जप तप साधना का मास है श्रावण हमारे धार्मिक ग्रन्थों में 12 महीनों में प्रत्येक माह का अपना महत्व तथा महात्म्य बताया गया है। इसीक्रम में श्रावण मास का अपना विशिष्ट व प्रभाव कारी महत्व है। इस माह में भले ही विवाह, वास्तु पूजन जैसे कार्य सम्पादित नहीं किये जाते, लेकिन तन्त्र, मन्त्र, यन्त्र, सिद्धि तथा दिब्यता प्राप्त करने के लिए इस माह का अपना अलग ही महत्व है।
हालाँकि हिंदू कैलेंडर के अनुसार देशभर में सावन का महीना 4 जुलाई से शुरू हो चुका है। परन्तु उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में यह मास कल यानी 17 जुलाई से शुरू हो रहा है। जब सूर्य भगवान एक राशि से दूसरी राशि में परिवर्तन करते हैं, सूर्य भगवान की राशि परिवर्तन को ही संक्रान्ति कहते हैं। इस वर्ष श्रावण मास की शुरुआत सोमवार से है। इस दिन सोमवती अमावस्या है। जोकि अपने आप में दिव्य संयोग है। इस माह में निरन्तर शिव भगवान की पूजा की जाती है। शिव भगवान को जल सबसे ज्यादा प्रिय है। निरन्तर शिव लिंग पर जलाभिषेक करने से सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं।
श्रावण मास में अनवरत रुप से भगवान शिव की पूजा की जाती है। नियमित शिवलिंग में जलाभिषेक और बेलपत्र अर्पित करने से सभी कष्टों का हरण तथा मनोकामना पूर्ण होती है। इस माह में भक्तों को शिवालय में जा करके प्रत्येक सोमवार को शिव सहस्त्र नाम का पाठ करते हुए 1100 बार *ऊं नमः शिवाय* का जप करना चाहिए। ऐसा करने से उसकी अकाल मृत्यु से रक्षा होती है। काल सर्प के दोष से भी मुक्ति मिल जाती है। साथ ही यह भी जरुरी है इस माह में रूद्राक्ष की माला धारण करनी चाहिए। इस बिषय में शिव महापुराण में स्पष्ट रूप से विवरण मिलता है। जो भक्त रूद्राक्ष की माला धारण करता है, ललाट पर त्रिपुण्ड लगाता है, पंचाक्षर मन्त्र का जप करता है, वह परम पूजनीय श्रेणी में आ जाता है।
भगवान भोलेनाथ पर क्यों चढ़ाते हैं जल?
बहुधा लोगों के मन में इस तरह का बिचार आता है कि शिव भगवान को जल इतना प्रिय क्यों है। इस रहस्य के पीछे बड़ी ही ह्रदय स्पर्शी कहानी छिपी हुई है। कहा जाता है कि जब देव और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो तब समुद्र मंथन में हलाहल बिष निकला, उसे धारण करने की हिम्मत किसी में भी नहीं हुई। तब सभी देवता और राक्षसों ने इस बिष की समस्या के समाधान के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की। तब भगवान शिव ने कालकूट बिष को धारण किया। बिष के प्रभाव से भगवान शिव का मस्तिष्क गर्म हो गया और शरीर जलने लगा। इस पर देवताओं ने शिवजी के मस्तिष्क पर जल डालना शुरू कर दिया था, जिससे उनकी मस्तिष्क की गर्मी कम हुई. तब से भगवान शिव को जल चढ़ाने की शुरुआत हुई।
श्रावण मास में शिव की पूजा के लिए बेलपत्र जरूरी
श्रावण मास में शिव की पूजा के लिए बेलपत्र जरुरी है। बिना बेलपत्र की पूजा अधूरी मानी जाती है। शिव महापुराण में कहा गया है कि जो ब्यक्ति दो अथवा तीन बेलपत्र भी शुद्धता पूर्वक भगवान शिव को श्रद्धापूर्वक अर्पित करता है उसे निःसंदेह भवसागर से मुक्ति मिल जाती है।
कहते हैं कि विषपान करने के बाद बिष के प्रभाव से भगवान शिव के शरीर में हुई जलन को शीतल करने के लिए देवताओं ने शिवजी को जल के साथ बेल पत्र भी खिलाना शुरू कर दिया था. बेल के पत्तों की तासीर भी ठंडी होती है और बेलपत्र विष के प्रभाव को कम करता है. बेलपत्र और जल के प्रभाव से भोलेनाथ के शरीर में उत्पन्न गर्मी शांत होने लगी और तभी से शिवजी पर जल और बेलपत्र चढ़ाने की प्रथा चल पड़ी। बेलपत्र और जल से पूजा करने वाले पर शिवजी हमेशा प्रसन्न रहते हैं. बेलपत्र के दर्शन, स्पर्श से ही सम्पूर्ण पापों से मुक्ति मिल जाती है। बेलपत्र को चौथ, अमावस्या, अष्टमी, नवमी, संक्रान्ति और सोमवार के दिन नहीं तोड़ना चाहिए।
एक अन्य कथा के अनुसार एक भील नाम का डाकू था। यह डाकू अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटता था। एक बार जब सावन का महीना था, भील नामक यह डाकू राहगीरों को लूटने के उद्देश्य से जंगल में गया। इसके लिए वह एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया। देखते ही देखते पूरा एक दिन और पूरी रात बीत जाने पर भी उसे कोई शिकार नहीं मिला। जिस पेड़ पर वह डाकू चढ़कर छिपा था, वह बिल्व का पेड़ था। रात-दिन पूरा बीत जाने के कारण वह परेशान हो गया और बेल के पत्ते तोड़कर नीचे फेंकने लगा। उसी पेड़ के नीचे एक शिवलिंग स्थापित था। भील जो पत्ते तोड़कर नीचे फेंक रहा था, वे शिवलिंग पर गिर रहे थे, और इस बात से भील पूरी तरह से अनजान था। भील द्वारा लगातार फेंके जा रहे बेल के पत्ते शिवलिंग पर गिरने से भगवान शिव प्रसन्न हुए और अचानक डाकू के सामने प्रकट हो गए। भगवान शिव ने भील डाकू से वरदान मांगने के लिए कहा, और भील का उद्धार किया। बस उसी दिन से भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने का महत्व और अधिक बढ़ गया।
श्रावण माह में सोमवार के साथ ही मंगलवार के ब्रत की भी अपनी अलग उपादेयता है। यह ब्रत उन लड़कियों के लिए बडा ही मंगल कारी है, जो मंगली हैं, जिन्हें सुयोग्य वर की प्राप्ति नही हो रही है या जिनका दाम्पत्य जीवन सही नहीं चल रहा है। यह ब्रत मां पार्वती के नाम से लिया जाता है, शास्त्रों में इसे मंगला गौरी के ब्रत से भी जाना जाता है। मां पार्वती की पूजा करने से शिव भगवान बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। इसलिए भक्तों को श्रावण मास में भगवान शिव के साथ ही मां पार्वती की भी पूजा अनिवार्य रूप से करनी चाहिए।
लेखक: अखिलेश चन्द्र चमोला, श्रीनगर गढ़वाल