हिंदी पत्रकारिता दिवस: आज यानी 30 मई का दिन हिंदी पत्रकारिता के लिए विशेष माना जाता है। क्योंकि 195 साल पहले आज ही के दिन हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत हुई थी। 30 मई, 1826 को हिंदी पत्रकारिता का पहला अखबार “उदंत मार्तण्ड” कलकत्ता से प्रकाशित हुआ था। इसीलिए आज यानी 30 मई का दिन हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। हालाँकि यह साप्ताहिक अख़बार मात्र डेढ़ साल ही चला, और आर्थिक तंगी के कारण 19 दिसंबर,1827 को इसे बंद करना पड़ा था।
इस साप्ताहिक अखबार की शुरुआत पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने कलकत्ता से की थी। इसके प्रकाशक और संपादक भी वे खुद ही थे। मूल रूप से कानपुर के रहने वाले प. जुगल किशोर शुक्ल पेशे से वकील भी थे और उन्होंने कलकत्ता को अपनी कर्मस्थली बनाया। उदंत मार्तंड का अर्थ होता है उगता सूरज, इस तरह हिंदी पत्रकारिता का सूरज पहली बार कलकत्ता के उदित हुआ था। उदंत मार्तण्ड खड़ी बोली और ब्रज भाषा के मिले-जुले रूप में छपता था और इसकी लिपि देवनागरी थी।
हालाँकि उदन्त मार्तण्ड से पहले भारत में अंग्रेजी, उर्दू, फारसी और बांग्ला आदि भाषाओं के अखबार प्रकाशित होने लगे थे। लेकिन हिंदी में एक भी समाचार पत्र नहीं निकल रहा था। अखबार के पहले अंक में ही संपादक शुक्ल ने अखबार का उद्देश्य स्पष्ट कर दिया था कि यह हिंदुस्तानियों के लिए उनकी भाषा में उनके हित का अखबार है।
इस साप्ताहिक समाचार पत्र के पहले अंक की 500 कॉपियां छपी लेकिन हिंदी भाषी पाठकों की कमी के कारण उसे ज्यादा पाठक नहीं मिल पाए। बंगाल से प्रकाशित होने के कारण उसके लिए स्थानीय स्तर पर ग्राहक या पाठक मिलना अंग्रेजी, उर्दू, फारसी और बांग्ला अखबारों की तुलना में मुश्किल था। वहीं हिंदी भाषी राज्यों से दूर होने के कारण समाचार पत्र डाक द्वारा भेजना पड़ता था जो एक महंगा सौदा साबित हो रहा था। इसके लिए जुगल किशोर ने तत्कालीन ब्रिटिश सरकार से बहुत अनुरोध किया कि वे डाक दरों में कुछ रियायत दें लेकिन ब्रिटिश सरकार इसके लिए तैयार नहीं हुई। जिसके चलते इस अख़बार की उम्र ज्यादा लंबी नहीं हो सकी। इसके केवल 79 अंक ही प्रकाशित हो सके। और आर्थिक तंगी के चलते दिसंबर 1827 में हिंदी का पहला अख़बार “उदंत मार्तंड” बंद करना पड़ा। परन्तु उदंत मार्तण्ड ने अपने छोटे से प्रकाशन काल में हमेशा ही समाज के विरोधाभाषों पर तीखे हमले किये और गंभीर सवाल उठाये। इसके साथ ही आम जन की आवाज को बुलंद करने का भी काम भी इस अखराब ने बखूबी किया।
पत्रकारिता में क्रांतिकारिता का रंग गणेश शंकर विद्यार्थी ने भरा था। उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में 9 नवंबर 1913 को 16 पृष्ठ का ‘प्रताप’समाचार पत्र शुरू किया था। यह काम शिव नारायण मिश्र, गणेश शंकर विद्यार्थी, नारायण प्रसाद अरोड़ा और कोरोनेशन प्रेस के मालिक यशोदा नंदन ने मिलकर किया था। चारों ने इसके लिए सौ-सौ रुपये की पूंजी लगाई थी। पहले साल से पृष्ठों की वृद्धि का सिलसिला बढ़ा तो फिर बढ़ता ही रहा। कुछ ही दिन बाद यशोदा नंदन और नारायण प्रसाद अरोड़ा अलग हो गए। शेष शिव नारायण मिश्र और गणेश शंकर विद्यार्थी ने ‘प्रताप’को अपनी कर्मभूमि बना लिया। विद्यार्थी जी के समाचार पत्र प्रताप से क्रांतिकारियों को काफी बल मिला।
वैसे भारत में पहला अखबार अंग्रेजी भाषा में साल 1780 में प्रकाशित हुआ था।
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