navratri-kanya-pujan

हमारी भारतीय संस्कृति सभी संस्कृतियों में सर्वश्रेष्ठ तथा अतुलनीय मानी जाती है। इसी अद्भुत संस्कृति के कारण हमारे भारत वर्ष की गरिमा जगत गुरु के रूप में रही है। यहाँ नारी शक्ति को सर्वोपरि महत्व दिया जाता रहा है। इसी आधार पर मनुस्मृति में इस बात की प्रमाणिकता देखने को मिलती है कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” अर्थात जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहा देवता निवास करते हैं। माँ शक्ति उपासक छायावादी काव्य धारा के प्रति निधि कवि जयशकर प्रसाद ने कहा था नर से बढकर नारी। नारी मनुष्य के जीवन में कई रुपों में दृष्टि गोचर होती है। नारी के बिना मनुष्य अपूर्ण माना जाता है। इसी कारण हमारे यहाँ नारी को देवी का रुप माना जाता है। इसका साक्षात प्रमाण नवरात्रि का त्योहार है। नवरात्रि पूजा के आठवें व नौवें दिन नौ कुंवारी कन्याओं का पूजन कर उन्हें भोजन कराने व यथोचित उपहार देने की परम्परा रही है। जीवन के विभिन्न रुपो में नारी ही सच्ची मार्गदर्शिका होती है. माँ ही जीवन का आधार तथा केन्द्र बिन्दु होती है। मा के बिना जीवन की कल्पना नहीं कर सकते हैं। मा बच्चे को 9 मास गर्भ में धारण करके अनेक प्रकार का कष्ट सहन करती है। इसी कारण मा को सर्वश्रेष्ठ स्थान दिया गया है। जिसका स्मरण करने मात्र से ही सभी प्रकार के क्लेश समाप्त हो जाते हैं। यही कारण है कि हमारे यहाँ गंगा माता, गौ माता, पृथ्वी माता कहकर उस निष्ठा को बड़ी श्रद्धा के साथ सम्बोधित किया जाता है। नवरात्रि का त्योहार इसी शक्ति का प्रतीक है।

इस समय यह पुनीत पर्व 17 अक्टूबर से 25 अक्टूबर तक है। इस दिन सूर्य कन्या राशि में,  चन्द्रमा तुला राशि में स्थित रहेंगे। नवरात्रि के प्रथम दिन घट स्थापना का शुभ मुहूर्त 6 बजकर 23 मिनट से प्रात: 10 बजकर 12 मिनट तक है। इस बार नवरात्रि आठ दिनों की मानी जायेगी। 24 अक्टूबर सुबह 6 बजकर 58 मिनट तक अष्टमी तिथि रहेगी। उसके बाद नवमी तिथि शुरू हो जाएगी। इस वर्ष पुरुषोत्तम मास के कारण इस पर्व को आने में एक महीने का और समय लगा। नवरात्रि के सन्दर्भ में हमारे धार्मिक ग्रन्थो में तरह तरह की अद्भुत मान्यताएँ देखने को मिलती हैं। कहा जाता है कि नवरात्रि की शुरुआत यदि रविवार या सोमवार से हो तो मा हाथी पर सवार होकर आती है। गुरुवार और शुक्रवार से शुरू होने पर माता डोली पर सवार होकर आती है। बुधवार के दिन से शुरू होने पर नाव पर सवार होकर आती है। इस बार नवरात्रि के दिन शनिवार है तो मा घोडे पर सवार होकर अपने भक्तो के घरों में शुभागमन करेगी। घोड़ा युद्ध का प्रतीक माना जाता है। घोड़े पर मा का आगमन शुभ नहीं माना जाता है। इसके साथ ही 25 अक्टूबर को रविवार है। माता हाथी पर सवारी करके अपने कैलाश पर्वत की ओर प्रस्थान करेगी। माता की विदाई हाथी पर होने से खूब वर्षा और अन्न धन की वृद्धि होगी। चारों ओर हरा ही हरा देखने को मिलेगा।

शैलपुत्री : मा के 9 रुपो में प्रथम रुप शैलपुत्री का माना जाता है। हिमालय की पुत्री होने के कारण यह शैलपुत्री कहलाती है। नवरात्रि के प्रथम दिन इसकी पूजा व आराधना की जाती है। इनके पूजन से मूलाधार चक्र जागृत होता है। इस रूप को सती के नाम से भी जाना जाता है। इस रूप में लाल रंग को महत्व दिया जाता है। यह रंग साहस शक्ति का प्रतीक है। इस रुप का जप मन्त्र-ऊँ शैलपुत्रयै नम: है।

ब्रह्मचारिणी :यह मा दुर्गा का दूसरा रूप है। मा ने भगवान शंकर को पति के रुप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। इस दिन का विशेष रंग नीला होता है। जप मन्त्र है-ऊँ ब्ररह्मचारिण्यै नम:

चन्द्रघन्टा : मा दुर्गा की तीसरी शक्ति चन्द्रघन्टा है। देवी का यह स्वरूप शान्तिदायक और कल्याणकारी माना जाता है। इस देवी के माथे पर घन्टे के आकार का आधा चन्द्र है। इसलिए इस देवी को चन्द्रघन्टा कहा जाता है। इस देवी का जप मन्त्र है -ऊँऐग् चन्द्रघन्टायेनम्:इस स्वरूप का पूजन करने से दिव्य सुगन्धियो का अनुभव होने लगता है।

कुष्मान्डा : ब्रह्मान्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कुष्मान्डा देवी के नाम से जाना जाता है। इसकी पूजा करने से अन्न धन की वृद्धि होती है। चारों ओर हरा भरा दिखाई देने लगता है। जप मन्त्र ऊँकुष्मांडडे नम:।

स्कन्द माता : दुर्गा मा का पन्चम रुप स्कन्द माता है। स्कन्द की माता होने के कारण इन्हें स्कन्द माता के नाम से जाना जाता है। पन्चम दिन इनकी पूजा अर्चना की जाती है। इसका जप मन्त्र है -ऊँ क्लीग् स्कन्द माताये नम:

कात्यायने नम : मा दुर्गा का षष्ठम रुप श्री कात्यायनी है। महर्षि कात्यायन की तपस्या से खुश होकर आदिशक्ति ने उनके यहाँ पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इस कारण कात्यायनी कहलाती है। जप मन्त्र है -ऊँ ऐँ  कात्यायने नम:

कालरात्रि : दुर्गा का सातवाँ रुप श्री कालरात्रि है। यह काल का भी नाश करने वाली है। इस दिन साधक को अपना चित्त मध्य ललाट में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। इस रुप का जप मन्त्र है -ऊँऐँ क्लीँँ कालरात्रये नम:

महागौरी : आठवे दिन इस स्वरूप की पूजा की जाती है। इस रुप का वर्ण पूर्ण रूप से गौर वर्ण है। इसलिए यह महागौरी कहलाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त सोमचक्र में स्थिर करके साधना करनी चाहिए। इनकी उपासना से असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाते हैं। इस रूप का जप मन्त्र है–ऊँ ऐँ क्लीँँ महा गौरैया नम:

सर्व सिद्विदायक : माँ दुर्गा का नवम रुप सिद्धि दात्री है। यह सब प्रकार की सिद्धियो की दाता है। नवरात्रि के नवम दिन इस स्वरूप की पूजा की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त मध्य ललाट में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। इस रूप का बीज मन्त्र है –ऊँ ऐँ क्लीँँ सिद्धिदाम्ये नम:

नवरात्रि के प्रत्येक दिन दुर्गा सप्तशती के ग्रन्थकी पूजा यथा यथोचित श्रद्धा के अनुसार पाठ करना चाहिए, नहीं तो अपनी राशि के अनुसार जाप करने से भी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

  • मेष राशि : ऊँ ऐँ सरस्वत्यै नम: 108 बार
  • वृषभ राशि : उँ क्राँ क्री क्रू कालिका देव्ये नम: 108 बार
  • मिथुन राशि : उँ दुँ दुर्गाये नम:-108बार
  • कर्क राशि : ऊँ ललिता देव्ये नम:108बार
  • सिंह राशि : उँ ऐँ महासरस्वत्ये नम:108बार
  • कन्या राशि : ऊँ शूल धारिण्ये नम:108बार
  • तुला राशि : ऊँ ह्री महालक्षम्यै नम:108बार
  • वृश्चिक राशि : उँ शक्ति रुपाये नम:108बार
  • धनु राशि : उँ ऐँ हीँर्ग क्लीँँ चामुन्डाये नम:108बार
  • मकर राशि : उँ पाँ पार्वती देव्ये नम:108बार
  • कुम्भ राशि : ऊँ पाँ पार्वती देव्ये नम:108बार
  • मीन राशि : उँह्रीमीँ श्री दुर्गा देव्ये नम:108बार

सभी मन्त्रो का जाप मोती की माला से ही करे। इसके साथ ही नवरात्रि के उपवास में सावधानियां बहुत जरूरी हैं। जो इस प्रकार से है.

  1. नवरात्रि के अवसर पर माँ के पूजन के लिएपुष्प, माला, रोली, चन्दन, नैवेद्य, फल “दुर्वा” तुलसी दल का प्रयोग करना चाहिए।
  2. देवी के जिस स्वरूप का ध्यान कर रहे हैं उस स्वरुप के साथ आत्मसात करने का भी प्रयास करे।
  3. अपने पूजा स्थान में मां दुर्गा की तीन प्रतिमाएँ बिल्कुल भी न रखे।
  4. पूजा करते समय अपना मुँह उत्तर दिशा की ओर करना चाहिए।
  5. काली माँ की पूजा करने में काले रंग के आसन का प्रयोग करना चाहिए।
  6. पूजा या ध्यान करते समय अपने शरीर के किसी भी अलग को न हिलाये।
  7. मन्त्र जप के लिए चन्दन की माला का प्रयोग करें।
  8. मन्त्र जाप में निरन्तरता बनी रहनी चाहिए।
  9. जमीन में ही शयन करेँ।
  10. मन में किसी तरह की कामवासना न लाये।
  11. किसी तरह की अनुभूति होती है तो उसे व्यक्त न करेँ।

इस प्रकार सच्ची श्रद्धा से नवरात्रि मे माँ दुर्गा के पूजन करने से जीवन में उत्साह का सन्चार पैदा होता है। रुके हुए सारे कार्य पूर्ण होने लगते हैं। सुखद अनुभूति का अहसास होने लगता है।

लेखक : राज्यपाल पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक अखिलेश चन्द्र चमोला।