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आज एक ऐसे मिशन की बात करेंगे जिसने देश की आजादी से पहले और बाद में भी लोगों में अलख जगाने में बड़ी भूमिका निभाई है। लेकिन इस मिशन की परिस्थितियां हमेशा जटिल रहीं हैं। ‌कह सकते हैं जो चुनौती पहले थी वह आज भी बनी हुई है। कहने को यह देश का ‘चौथा स्तंभ’ है। लेकिन इस मिशन से जुड़े पत्रकारों और मीडिया कर्मियों में हमेशा से असुरक्षित की भावना महसूस की जाती है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है केंद्र हो या राज सरकारें पत्रकारिता और पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर बातें तो बड़ी-बड़ी करती हैं लेकिन इसे अमल में लाया नहीं जाता है। इसके बावजूद इस क्षेत्र से जुड़े लोग अपनी पूरी ईमानदारी के साथ मैदान में डटे हुए हैं। आज राष्ट्रीय प्रेस दिवस है।

आज हमारी चर्चा का विषय है पत्रकारिता है। देश में 16 नवंबर का दिन ‘राष्ट्रीय प्रेस दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। भारत में प्रेस की स्वतंत्रता भारतीय संविधान के अनुच्छेद-19 में भारतीयों को दिए गए अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार से सुनिश्चित होती है। राष्ट्रीय प्रेस को मनाने का मुख्य उद्देश्य प्रेस की आजादी के महत्व के प्रति जागरूकता फैलाना है। भारत में प्रेस ने आजादी की लड़ाई में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर गुलामी के दिन दूर करने का भरसक प्रयत्न किया।साथ ही ये दिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखने और उसका सम्मान करने की प्रतिबद्धता की बात करता है। प्रेस की आजादी के महत्व के लिए दुनिया को आगाह करने वाला ये दिन बताता है कि लोकतंत्र के मूल्यों की सुरक्षा और उसे बहाल करने में मीडिया अहम भूमिका निभाता है।

बता दें कि प्रथम प्रेस आयोग ने भारत की प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने और पत्रकारिता में उच्च आदर्श स्थापित करने के उद्देश्य से एक प्रेस परिषद की कल्पना की गई थी। भारत की 4 जुलाई, 1966 को प्रेस परिषद की स्थापना हुई, जिसने 16 नवंबर, 1966 से अपना औपचारिक कामकाज शुरू किया। तब से हर साल 16 नवंबर को राष्ट्रीय प्रैस दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज पत्रकारिता का क्षेत्र व्यापक हो गया है। पत्रकारिता जन-जन तक सूचनात्मक, शिक्षाप्रद, मनोरंजनात्मक संदेश पहुंचाने की कला एवं विधा है। लोकतंत्र के मूल्यों की सुरक्षा और उसे बहाल करने में मीडिया अहम भूमिका निभाता है। इस कारण सरकारों को पत्रकारों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करनी चाहिए।

शंभू नाथ गौतम