हमारी भारतीय संस्कृति अपने आप में अनुपम व बेजोड़ है। समय-समय पर यहां त्योहारों की अद्भुत छटा देखने को मिलती है। इन त्योहारों में होली का त्योहार भी प्रमुख है। यह त्योहार परस्पर प्रेम व सौहार्द के भाव को उजागर करता है। इस त्योहार में सर्व धर्म समन्वय के दर्शन देखने को मिलते हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार यह पर्व नव वर्ष के शुभ सन्देश को भी उजागर करता है। इस पर्व में परस्पर एक-दूसरे पर अबीर, गुलाल व तरह तरह के रंग लगा कर खुशियों को प्रदर्शित किया जाता है, जो कि पुराने वैर वैमनस्य को त्यागकर मिल जुलकर रहने का सन्देश देता है। इस सन्दर्भ में इस पर्व को मेल व एकता का प्रतीक भी कहा जाता है।
इस वर्ष यह पुनीत पर्व 13,14 मार्च को मनाया जाएगा। 13 मार्च को होलिका दहन और 14 मार्च को गीली होली खेली जाएगी। इस पर्व के सन्दर्भ में अनेक प्रकार की हृदय स्पर्शी कहानियां देखने को मिलती हैं। पौराणिक कथाओं के आधार पर हिरण्यकश्यप बड़ा ही शक्तिशाली राजा था। वह अपने आप को ही भगवान मानता था। वह चाहता था कि हर कोई उसकी पूजा अर्चना करें। हिरण्यकश्यप का पुत्र था प्रह्लाद, जो भगवान विष्णु का परम भक्त था। प्रह्लाद ने हिरण्यकश्यप की पूजा करने से इंकार कर दिया और उसकी जगह पर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने लगा। जैसे ही हिरण्यकश्यप को इस बात का पता चला तो उसने प्रह्लाद को तरह-तरह की यातनाये देना शुरू कर दिया।
एक बार हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका ने मिलकर योजना बनाई कि वह प्रह्लाद के साथ चिता पर बैठेगी। होलिका को वरदान स्वरूप इस तरह का वस्त्र मिला हुआ था कि जिसको धारण करने से अग्नि का उस पर किसी तरह का प्रभाव नहीं पड़ सकता था। जैसे ही आग जली विष्णु भगवान की कृपा से वह कपड़ा होलिका से उड़कर प्रह्लाद के पास चला गया। इस तरह से प्रह्लाद की जान बच गई और होलिका आग में जल गयी। अब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को लोहे के लाल खम्भे पर बांध लिया और तरह तरह के प्रश्न किए। तेरा भगवान कहां है? भगवान प्रह्लाद से कहा कि सृष्टि के कण कण में मेरा भगवान है। इस खम्भे में भी मेरे भगवान निवास करते हैं। ऐसा सुनने पर हिरण्यकश्यप खम्भे पर जोर जोर से गदा से वार करने लगा। वार करने पर भगवान विष्णु खम्भे से अवतरित हो गये। सन्ध्या का समय था भगवान नरसिंह ने देहली पर बैठकर हिरण्यकश्यप का वध कर दिया। इस प्रकार अपने वरदान को भी बनाए रखा और दुष्ट पापी का भी संहार कर दिया।
हर प्रांत में होली को अनेकों नाम से जाना जाता है। पश्चिम बंगाल में बसन्तोत्सव, पंजाब में होला मोहल्ला, तमिलनाडु में कामन पेडिग्ई, हरियाणा में धुलैंडी, महाराष्ट्र में रंग पंचमी आदि इन सबमें नाम का अन्तर है, लेकिन समानता यह है कि अनेक रंगों का प्रयोग एक दूसरे को रंगाने के लिए किया जाता है। होली का त्योहार राधा कृष्ण के प्रेम का भी प्रतीक है। सभी भक्त जन राधा कृष्ण के प्रेम में डूब जाते हैं।
लेखक: अखिलेश चन्द्र चमोला
वरिष्ठ हिन्दी अध्यापक,
राजकीय इंटर कालेज सुमाडी
श्रीनगर गढ़वाल, उत्तराखंड