Two big banks drowned in America

“अमेरिका में पिछले एक हफ्ते में दो बड़े बैंक दिवालिया हो गए। ‌कैलिफोर्निया में स्थित सिलिकॉन वैली बैंक दिवालिया हुआ। इसके बाद न्यूयॉर्क के सिग्नेचर बैंक पर भी ताला लग गया। इस वजह से अब अमेरिका के बैंकिंग सेक्टर में बड़ा असर देखने को मिल सकता है। सिलिकॉन वैली बैंक के डूबने से 21 भारतीय कंपनियां भी प्रभावित हुई हैं। स्विट्जरलैंड का क्रेडिट सुइस बैंक भी मुसीबत में है। अमेरिका बैंकिंग संकट का असर दुनिया भर में दिखने लगा है।“

दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका इन दिनों आर्थिक संकट में घिरा हुआ है। अमेरिका में पिछले एक हफ्ते में दो बड़े बैंक दिवालिया हो गए। ‌10 मार्च को अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्थित 16वां सबसे बड़ा सिलिकॉन वैली बैंक डूब गया। इसके ठीक 2 दिन बाद 12 मार्च को न्यूयॉर्क के सिग्नेचर बैंक में भी ताला लग गया। इस वजह से अब अमेरिका के बैंकिंग सेक्टर में बड़ा असर देखने को मिल सकता है। सिलिकॉन वैली बैंक के डूबने से 21 भारतीय कंपनियां भी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं।

अमेरिका के बैंकिंग सेक्टर में आई सुनामी अब यूरोपीय बैंकों को भी अपनी जद में लेती जा रही है। इससे दुनियाभर के बैंकों पर प्रभाव देखने को मिल रहा है। यूएस में पहले सिलिकॉन वैली और फिर तुरंत बाद सिग्नेचर बैंक पर ताला लगा गया। जबकि करीब आधा दर्जन अन्य अमेरिकी बैंकों के बंद होने का खतरा बढ़ गया है। भारत में भी इसकी आहट देखी जा सकती है। वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भी फर्स्ट रिपब्लिक बैंक समेत कई वित्तीय संस्थानों को अंडर रिव्यू में रखा है। पिछले दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से जब प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान बैंक दिवालिया होने का कारण पूछा गया तो वह बीच में ही प्रेस कॉन्फ्रेंस छोड़कर चले गए। ‌

हालांकि अमेरिकी सरकार ने लोगों को आश्वासन दिया है कि डिपॉजिटर्स का पैसा सुरक्षित है और वो अपना पैसा निकाल पाएंगे। लेकिन सिलिकॉन वैली बैंक और सिग्नेचर बैंक के साथ ऐसा क्या हुआ और ये दोनों बैंक कैसे बंद हुए। दुनिया की सबसे बड़ी इकोनॉमी के दो बड़े बैंकों के दिवालिया होने के बाद लोगों को साल 2008 की आर्थिक मंदी याद आ गई है। इसके बैंकिंग संकट का असर दुनिया भर में दिखने लगा है। स्विट्जरलैंड का क्रेडिट सुइस बैंक भी मुसीबत में फंसता नजर आ रहा है। ऐसे में भारत में भी इसका असर दिख रहा है। बैंकों के शेयरों में भारी दबाव देखने को मिल रहा है।

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, दो प्रमुख अमेरिकी बैंकों के डूबने से ग्लोबाल बाजार में भारी गिरावट आई है। इसमें विशेष रूप से अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व की अगली बैठक में किए गए फैसले का बाजार में बिकवाली पर अहम असर पड़ेगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक, वित्त मंत्रालय के अधिकारियों को यह कहते हुए रिपोर्ट किया गया था कि इसका प्रभाव भारत में सीमित होगा। देश में केवल कुछ तकनीकी स्टार्टअप और आईटी फर्मों को ही ये प्रभावित करेगा। हालांकि, क्रेडिट सुइस बैंक की ओर से अभी भी ये कहा जा रहा है कि उसके पास पर्याप्त मात्रा में जमा राशि मौजूद है और बैंक के डूबने को कोई खतरा नहीं है। यहां बता दें कि साल 2008 में कियोस्की ने ही सबसे पहले लेहमन ब्रदर्स के डूबने की भविष्यवाणी की थी और इसके धराशायी होने के बाद दुनिया भर ने आर्थिक मंदी का सामना किया था।

ट्रैक्सन डेटा के मुताबिक सिलिकॉन वैली बैंक ने 21 भारतीय स्टार्टअप कंपनियों में इन्वेस्टमेंट किया है। हालांकि ये आंकड़ा ज्यादा भी हो सकता है। इनमें ब्लूस्टोन, कार्वेल, लॉयल्टी रिवॉर्ड, पेटीएम, पेटीएम मॉल और वन97 जैसी कंपनियों के नाम हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 2011 के बाद इस बैंक ने भारतीय कंपनियों में इन्वेस्ट नहीं किया है। सिलिकॉन वैली बैंक ने इन 10 भारतीय कंपनियों में सबसे ज्यादा इन्वेस्टमेंट किए हैं।

अमेरिका में दोनों बैंकों के डूबने की वजह इंटरेस्ट रेट रिस्क और लिक्विडिटी रिस्क मानी जा रही

आमतौर पर किसी बैंक के डूबने की बड़ी वजह लोन डिफॉल्ट मामलों में उछाल होता है, लेकिन इन दोनों केस में ऐसा नहीं हुआ है। बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े एक्सपर्ट का कहना है कि सिलिकॉन वैली और सिग्नेचर बैंक के डूबने की दो बड़ी वजहें रही। पहली इंटरेस्ट रेट रिस्क दूसरी है लिक्विडिटी रिस्क । इंटरेस्ट रेट रिस्क एक बैंक इस जोखिम का सामना तब करता है, जब काफी कम समय में कई बार इंटरेस्ट रेट बढ़ाए जाते हैं।

अमेरिका में महंगाई 40 साल के उच्च स्तर पर है। यही वजह है कि महंगाई पर काबू पाने के लिए फेडरल रिजर्व ने मार्च 2022 के बाद कई बार इंटरेस्ट रेट बढ़ाए हैं, जो अब 4.5% के करीब पहुंच गई है। ये पिछले 15 साल में सबसे ज्यादा है। इसका असर ये हुआ कि फेडरल बैंक के खजाने में आमदनी यानी यील्ड अचानक से 2% बढ़ गया। इस वजह से बैंक और बाकी दूसरे इन्वेस्टर्स कॉर्पोरेट बॉन्ड्स और सरकारी ट्रेजरी बिल्स को खरीदने के बजाय पैसा फेडरल बैंक में इन्वेस्ट करने लगे। फिर देखते ही देखते कॉर्पोरेट बॉन्ड्स और ट्रेजरी की कीमत घटने लगीं।

वॉल स्ट्रीट जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक यील्ड 2% बढ़ने से बॉन्ड्स की कीमत 32% तक गिर सकती है। सिलिकॉन वैली बैंक ने अपनी कुल संपत्ति का 55% हिस्सा अमेरिकी सरकार के बॉन्ड में निवेश किया था। ऐसे में कीमत कम होते ही सिलिकॉन वैली बैंक को भारी नुकसान हुआ। इस बैंक ने नकदी की कमी को दूर करने के लिए मेच्योरिटी से पहले ही ट्रेजरी से पैसा निकालना शुरू कर दिया। इस वजह से बैंक दिवालिया होने के करीब पहुंच गया। लिक्विडिटी रिस्क में जब किसी बैंक को अपना नुकसान करके ग्राहकों को फायदा पहुंचाना होता है तो इसे लिक्विडिटी रिस्क कहते हैं। इसे ऐसे समझिए कि आपने 2019 की शुरुआत में अपनी सारी पूंजी लगाकर और बैंक से कर्ज लेकर एक फ्लैट खरीदा। इसके बाद अचानक से कोरोना महामारी आ गई। ऐसे में अब कर्ज और उसका इंटरेस्ट देने के लिए आपके पास पैसा नहीं है।

एक तरफ बैंक की आमदनी घटती है तो वहीं दूसरी तरफ बैंक में जिन लोगों का पैसा जमा होता है, वह निकालने लगते हैं। इससे पैसा कम पड़ने की वजह से बैंक दिवालिया हो जाते हैं। बता दें कि पिछले 5 साल से ये बैंक बेस्ट बैंक का अवॉर्ड जीत रहा था। लेकिन पिछले 1 साल में ऐसा क्या हुआ कि ये बैंक दिवालिया घोषित हो गया। दरअसल, ये बैंक स्टार्टअप्स से डिपॉजिट लेता है और उन्हें या तो जरूरतमंद स्टार्टअप को लोन के तौर पर देता है या फिर उसे निवेश करता है। सिलिकॉन वैली वैली बैंक ने ये पैसा अमेरिका के बॉन्ड में निवेश किया। अब फेडरल बैंक की ओर से ब्याज दरें बढ़ाने के बाद बॉन्ड में गिरावट देखने को मिली।

अमेरिका और भारत में बैंकों के डूबने पर ग्राहकों के लिए इंश्योरेंस के यह हैं नियम

बता दें कि अमेरिका और भारत में कोई बैंक दिवालिया होता है तो ग्राहकों के लिए नियम भी बनाए गए हैं। ‌अमेरिका के एफडीआईसी के नियम के अनुसार अगर देश में कोई भी बैंक डूबता है तो निवेशकों को 2.5 लाख डॉलर यानी लगभग 2 करोड़ रुपये तक इंश्योरेंस का लाभ मिलता है। वहीं इससे ज्यादा की राशि मिलना सरकार के दखल पर ही निर्भर करती है।

गौरतलब है कि भारत में भी बैंक ग्राहकों को अमेरिका की तरह इंश्योरेंस कवर का लाभ मिलता है। इस इंश्योरेंस कवर के जरिए ग्राहकों को बैंक डूबने या पैसे न निकल पाने की स्थिति में एक निश्चित राशि मिलना संभव होता है। अमेरिका के एफडीआईसी की तरह यह काम भारत में डीआईसीजीसी करता है। इसके के नियमों के अनुसार बैंक डूबने की स्थिति में ग्राहकों को 5 लाख रुपये की अधिकतम रकम मिल सकती है। भारत में हर कमर्शियल बैंक और कोऑपरेटिव बैंकों के ग्राहकों को डीआईसीजीसी के इंश्योरेंस कवर का लाभ मिलता है। अगर आप अपने बैंक के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो बैंक में जाकर इसके बारे में अधिकारियों से पूछ सकते हैं।

बता दें कि भारत में भी यस बैंक के साथ कुछ ऐसा हुआ था। मैनेजमेंट लेवल पर और कुछ अन्य मामलों में निगेटिव रिपोर्ट आने के बाद से यस बैंक के शेयरों में भारी गिरावट आई थी तब यस बैंक को बचाने के लिए भी कुछ इसी तरह से 8 बैंक सामने आए थे। रिकंस्ट्रक्शन स्कीम के शुरू किए जाने के बाद से यस बैंक के वित्तीय प्रदर्शन में धीरे-धीरे सुधार हुआ है। प्राइवेट बैंक में निवेश करने वाले निवेशकों के सामने यह शर्त रखी गई है कि उन्हें बैंक में अपने कुल निवेश की 75 फीसदी राशि को लॉक-इन पीरियड में रखना होगा। हालांकि किसी भी देश के लिए बैंक का दिवालिया सीधे ही आर्थिक मंदी की ओर संकेत भी देता है। हालांकि भारत में अभी स्थित नियंत्रण में ही कही जा रही है।