देश में दशहरा पर्व की रौनक छाई हुई है। सभी लोग शाम को होने वाले दशहरा उत्सव की तैयारी में जुटे हैं। मैदानों और पार्कों में रावण के पुतले दहन करने के लिए तान दिए गए हैं। देशवासी विजयदशमी के उल्लास में सराबोर हैं। आज बात करते हैं भारत में उन जगहों की जहां का दशहरा विश्व प्रसिद्ध है। देश के कई शहरों में यह आयोजन किया जाता है। लेकिन कई राज्यों में दशहरा पर्व देखने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं। इन जगहों पर दशहरा बहुत भव्य तरीके से मनाया जाता है और यहां की रौनक बिल्कुल अलग होती है। अब जानते हैं कि भारत की किन जगहों पर सबसे बड़ा दशहरा मनाया जाता है। पहले बात करेंगे कर्नाटक के शहर में मैसूर की। मैसूर का दशहरा मैसूर में दशहरे का त्योहार कई दिनों तक मनाया जाता है। यहां का दशहरा दुनिया भर में प्रसिद्ध है। दशहरा को कर्नाटक का प्रादेशिक त्योहार भी माना जाता है। यहां नवरात्रि से ही दशहरा मेला की शुरुआत हो जाती है जिसमें हजारों लोग शामिल होते हैं। मैसूर का नाम महिषासुर के नाम पर रखा गया था। मैसूर महल को एक दुल्हन की तरह सजाया जाता है और शोभायात्रा निकाली जाती है। शहर में दशहरा का त्योहार बहुत ही भव्य तरीके से मनाया जाता है । इस त्योहार को यहां के लोग नबाबबा कहते हैं। इस त्योहार में मैसूर के सबसे मशहूर शाही वोडेयार परिवार सहित पूरा शहर शामिल होता है। मैसूर पैलेस को 10 दिनों तक सजा कर रखा जाता है। साथ ही यहां सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। इसके अलावा महल के मैदान के सामने एक दशहरा प्रदर्शन का भी आयोजन किया जाता है। ऐसे ही कर्नाटक का मंगलौर भी अपने भव्य दशहरे के कार्यक्रम के लिए मशहूर यहां का दशहरा देशभर से श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। दशहरे पर यहां का टाइगर डांस पूरी दुनिया में आकर्षण का केंद्र है। यहां पर इस दिन कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
हिमाचल के कुल्लू का दशहरा अंतरराष्ट्रीय फेस्टिवल घोषित किया गया
अब बात करेंगे हिमाचल प्रदेश की। कुल्लू शहर शांति और अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता है। वहीं दशहरा के दिन इस शहर का भव्य आयोजन सभी लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। कुल्लू में दशहरा का त्योहार भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। जब पूरे देश में दशहरा खत्म होता है, उसी दिन यहां पर दशहरे का उत्सव शुरू होता है। कुल्लू में यह पर्व सात दिनों तक मनाया जाता है। जहां पूरे देश में दशहरा असत्य पर सत्य की जीत के रूप में मनाया जाता है वहीं कुल्लू में काम, क्रोध, मोह, लोभ और अहंकार के नाश के तौर पर पांच जानवरों की बलि देकर इसे मनाते हैं। ‘कुल्लु के दशहरे को अंतर्राष्ट्रीय फेस्टिवल घोषित किया गया है’। यहां बड़ी तादात में पर्यटक दशहरे का मेला देखने के लिए आते हैं। ढालपुर मैदान में मनाया जाने वाले दशहरा दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यहां दशहरा का त्योहार मनाने की परंपरा 17वीं शताब्दी से चली आ रही है। यहा दशहरे के दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है। इसी प्रकार दक्षिण भारत के मदिकेरी में दशहरे का त्योहार 10 दिनों तक मनाया जाता है। इसकी भव्यता के लिए इसे मदिकेरी दशहरा भी कहा जाता है। यहा दशहरे को मनाने की तैयारी तीन महीने पहले से ही शुरु हो जाती है। यहां के दशहरे को देखने के लिए काफी दूर- दूर से लोग आते हैं। दशहरे के त्योहार की वजह से ही इस छोटे से शहर की रौनक बहुत बढ़ जाती है।
कोटा और बस्तर में दशहरा पर्व मनाने की अलग रही है परंपरा
वैसे तो राजस्थान का कोटा शहर अपनी कोचिंग क्लासेज के लिए पूरे देश भर में प्रसिद्ध है। लेकिन यहां का दशहरा भी लोगों को लुभाता रहा है। बता दें कि कोटा में दशहरा काफी धूमधाम से मनाया जाता है। यहां का दशहरा देखने के लिए बहुत भीड़ जुटती है। कोटा में दशहरे मेले का आयोजन सदियों से किया जाता रहा है। दुनिया भर के लोग यहां की भव्यता देखने इकट्ठा होते हैं। दशहरे के दिन यहां पर भजन कीर्तन के साथ-साथ कई प्रकार की प्रतियोगिताएं भी होती हैं। चंबल नदी के किनारे बसा यह शहर दशहरा पर अपनी अलग छटा बिखेरता है। अब बात करेंगे देश के आदिवासी जनपद बस्तर की। यह शहर भी विजयदशमी पर्व मनाने के लिए प्रसिद्ध है। बता दें कि बस्तर में दशहरा बहुत भव्य तरीके से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार भगवान राम ने अपने 14 वर्षों का वनवास यहीं पर बिताया था। बस्तर के जगदलपुर में मां दंतेश्वरी का मंदिर में दशहरा बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस मौके पर यहां हर साल हजारों आदिवासी आते हैं। यहां रावण का दहन नहीं किया जाता है। राजा पुरुषोत्तम ने यहां पर रथ चलाने की प्रथा शुरू की थी। इसी कारण यहां पर रावण दहन की जगह दशहरे के दिन रथ चलाने की परंपरा है। इनके अलावा राजधानी दिल्ली के रामलीला मैदान पर भी दशहरा मनाने की परंपरा काफी समय से चली आ रही है। दिल्ली के रामलीला मैदान को राजनीति के तौर पर भी जाना जाता है। दशहरे के दिन तमाम नेता पहुंचते रहे हैं।
शंभू नाथ गौतम