धनतेरस: विश्व उपवन में प्रत्येक व्यक्ति की भावना होती है कि उस पर लक्ष्मी की अनुकम्पा सदैव बनी रहे। यही कारण है कि पुरूषार्थ चतुष्टय के तहत भारतीय मनीषीयो ने अर्थ को द्वितीय पुरूषार्थ के रूप मे अत्यधिक महत्व दिया। अर्थ शास्त्र के जनक चाणक्य ने भी धन की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हुये कहा- “यस्याअर्थास्तस्य मित्राणियस्याअर्थस्यवान्धवः। यस्याअर्थास्य पुम्मालोके यस्याअर्था सः च जीवति।।“ अर्थात् आपके पास धन है तो मित्र, स्त्री, बन्धु-बान्धव सब आपके अपने होते हैं। सभी आपसे प्रेम करते हैं। इस लोक में वही जी सकता है। जो धन से सम्पन्न है। इसी तरह का वर्णन भर्तहरि ने नीति शतक में किया है- जिसके पास धन है वह मनुष्य कुलीन है। वह शास्त्रो का ज्ञाता है। गुणो को जानने वाला है। वही अच्छा वक्ता है। दर्शन के योग्य भी वही है। सभी गुण धन लक्ष्मी का ही आश्रय लेते है। प्रत्येक व्यक्ति की हार्दिक इच्छा होती है कि उस पर लक्ष्मी की अनुकम्पा बराबर बनी रहे।
हिन्दू धर्म में धनतेरस का महत्व:
धनतेरस का त्यौहार दीपावली से दो दिन पहले मनाया जाता है। इस दिन धन के देवता भगवान कुबेर और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। हर साल धनतेरस कार्तिक मास के 13वें दिन और दिवाली से दो दिन पहले मनाया जाता है। लक्ष्मी की अनुकम्पा को ही धन तेरस का त्योहार उजागर करता है। इस वर्ष पांच नवम्बर को यह अद्भुत पर्व है। इस पुनीत पर्व पर पूजा पाठ व जप तप करने से महामृत्युन्जय के जप के समान महात्म्य की प्राप्ति होती है। अकाल मृत्यु से रक्षा होती है। परिवार में खुशहाली का वातावरण बनता है। जीवन के प्रत्येक क्षणों में सफलता के समाचार मिलने शुरू हो जाते हैं। इस दिन धनवन्तरि देव की पूजा की जाती है। इसी कारण इस पर्व को धनवन्तरि जयन्ती के नाम से भी जाना जाता है। शास्त्रो मे विवरण है कि एक समय देवताओ के आगे आसुरी शक्ति का प्रभाव वहुत अधिक बढ गया था। ऐसी स्थिति मे देवता स्वयं को असहाय महसूस करने लग गये थे। देवताओ को अमृत पिलाने की इच्छा से भगवान धनवन्तरि अमृत से भरा कलश लेकर समुद्र से प्रकट हुये थे। इसलिए इस दिन धातू से जुड़े बर्तन या आभूषण खरीदने का चलन निकल पड़ा। इस दिन कोई न कोई सोने का आभूषण या नवीन बर्तन खरीदना बडा ही शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन खरीददारी करने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं।
धन का स्वामी कुबेर को माना जाता है। कहा जाता है कि कुवेर ने ब्रहमा और शिव को खुश करने के लिये बडा ही कठोर तप किया। तपस्या से भगवान शिव और ब्रह्मा बडे खुश हुये। और कुबेर को सभी धन सम्पदा का स्वामी बना दिया। और कहा जो भी श्रद्धा व भक्ति भाव से तेरे नाम का स्मरण करेगा उसके जीवन मे निर्धनता नही आयेगी। उस पर मां लक्ष्मी की अनुकम्पा बनी रहेगी। इसीलिए इस दिन सर्व प्रथम पूजा मे कुबेर यन्त्र, पीला वस्त्र, अक्षत अष्ट गन्ध, नाला, फूल, घी, दीपक, तरह-तरह के पकवान, पानी, सुपारी, एकाक्षी नारियल, गोमती चक्र, सियार सिह्गी आदि की आवश्यकता होती है। इस दिन उत्तर दिशा की ओर कुबेर।यन्त्र को स्थापित करें। अपने आप पीले बस्त्र पहने चौकी पर पीला वस्त्र बिछाये। साथ ही गोमती चक्र को भी चौकी पर रखे चार मुह वाला दीपक जलाये। दीपक को अपने बाये हाथ की ओर रखे। फिर गणेश भगवान व कुबेर की पूजा करे, विनियोग और न्यास करे। इसके बाद श्रद्धा, भक्ति भाव से ग्यारह सौ बार ऊं श्री वित्तेश्वराय नमः का जप करने के बाद गणेश व मा लक्ष्मी की आरती करे। आरती के बाद कुबेर यन्त्र को अपने पूजा स्थान मे रखै। सियार सिह्गी को अपने खजाने मे रखे। इस तरह का विधान करने से जीवन मे धन की कमी देखने को नही मिलती है। सुखद अनुभूतिया होने लगती है।
धनतेरस के दिन क्या करें :
- धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करें।
- धनतेरस के दिन झाडू खरीदकर उसका पूजन करे।
- शाम के समय घर पर दिया प्रज्वलित करें।
- मंदिर, गोशाला, नदी के घाट, कुओं, तालाब, बगीचों में भी दीपक लगाएं।
- धनतेरस के दिन तांबे, पीतल, चांदी के नए बर्तन और सोने के सिक्के, आभूषण खरीदने चाहिए।
धनतेरस के दिन क्या ना खरीदें:
1. मान्यता है कि धनतेरस के दिन गाड़ी खरीदना शुभ माना जाता है, लेकिन इस दिन राहु काल रहता है और इस काल में वाहन खरीदना अच्छा नहीं होता।
2. धनतेरस के दिन कांच का सामान नहीं खरीदना चाहिए।
3. धनतेरस के दिन धारदार सामान जैसे कैंची, चाकू आदि नहीं खरीदना चाहिए।
4. सिर्फ धनतेरस ही नहीं बल्कि हिंदु धर्म में सभी त्योहारों में काला रंग पहनना शुभ नहीं माना जाता है। इसलिए धनतेरस के दिन भी काले रंग की चीज़े खरीदने से बचें।
लेखक-अखिलेश चन्द्र चमोला ज्योतिष भारत रत्न तथा राज्यपाल पुरस्कार से सम्मानित स्वर्ण पदक प्राप्त हिन्दी अध्यापक रा.इ.का. सुमाडी ।वि.ख. खिर्सू। जनपद-पौडी गढवाल।