आज कृष्ण जन्म पर, हर्षो उल्लास की हो रही तैयारी है
प्रेम स्वार्थ में डूब रहा और मुस्कान द्वेष से हारी है
कहीं खो गयी बांसुरी की वो धुन, व् बिछुड़ गयी दही की हांड़ी है
बचपन खो गया किताबों में न अब ग्वालबालों की टोली है
रे रे कन्हैया तू ही बता क्यों अब इंसानियत की झोली खाली है
गाय घूम रही आवारा, दूध, दही, माखन बन रहा नकली है
गोपियों का हो रहा चीर हरण गली गली में बैठे कंस है
न अब सुदामा से मित्र रहे न राधा सी ही प्रीत है
नाग फन उठा रहे किसानों के हाथ में ज़हर की थाली है
रे रे कन्हैया तू ही बता क्यों अब इंसानियत की झोली खाली है
वरिष्ठ साहित्यकार एवं कवि द्वारिका चमोली की श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर व्यंग्यात्मक कविता