dhanteras

Dhanteras 2020 : भारतीय संस्कृति व्यक्ति को निरन्तर कुछ न कुछ करने की अद्भुत प्रेरणा देती रहती है। जीवन में सत्कर्म करना इस संस्कृति का मूलभूत उद्देश्य है। इसी आधार पर चार प्रकार के पुरुषार्थोँ की अनूठी छठा देखने को मिलती है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष। चारों पुरुषार्थोँ में अर्थ की महत्ता को देखते हुए अर्थ को धर्म के बाद सर्वोपरि स्थान दिया गया है। बडे-बडे ऋषि मुनियो ने भी अर्थ की सार्थकता को बड़े ही मुक्त भाव से स्वीकारा है। कोई भी कार्य बिना धन के संपन्न नहीं किया जा सकता। इस कारण प्रत्येक व्यक्ति की हार्दिक इच्छा होती है कि उस पर लक्ष्मी की अनुकम्पा बराबर बनी रहे। इसी लक्ष्मी की अनुकम्पा को उजागर करता है धनतेरस का त्योहार। इसे धन की त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। धनतेरस पांच दिन तक चलने वाले दीपावली पर्व का पहला दिन है। इसे धनत्रयोदशी, धन्‍वंतरि त्रियोदशी या धन्‍वंतरि जयंती भी कहा जाता है।

मान्‍यता है कि क्षीर सागर के मंथन के दौरान धनतेरस के दिन ही माता लक्ष्‍मी और भगवान कुबेर प्रकट हुए थे। यह भी कहा जाता है कि इसी दिन आयुर्वेद के देवता भगवान धन्‍वंतरि का जन्‍म हुआ था। यही वजह है कि इस दिन माता लक्ष्‍मी, भगवान कुबेर और भगवान धन्‍वंतरि की पूजा का विधान है।

धनतेरस पर्व की सही तिथि

अमूमन धनतेरस का त्यौहार दीपावली से दो दिन पहले आता है। परन्तु इस बार धनतेरस की तिथि को लेकर लोगों के बीच कंफ्यूजन है। लोग असमंजस में हैं कि आखिर धनतेरस की खरीदारी और पूजा 12 नवंबर को करना शुभ है या 13 नवंबर को। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, इस साल धनतेरस की तिथि 12 तारीख को ही शुरु हो जाएगी, लेकिन धनतेरस की पूजा 13 नवंबर को करना शुभ होगा। दिवाकर पंचांगानुसार आज रात्रि में 9:30 बजे त्रयोदशी तिथि आयेगी और कल श्याम 6 बजे तक रहेगी तो इसलिए धनतेरस कल को ही मान्य है। यानि की धनतेरस इस बार 13 नवंबर को दीवाली के एक दिन पहले मनाया जा रहा है। इस वर्ष 13 नवम्बर को धनतेरस का यह अद्भुत पर्व है। इस पुनीत अवसर पर पूजा पाठ व जप-तप करने से महामृत्युन्जय के जप के समान महात्म्य की प्राप्ति होती है। अकाल मृत्यु से रक्षा होती है। परिवार में खुशहाली का वातावरण बन जाता है। जीवन के प्रत्येक कार्योँ में सफलता के समाचार मिलने शुरू हो जाते हैं। इस दिन धनवन्तरि देवी की पूजा की जाती है। इसी कारण इस पर्व को धनवन्तरि जयन्ती के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रोँ में विवरण है कि एक समय देवताओँ के आगे आसुरी शक्ति का प्रभाव बहुत अधिक बढ गया था। ऐसे में देवता स्वयं को असहाय महसूस करने लग गये थे। देवताओँ को अमृत पिलाने की इच्छा से भगवान धनवन्तरि समुद्र से प्रकट हुए। इस दिन धनवन्तरि देव की पूजा करने से धन की वृद्धि तो होती ही है साथ ही बीमारियों से भी मुक्ति मिलती है। इस दिन कोई न कोई सोने का आभूषण या नवीन बर्तन खरीदना बड़ा ही शुभ माना जाता है।

धनसम्पदा का स्वामी कुबेर को माना जाता है। कहा जाता है कि कुबेर ने ब्रह्मा और शिब भगवान को खुश करने के लिए बड़ा ही कठोर तप किया। तपस्या से ब्रह्मा और शिव भगवान बड़े खुश हुये, उन्होँने कुबेर को सभी धन सम्पदा का स्वामी बनाते हुए कहा जो श्रद्धा व भक्ति भाव से तुम्हारे नाम का स्मरण करेगा, उस के जीवन में कभी निर्धनता नहीं आयेगा। उस पर जीवन पर्यन्त माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी।

धनतेरस पूजा का शुभ मुहुर्त व पूजा की विधि

इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त 5 बजे 28 मिनट से लेकर 5 बजकर 59 मिनट के बीच है। इस दिन सर्वप्रथम पूजा में कुबेर यन्त्र, पीला वस्त्र, अक्षत, अष्ट गन्ध, नाला, फूल, घी, सुपारी,  इलायची, एकाक्षी नारियल, गोमती चक्र, सियार सिँगी, आदि की आवश्यकता होती है। इस दिन उत्तर दिशा की ओर कुबेर यन्त्र को स्थापित करें। अपने आप पीले वस्त्र पहनेँ। चौकी पर पीले वस्त्र बिछायेँ। साथ ही सियारसिँगी और गोमती चक्र को भी पूजा स्थान में रखेँ। चार मुंह वाला दीपक प्रज्वलित करें। दीपक को अपने बायीँ ओर रखेँ। भगवान गणेश और कुबेर की एकनिष्ठ से पूजा करें। कुबेर देवता का विनियोग और न्यास करें। इसके बाद पूर्ण श्रद्धा से अक्षत पुष्प कुवेर यन्त्र पर छिडके। कुवेर के इस मन्त्र का 11सो बार जप करें ऊँ श्री हीँ श्रीँ हीँ क्लीँँ श्रीँ वित्तेश्वराय नम:।जप करने के बाद गणेश व माँ लक्ष्मी की आरती करें। आरती के बाद कुबेर यन्त्र को अपने पूजा स्थान में रखेँ। सियार सिँगी को अपने खाने में रखे। इस तरह का विधान करने से जीवन में धन की कमी देखने को नहीं मिलेगी।

लेखक: राज्यपाल पुरस्कार से सम्मानित, हिन्दी अध्यापक अखिलेश चन्द्र चमोला