा प्रकीर्तिता॥
नवरात्रि परनिम्न बातों काध्यान रखनाबहुत जरूरी होता है-
- मां के नौ रूपों की पूजा विशेष तरीके सेकरें करें,जिस दिनजिस रूप का दिन हैउसे दिन उसे रूप का मंत्र वह ध्यान करें,
- नवरात्रि किस समयसुबह 8:00 बजे से पहले स्नान कर देना चाहिए,
- 9 दिन तक नमक का सेवन न करें,
- नवरात्रि के 9 दिन तक ज्योति जलाएं,
- नवरात्रि की शुद्ध दिनों में घर में जो भी भोजन बनउसे सबसे पहलेमां को भोग लगाना चाहिए,
- नवरात्रि के दौरान सत्तू खाना ही खाएं,
- अखंड ज्योत जलाने परपूजा स्थान को खाली न छोड़ें,
- चमड़ी से निर्मित वस्तुओं का प्रत्यय करें,
- नवरात्रि के दौरान भोजन में लहसुन और प्याज का प्रयोग बिल्कुल ना करें,
- मांस मुद्रा का प्रयोग न करें,
- जमीन पर शयन,
- अनावश्यक वार्ताल्प्स बच्चे,
- मन में वास्तिवक विचार नालाएं,
- दुर्गा सप्तशती नामक ग्रंथ का नियमित श्रद्धा पूर्वक से पूजन करें,
- छोटी-छोटी कन्याओं कोभगवती का रूप मानकरप्रतिदिन शारदा भाव से भोजन, करायें
इस प्रकारनवरात्रि की शुभ सफरउपवास रखने सेशरीर को भी आराम मिल जाता है ।अच्छी सोच वह सकारात्मक विचारों का प्रकृति कारण हो जाता है ।मां अपनेभक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती है ।हृदय का शुद्धता वह सच्चा समर्पण बहुत जरूरी है। जब-जब देवताओं पर घर संकट आया तो उन्होंने भी 9 दुर्गा की आराधना कर उसे संकट से मुक्ति पाई है। किसी भी स्थिति मेंनिर्या पशु की बाली नहीं देनी चाहिए। कन्या पूजन करने से सभी वाइन बढ़ाएं दूर हो जाती हैं। जीवन के प्रति नवीन उत्साह का संचार पैदा होता है। संपूर्ण मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।
लेखक- अखिलेश चंद्र, चमोला, मां काली उपासक श्रीनगर गढ़वाल