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कोरोना रूपी बीमारी पूरे विश्व में महामारी के रूप मे फैल चुकी है। दुनियाभर के ज्यादातर देशों को कोरोना वायरस ने अपनी चपेट में ले रखा है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक दुनियाभर में कोरोना संक्रमण के अब तक 77 लाख 51 हजार से ज्यादा मामले आ चुके हैं। जबकि 4 लाख 28 हजार से ज्यादा लोगों की इस बीमारी से जान जा चुकी है।

भारत में अब इस बीमारी के लगातार मामले बढ़ते जा रहे हैं। भारत में अब तक कोरोना संक्रमण के 3 लाख से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, वहीँ 8 हजार से ज्यादा लोगों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है। भारत कोरोना संक्रमण के मामले में विश्व के चौथे स्थान पर खड़ा है। जाने माने देश जो चिकित्सा पद्धति के क्षेत्र में अग्रणी हैं। जिनकी गणना विकसित देशों में की जाती है। अमेरिका, इटली, ब्रिटेन, स्पेन, जर्मनी आदि देश इस बीमारी के आगे लाचार हो गये। इस बीमारी के विषय में तरह तरह का चिंतन किया जा रहा है। हेलन ब्रिग्स बीबीसी न्यूज़ के द्वारा अवगत कराया गया है कि चीन के किसी इलाके में एक चमगादड़ ने आकाश में मंडराते हुए अपने लीद के जरिए कोरोना वायरस का अवशेष छोडा जो जंगल में जमीन पर गिरा। एक जंगली जानवर पैंगोलिन ने इसे सूंघा और उसी के जरिए यह बीमारी अन्य जानवरों में फैल गई। इसके बाद वाइल्ड लाइफ मार्केट में कामगारों में यह बीमारी फैलने लगी। इसी से वैश्विक संक्रमण का जन्म हुआ। कनिंगम के अनुसार कई जंगली जानवर कोरोना वायरस के स्रोत हो सकते हैं। लेकिन खासकर चमगादड़ बडी संख्या में अलग-अलग तरह के कोरोना वायरस के अड्डे होते हैं। यूनिवर्सिटी काॅलेज लन्दन के प्रोफेसर कटे जोनस के अनुसार, चमगादड़ बीमार पडते हैं तो बडी संख्या में विषाणुओं से टकराते हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि चमगादड़ जैसे रहते हैं। उसमें विषाणु खूब पनपते हैं। यूनिवर्सिटी आफ नाॅटिगम के प्रोफेसर जोनाथन बाॅल कहते हैं कि ये स्तनपायी होते हैं। इसलिए आंशका होती है कि ये या तो इन्सान को सीधे संक्रमित कर सकते हैं, या फिर किसी के जरिए भी प्रभावित कर सकते हैं। ईष्ट एंगलिका की प्रोफेसर डायना वेल कहती हैं, हम सतर्क हो जाएं तो अगले खतरनाक विषाणु से बच सकते हैं. हम अलग-अलग देशों, भिन्न-भिन्न जलवायु और भिन्न-भिन्न जीवन शैली वाले जानवरों को साथ ला रहें हैं। पानी में रहने वाले जीवों और पेड़ो पर रहने वाले जीवों का हम जिस तरह से हिंसा कर रहे हैं। हमें वे सब रोकने की जरूरत है। लंदन में कोरोना वायरस पर अनुसंधान कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि ये अभी शुरूवाती दौर है। ठीक ठीक कुछ नहीं कहा जा सकता है। कुछ रिपोर्टस इस बात को भी उजागर करते हैं कि सांप और चमगादड़ दोनों में कोरोना वायरस पाया गया। यहीं से यह वायरस ह्यूमन बाॅडी में आ गया। चीन इस प्रकार का देश है कि जो सभी प्रकार के जानवरों का मांस खाता है। चीन में चमगादड़, सांप, कुत्ता आदि जो भी मिले सबके भक्षण किया जाता है। चीन की इस तरह की कुप्रवृत्ति का फल पूरे विश्व को भोगना पड रहा है। इनकी हिस॔क वृत्ति ने सम्पूर्ण विश्व के सामने खतरा खडा कर दिया है। गार्डियन रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है कि चीन एक वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन लॉ है। लेकिन 30 सालों में इसे सुधारा नहीं गया है, न ही अधिकारियों द्वारा उसमें रूचि दिखाई है। प्राकृतिक संसाधनों और वन्य जीवन का दमन इस देश के गुण सूत्रो में है। समय के साथ नहीं चेते तो बहुत बडी प्राकृतिक आपदा है, जिसके परिणाम भुगतने पडेंगे।

कोरोना वायरस सर्वप्रथम फेफडों को ही संक्रमित करता है। इसके दो लक्षण होते हैं। बुखार और सूखी खांसी। कई बार इसके कारण व्यक्ति को सांस लेने में भी कठिनाई होती है। कोरोना वाली खांसी आम खासी नहीं होती है। इसके कारण लगातार खासी होती है। ’24’ घन्टे में कम से कम तीन बार चक्कर या दौरे पड सकते हैं। खासी में बलगम का आना चिन्ता के विषय को दर्शाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार-वायरस के शरीर में पहुचने और लक्षण दिखने के बीच 14 दिन का समय होता है। सामान्य तौर पर जिन लोगों में कोरोना वायरस का संक्रमण है उनमें से अधिकतर लोग पैरासिटामोल जैसे दर्द कम करने की दवा ले सकते हैं। अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत तब होती है जब व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होती है।

कोरोना वायरस महामारी के बचाव निम्नलिखित हैं-नियमित स्वच्छता का ध्यान रखें। अपने हाथ साबुत और पानी से अच्छी तरह धूलें। इस रोग से ग्रसित ब्यक्ति जब खासता है ‘छींकता है तो उसके थूक के बेहद बारीक कण हवा में फैलते हैं। इन कणों में वायरस के जीवाणु रहते हैं। संक्रमित व्यक्ति के समीप रहने से जीवाणु सांस के रास्ते शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। अगर आप किसी ऐसी जगह छूते हैं जहां ये कण गिरे हुए हैं। फिर उसके बाद अपने हाथ आँख कान मुंह को छूते हैं तो ये कण शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इस कारण जब भी बाहर निकलते हैं तो मास्क का जरूर प्रयोग करें। इस महामारी के चलते हुए सम्मानित तेजस्वी प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी जी ने स्वाध्याय चिंतन  मनन के बाद एक दिन के लिए सम्पूर्ण भारत वर्ष को बन्द रखने की अपील की। फिर स्थितियों को देखकर प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, चरण मे लौक डाउन की अवधि बडा दी। सम्मानित प्रधानमंत्री महोदय जी ने भी अपने भाषण में भारतीय सन्स्कृति के उच्च आयामों के आधार पर जनता को धैर्य और संयम में रहने की नसीहत देते हुए कहा कि कोरोना महामारी  किसी से छिपी हुई नहीं है। इसने पूरी दुनिया को हिला दिया है। बेबस कर दिया है। ऐसा नहीं है कि ये देश प्रयास नहीं कर रहें हैं। या इनके पास संसाधनों की कमी है। लेकिन कोरोना महामारी इस तरह से फैल रही है कि तमाम तैयारियों व प्रयासों के बावजूद इन देशों में चुनौती बढती जा रही है। इन सभी देशों की दो महीने की स्टडी से जो निष्कर्ष निकल रहा है और जो विशेषज्ञ कह रहे हैं कि इस महामारी से प्रभावी मुकाबले के लिए एकमात्र विकल्प सामाजिक दूरी है। यानी एक दूसरे से दूर रहना, घरो में ही बन्द रहना। कोरोना बीमारी से बचने का इसके अतिरिक्त कोई तरीका नहीं है। कोरोना को फैलने से रोकना है तो उसके संक्रमण की साइकिल को तोडना होगा।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने यह भी कहा कि भारत आज उस स्टेज पर है। जहाँ आज हमारे एक्शन तय करेंगे कि इस बडी आपदा के प्रभाव को हम कितना कम कर सकते हैं। यह वक्त कदम कदम-कदम पर संयम बरतने का हैं। याद रखें कि जान है तो जहान है। धैर्य और अनुशासन की घडी है। कोरोना महामारी पूरे विश्व के लिए बहुत बडी चुनौती बनी हुई है। साथ ही यदि सकारात्मक चिंतन किया जाय तो यह बात भी स्पष्ट रूप से सामने आ जाती है कि पूरे विश्व को जगत् गुरु के रूप में मार्गदर्शन करने वाला भारत वर्ष और यहाँ की वैदिक संस्कृति जो कि आदर्श आत्म संयम व सदाचार में जीवन जीने का बोध कराती है। आज पूरे विश्व की दृष्टि पुनः इसकी संस्कृति पर टिकी हुई है। कोरोना महामारी एक चुनौती बनी हुई है। एक वायरस ने अपना प्रकोप इस तरह से फैला दिया है कि हम इसके सामने बौने साबित हो रहे हैं। यह चिंतन का विषय है। परम सत्ता हमें सचेत कर रही है। हम प्रकृति से लेने का कार्य कर रहे हैं। प्रकृति नहीं चाहती है कि इस धरा पर रहकर कोई हिंसात्मक कार्य करे।पर्यावरण को प्रदूषित करें। हमारी इस तरह की मूर्खतापूर्ण चतुराई ने हमें इस तरह रोगों के लिए आमंत्रित किया है। इस सत्यता को भी झुटलाया नहीं जा सकता है कि हमारे भारत  वर्ष में कोरोना वायरस से मरने वालों की संख्या अन्य देशों की तुलना में  बहुत कम है। यहां पर आत्म संयम व चिकित्सकीय परामर्श के दिशा निर्देशन में रहकर उपचार से रोगियों को भरपूर लाभ मिल रहा है। यह भी सच है कि कोई भी समस्या जन्म लेती है तो समाप्त भी होती है। उसका समाधान भी निकल जाता है। यह एक प्रकार से असीम धैर्य की परीक्षा है। हम बहुत जल्दी ही इह महामारी से मुक्त होकर नूतन शुभ प्रभात के साथ ऊर्जा रूपी किरणों से संचालित होंगे ।लेकिन साथ ही ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि यदि समय रहते अभी भी हमनें अपनी मूल भूत संस्कृति को अनदेखा किया तो इसके भविष्य में गम्भीर परिणाम भुगतने पडेंगे।

लेखक-अखिलेश चन्द्र चमोला।