Holashtak

Holashtak 2023: हमारा भारत वर्ष त्योहारों का देश है। जहां पर हर महीने में कोई न कोई त्योहार मनाने की परम्परा देखने को मिलती है।जिसमें विविधता मे भी एकता के दर्शन निरूपित होते हैं। इसीक्रम होली का भी त्योहार है। जो कि 6 मार्च को होलिका दहन और 8 मार्च को आपसी भातृत्व के भाव के रुप में गीली होली का पर्व है। इस होली त्योहार के साथ होलाष्टक का भी भाव जुडा हुआ है।

होलाष्टक क्या हैं?

होलाष्टक क्या है, इस सन्दर्भ में तरह-तरह की रूचिप्रद कहानियों के संकेत देखने को मिलते हैं। होलाष्टक फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शुरू होकर फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन के साथ समाप्त हो जाते हैं। इस साल होलाष्टक 28 फरवरी से शुरु होकर 6 मार्च को होलिका दहन के साथ समाप्त हो जायेंगे। होली के 8 दिन पहले होलाष्टक लग जाते हैं। होलाष्टक के समय शुभ ग्रह भी अशुभ फल देते हैं। एक प्रकार से सभी ग्रहों का स्वभाव उग्र हो जाता है।

होलाष्टक कथा

होलाष्टक के सन्दर्भ में मान्यता है कि भक्त प्रहलाद के पिता हिरण्यकशिपु ने अपने पुत्र को इन दिनो कठोर यातनाएं देकर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया। जिस कारण भगवान बिष्णु ने ये दिन श्रापित करते हुए अशुभता में निरूपित कर दिए। दूसरी पौराणिक मान्यता यह है कि एक बार तारकासुर नाम के राक्षस ने अपनी शक्तियों से देवताओ को परेशान करना शुरू कर दिया। उसे यह वरदान प्राप्त था कि उसका बध शंकर भगवान के पुत्र द्वारा ही संभव हो सकता है। भगवान शंकर निर्गुण परम तत्व में अपनी तपस्या में लीन थे। देवताओ व जन कल्याण के लिए कामदेव ने भोले बाबा शंकर की तपस्या को भंग करने का प्रयास किया, जिस कारण भगवान शंकर ने कुपित होकर कामदेव को भस्म कर दिया।

काम देब की पत्नी रति ने अपने पति को जीवित करने के लिए कठोर साधना की। जिससे खुश होकर भगवान शंकर ने रति के पति को जीवित कर दिया। तभी से होलाष्टक मनाने की परम्परा चल रही है। होलाष्टक के दिनों में विवाह, सगाई, मांगलिक कार्यो के अलावा नामकरण संस्कार, भवन निर्माण, जमीन खरीदना व बेचना, आभूषण खरीदना, जमीन बेचना आदि सभी कार्य अशुभ माने जाते हैं। होलिका दहन के दिन ही होलाष्टक का भी अंत हो जाता है।

लेखक: अखिलेश चन्द्र चमोला