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हमारे देश का इतिहास प्राचीन काल से ही बड़ा गौरवमयी रहा है। इस देश में दशरथ, जनक, राम, युधिष्ठिर, चन्द्रगुप्त, अशोक, विक्रमादित्य, पृथ्वी राज चौहान, महाराणा प्रताप जैसे महान व्यक्तित्व हुए हैं। व्यास, नारद, शुकदेव, रामदास, रामानन्द, कबीर, सूर, तुलसी, नामदेव, ज्ञानेश्वर, रामकृष्ण, विवेकानंद, अरविंद जैसे ऋषियों और संतों ने इस देश की धरती पर जन्म लिया है। श्री कृष्ण और चाणक्य जैसे राजनीति और कूटनीति के मर्मज्ञ इस देश में अवतरित हुए हैं। कर्ण, अर्जुन, भीम, पोरस, समुद्र गुप्त, पृथ्वी राज, राणाप्रताप, शिवाजी, भगतसिंह, चन्द्र शेखर आजाद, सुभाष चन्द्र बोस जैसे योद्धाओं और स्वतंत्रता के दीवानों की यशोगाथा आज भी    चारों दिशाओं में गूंज रहे हैं। भारतीय संस्कृति के संवाहक डा. एपीजे अब्दुल कलाम भी इसी तरह की दिव्य महाविभूतियों में से एक थे। इनका जन्म 15 अक्तूबर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम जिले के धनुष कोडि गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम जैनुलाबद्दीन था। घर की स्थिति अत्यंत दयनीय थी। पिता जी संघर्ष से रोजी रोटी कमाते थे। ईमानदारी का भाव उनके अन्दर कूट कूट करके भरा हुआ था। अब्दुल कलाम जब लगभग 8 साल के थे। तो सुबह हर हालत में उठ जाते थे। नहाने के बाद गणित के अध्यापक स्वामी जी के पास गणित पढने जाते थे। स्वामी जी बडे आदर्श और अनूठे अध्यापक थे। वे शरीर की बाहरी शुद्धता पर विशेष ध्यान देते थे। उनका नियम था हर वर्ष गरीब परिवार के पांच बच्चों को गोद लेते थे। उन्हें निशुल्क ट्यूशन पढ़ाते थे। कलाम की मां अपने बेटे को सुबह ही उठाकर स्नान कराती थी। नाश्ता करवा कर ही अध्ययन करने भेजती थी। कलाम ने इस बात को खुद स्वीकार किया कि मैं अपने बचपन के दिनों को कभी भूल नहीं सकता। मेरे बचपन को संवारने में मेरी मां की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्होंने मुझे अच्छे बुरे समझने की शिक्षा दी। छात्र जीवन में जब मैं घर पर अखबार वितरित करके वापिस आता था तो मां के हाथ का नाश्ता तैयार मिलता था। पढाई के प्रति रूचि को देखते हुए मेरी मां ने मेरे लिए छोटा सा लैम्प खरीदा था। जिससे मैं रात के 11 बजे तक पढ सकता था। मां ने साथ न दिया होता तो मैं आज यहाँ तक नहीं पहुंच पाता। कलाम ने अपनी पुस्तक ”अदम्य साहस” में लिखा है मेरी उम्र 10 साल थी। एक दिन हम सभी भाई बहिन खाना खा रहे थे। मां मुझे रोटी देती जा रही थी। मैं खाता जा रहा था। बाद में बडे भाई ने मुझे एकान्त में बुलाकर डांटा, कलाम मां अपने हिस्से की सारी रोटी तुम्हें दे देती है। घर की परिस्थिति ठीक नहीं है। एक जिम्मेदार बेटा बनो। अपनी माँ को भूखा मत मारो। मैं अपने आप को रोक नहीं सका। दौड़ कर अपनी माँ से लिपट गया।कलाम ने अपने पिता के बारे में लिखा मै 6 साल का था। जब मैंने पिता जी को अपना दर्शन जिन्दगी में उतारते देखा। उन्होंने तीर्थ यात्रियों को रामेश्वरम् से धनुष कोंडी लाने ले जाने के लिए एक नाव बनाई। कुछ समय बाद रामेश्वरम तट पर एक भंयकर चक्रवात आया, जिससे हमारी नाव टूट गई। पिताजी ने अपना नुकसान चुपचाप बर्दाश्त कर लिया। सच तो यह है कि वे अपने व्यक्तिगत नुकसान से नहीं, इस बडी त्रासदी से ज्यादा परेशान थे। एपीजे कलाम का पारिवारिक वातावरण अत्यंत धार्मिक था। किसी भी तरह की कट्टरपंथी नहीं थी। धर्म के प्रति ऊंचा दर्शन था। हिन्दू, मुसलमानों में किसी भी तरह का भेद नहीं था। कलाम जी की दादी व मां सोने से पहले रामायण, महाभारत एवं कुरान से सम्बंधित कहानियां सुनाया करते थे। इनकी शुरूवाती शिक्षा रामेश्वरम के प्राथमिक पाठशाला में हुई। हाईस्कूल शवाटर्ज कालेज से किया। 1950 में इण्टरमीडिएट की पढाई तिरुचिरापल्ली के सैट जोसेफ कॉलेज से हुई। बीएससी परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद मद्रास इन्स्टीट्यूट ऑफ़ टैक्नोलॉजी में प्रवेश लिया। यहां की पढाई खर्चीली थी। महीने में कम से कम 1 हजार रू खर्चा आता था। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण इनकी बहिन जोहरा ने बडी मदद की। अपने हाथ के सोने के कंगन गिरवी रखकर उनके महीने के खर्चे की पूरी व्यवस्था की। बहिन के इस त्याग से एपीजे कलाम बडे प्रभावित हुए। उन्होंने संकल्प लिया कि मैं कठोर परिश्रम करूंगा। छात्रवृत्ति प्राप्त करके बहिन के गिरवी रखें हुए सोने के कंगनो को छूडवाऊंगा। अंत में उन्हें तरह-तरह की छात्रवृत्तिया मिलती रही। अपने मुकाम पर सफल होते रहे।

अपने विद्यार्थी जीवन में तीन शिक्षकों से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। प्रथम शिक्षक के रूप में प्रो. स्पान्डर थे। जिससे उन्होंने तकनीकी वैमानिकी गति का ज्ञान प्राप्त किया। दूसरे प्रो. केएवी पनदलाई थे। जिन्होंने एयरो स्ट्रक्चर डिजाइन एन्ड एनालिसिस विषय के गोपनीय पहलुओं की जानकारी दी। तीसरे प्रोफेसर में नरसिंह राव का नाम लिया जाता है। जिन्होंने इन्हें तरल गतिकी में पारंगत किया। उनके सन्दर्भ मे कलाम जी ने लिखा अगर प्रोफेसर राव की कृपा नहीं होती और वैमानिकी गतिकी के समीकरणों का हल निकालने के लिए वे मुझे प्रेरित नहीं करते, तो मेरे पास यह विलक्षण औजार नहीं होता। एमआईटी ‘तमिल संगम द्वारा निबन्ध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। एपीजे कलाम ने भी इस प्रतियोगिता में प्रतिभाग किया। उनके द्वारा लिखित निबन्ध ”लेट अस मेक अवर ऑन एयर क्राफ्ट सबसे उत्कृष्ट रहा। उन्हें प्रथम पुरस्कार मिला। प्रोफेसर सहाव उनकी प्रतिभा से बडे खुश थे। उन्होंने कहा तुम मेरे प्रिय छात्र हो। तुम्हारी कडी मेहनत ही भविष्य में तुम्हारे शिक्षकों का नाम रोशन करेगी। ईश्वर तुम्हारी उम्मीदें पूरी करे। तुम्हें सहारा दे, रास्ता दे, भविष्य की यात्रा में तुम पथप्रदर्शक बनें। गुरु जी की भविष्यवाणी सफल हुई। एपीजे अब्दुल कलाम बहुत बड़े वैज्ञानिक बनें। 1990 में वे पदम विभूषण से सम्मानित हुए। इसी वर्ष उन्हें जादवपुर विश्वविद्यालय द्वारा डाक्टर आफ साइन्स की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया। 15 अक्तूबर 1991 में अपने पद से सेवा निवृत्त हुए। 1997 में उन्हें भारत का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1 मई 1998 में पोखरण राजस्थान में सफल परमाणु परीक्षण किया गया। 25 जुलाई 2002 को 11वें राष्ट्रपति के पद पर आसीन हुए। इस प्रकार साधारण परिवार में जन्म लेने के बाद ”मिसाइल मैन” बने। राष्ट्रपति जैसे महत्वपूर्ण गौरव मय पद पर आसीन हुए.

इस प्रकार साधारण परिवार में जन्म लेने के बाद से ”मिसाइल मैन” बने और राष्ट्रपति जैसे महत्वपूर्ण गौरव मय पद पर आसीन हुए। उन्होंने लिखा-मैं नहीं चाहता कि मैं दूसरे के लिए कोई उदाहरण बनूं, लेकिन मुझे विश्वास है कि कुछ लोग मेरी इस कहानी से प्रेरणा जरूर ले सकते हैं और जीवन में संतुलन लाकर वह सन्तोष प्राप्त कर सकते हैं जो सिर्फ आत्मा के जीवन में ही पाया जा सकता है। मेरे परदादा अबुल मेरे दादा पकीर और मेरे पिता जैनुलाबद्दीन की पीढ़ी अब्दुल कलाम के साथ खत्म होती है, लेकिन उस सार्वभौम ईश्वर की कृपा इस पुण्य भूमि पर खत्म नहीं होगी। क्योंकि यह शाश्वत है। इस प्रकार विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए 27 जुलाई 2015 को यह विभूति सदा सदा के लिए अस्त हो गई।

लेखक: राज्यपाल पुरस्कार प्राप्त शिक्षक अखिलेश चन्द्र चमोला