नवरात्रि की पुनीत पर्व पर माँ भगवती के नौ रूपों की पूजा की जाती है। इन नौ रूपों में सबसे विशिष्ट व प्रभावकारी रूप माँ काल रात्रि का माना जाता है। नवरात्रि में सिर्फ माँ के इस सातवें रूप का व्रत लेने मात्र से ही सम्पूर्ण नवरात्रि के व्रत के महात्म्य का फल मिल जाता है। माँ दुर्गा की सातवीं शक्ति का स्वरूप माँ कालरात्रि का है।
देवी भागवत पुराण में मॉ कालरात्रि के स्वरूप का वर्णन इस प्रकार से किया गया है – मां कालरात्रि का शरीर घने अंधकार की तरह एकदम काला है। जिस पर किसी तरह से दूसरा रंग अंकित नहीं किया जा सकता है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली मुन्डों की माला है। अंधकार को भी यह शक्ति नष्ट करती है। काल से भी भक्तों की रक्षा करती है। देवी के तीन नेत्र हैं। तीनों नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल है। सांसों से अग्नि निकलती रहती है। दाएं हाथ में वर मुद्रा रहती है, जो अपने भक्तों को वरदान देने के लिए हर समय तत्पर रहती है। बाई तरफ के ऊपर वाले हाथ में खडग है। जिससे भक्तों की रक्षा होती रहती है।
काल रात्रि का पूजन अघोर रात्रि में करना बड़ा ही शुभ माना जाता है। भक्तों को चाहिए कि इस पुनीत पर्व पर कम से कम 1100 बार इन मन्त्रो से मा कालरात्रि का जप करना चाहिए। ये मन्त्र भक्त की हर मनो इच्छा को पूर्ण करने की क्षमता रखते हैं। मन्त्र इस प्रकार से हैं.
ॐ ऐं ह्वीं क्लीं चामुण्डायै, विच्चै ॐ कालरात्रि देव्यै नमः ‘ ‘ ॐ क्लीं ऐं श्री कालिकायै नमः ” ॐ ह्लीं श्रीं क्लीं दुर्गति नाशिन्यै महा माया यै स्वाहा’
काल रात्रि का पूजनकरने से भक्त को ब्रह्माण्ड की सारी सिद्धियां मिलनी शुरू हो जाती हैं। नाम उच्चारण मात्र से भक्त हर प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है। सारी राक्षसी वृत्तियाँ समाप्त हो जाती है। शुभ्भ, निशुम्भ, रक्त बीज अपने बल गौरब में इतने उन्मुक्त हो गये थे, कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में इन्हीं के उत्पात का गूंज सुनाई देता था। तब माँ दुर्गा के काल रात्रि के रूप ने ही इन राक्षसों का बध किया।
माँ काली के भक्तों को यह भी जरूरी है कि हर मातृ शक्ति में मॉ काली के दर्शन करें। दुर्गा शप्त शती में कहा गया है -हे देवी संसार की सम्पूर्ण विद्यायें तुमसे ही निकलती हैं। जगत की हर स्त्री तुम्हारा ही स्वरूप है। इस प्रकार मातृ शक्ति का विशेष सम्मान करें।
इस पर्व पर किसी निरीह प्राणी की बलि न दें। पान मसाला गुटका शराब का सेवन न करें। अपने अन्दर के हर अवगुण -लोभ मोह ‘मान’ माया’ अंहकार आदि की बलि दें।
लेखक: अखिलेशचंद्र चमोला मां काली उपासक, स्वर्ण पदक से सम्मानित ‘श्रीनगर गढ़वाल