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Chandrayaan-3 Landing: सब कुछ ठीक रहा तो आज का दिन हर हिन्दुस्तानी के लिए गर्व का दिन होने वाला है। अब से कुछ ही घंटे बाद हमारा चंद्रयान-3 चंद्रमा पर उतरने जा रहा है। पूरा देश इस ऐतिहासिक पल का इंतजार कर रहा है। अंतरिक्ष में भारत की इस बड़ी छलांग पर पूरी दुनिया की नजरें हैं। यह सिर्फ हमारी नहीं बल्कि पूरी मानवता की उपलब्धि होगी। देशभर में लोग इसरो के सफल मिशन के लिए भगवान से प्रार्थना कर रहे हैं।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने 14 जुलाई 2023 को दोपहर 2:35 बजे चंद्रयान-3 प्रक्षेपण कर चद्रमा की ओर रवाना किया था। करीब 41 दिन बाद आज यानी बुधवार को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान -3 की सॉफ्ट लैंडिंग के लिए निर्धारित समय लगभग शाम 6 बजकर 4 मिनट है। विक्रम लैंडर के पावर्ड लैंडिंग आज शाम 05:45 पर होने की उम्मीद है। मिशन ऑपरेशन कॉम्प्लेक्स (MOX) में लैंडिंग ऑपरेशन का सीधा प्रसारण बुधवार को शाम 5 बजकर 20 मिनट पर शुरू होगा। लैंडिंग की लाइव गतिविधियां इसरो वेबसाइट, यूट्यूब चैनल, फेसबुक और सार्वजनिक प्रसारक डीडी नेशनल टीवी पर देखी जा सकेंगी।

Chandrayaan-3 है क्या?

इसरो के मुताबिक, चंद्रयान-3 मिशन चंद्रयान-2 का ही अगला चरण है, जो चंद्रमा की सतह पर उतरकर परीक्षण करेगा। इसमें एक प्रणोदन मॉड्यूल, एक लैंडर और एक रोवर लगा है। चंद्रयान-3 का फोकस चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित लैंड करने पर है। मिशन की सफलता के लिए नए उपकरण बनाए गए हैं। एल्गोरिदम को बेहतर किया गया है। जिन वजहों से चंद्रयान-2 मिशन चंद्रमा की सतह नहीं उतर पाया था, उन पर फोकस किया गया है। भारत का यह मिशन चंद्रयान-2 की क्रैश लैंडिंग के चार साल बाद भेजा जा रहा है। चंद्रयान-3 मिशन सफल होता है, तो अंतरिक्ष के क्षेत्र में ये भारत की एक और बड़ी कामयाबी होगी।

चंद्रयान-3 सॉफ्ट लैंडिंग पर इसरो की ओर से कहा गया है कि मिशन तय समय पर है और सिस्टम नियमित जांच से गुजर रहा है। इसने चंद्रमा की नजदीकी छवियों की एक श्रृंखला भी जारी की। यह मिशन भारत को अमेरिका, रूस और चीन के बाद चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का चौथा देश बना देगा। चंद्रमा का दक्षिणी ध्रुव अपनी कठिन और कठोर परिस्थितियों के कारण कठिन माना जाता है।यह मिशन, यदि सफल रहा, तो भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाला एकमात्र देश बन जाएगा।

चंद्रमा पर क्यों भेजे जाते हैं चंद्र मिशन?

1969 में नील आर्मस्ट्रांग अमेरिका के अपोलो 11 मिशन के दौरान चंद्रमा पर चलने वाले पहले व्यक्ति थे। इस ऐतिहासिक मिशन के दशकों बाद भी चंद्रमा का पता लगाना मनुष्य के लिए महत्वपूर्ण हो गया। विशेषज्ञों का कहना है कि जब पृथ्वी और ब्रह्मांड के इतिहास का अध्ययन करने की बात आती है तो चंद्रमा एक खजाना है। चंद्रमा पर मिशन भेजने के उद्देश्यों को लेकर नासा की वेबसाइट कहती है कि चंद्रमा पृथ्वी से बना है और यहां पृथ्वी के प्रारंभिक इतिहास के साक्ष्य मौजूद हैं। हालांकि, पृथ्वी पर ये साक्ष्य भूगर्भिक प्रक्रियाओं की वजह से मिट चुके हैं। नासा के मुताबिक, चंद्रमा वैज्ञानिकों को प्रारंभिक पृथ्वी के नए दृष्टिकोण प्रदान करेगा। पृथ्वी-चंद्रमा प्रणाली और सौर मंडल कैसे बने और विकसित हुए जैसे सवालों के जवाब वैज्ञानिकों मिल सकते हैं। इसके साथ ही पृथ्वी के इतिहास और संभवतः भविष्य को प्रभावित करने में क्षुद्रग्रह प्रभावों की भूमिका के बारे में भी पता लगाया जा सकता है।

अमेरिकी एजेंसी की मानें तो चंद्रमा अनेक रोमांचक इंजीनियरिंग चुनौतियां पेश करता है। यह जोखिमों को कम करने और भविष्य के मिशनों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रौद्योगिकियों, उड़ान क्षमताओं, जीवन समर्थन प्रणालियों और शोध तकनीकों का परीक्षण करने के लिए एक उत्कृष्ट जगह है।

Chandrayaan-3 के चांद पर उतरने से क्या फायदा होगा?

चंद्रमा की यात्रा मनुष्यों को दूसरी दुनिया में रहने और काम करने का पहला अनुभव प्रदान करेगी। यात्रा हमें अंतरिक्ष के तापमान और चरम विकिरण में उन्नत सामग्रियों और उपकरणों का परीक्षण करने की अनुमति देगी। मनुष्य सीखेंगे कि मानवीय कार्यों में सहायता करने, दूरस्थ स्थानों का पता लगाने और खतरनाक क्षेत्रों में जानकारी इकट्ठा करने के लिए रोबोटों का सर्वोत्तम उपयोग कैसे किया जाए। नासा कहता है कि चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उपस्थिति स्थापित करके, मनुष्य पृथ्वी पर जीवन को बढ़ाएंगे और अपने सौर मंडल के बाकी हिस्सों और उससे आगे का पता लगाने के लिए तैयार होंगे। पृथ्वी से कम गुरुत्वाकर्षण और अधिक विकिरण वाले वातावरण में अंतरिक्ष यात्रियों को स्वस्थ रखना चिकित्सा शोधकर्ताओं के लिए एक अहम चुनौती है। चंद्रमा की खोज तकनीकी नवाचारों और अनुप्रयोगों और नए संसाधनों के उपयोग के लिए नए व्यावसायिक मौके भी मुहैया करती है। अंततः, चंद्रमा पर चौकियां स्थापित करने से लोगों और खोजकर्ताओं को पृथ्वी से परे ग्रहों और उपग्रहों तक अन्वेषण और बसाहट का विस्तार करने में मदद मिलेगी।

Chandrayaan-3 की सफलता से देश क्या फायदा होगा?

चंद्रयान-3 मिशन की सफलता से बहुत कुछ जुड़ा है। इस मिशन की सफलता भारत के लिए खेल पलट सकती है। यह विकसित भारत बनने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। यह अंतरिक्ष अभियानों में भारत की ताकत को दिखाएगा। अभी तक सिर्फ तीन देशों को चांद पर अंतरिक्ष यानों को उतारने में सफलता मिली है। ये देश हैं अमेरिका, रूस और चीन। चंद्रयान-3 मिशन सफल हुआ तो भारत भी इस क्लेब में शामिल हो जाएगा। इस मिशन से कई तरह के मौके खुल जाएंगे। इन अवसरों से भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था को दौड़ने के लिए बड़ी खुराक मिलेगी। चांद पर खोज से जुड़ा यह मिशन धरती पर जियो पॉलिटिक्‍स के लिहाज से भी बहुत खास है। सफल होने पर यह भारत को अमेरिका, रूस और चीन के साथ दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों में खड़ा कर देगा।

देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा उछाल मिलेगा

चंद्रयान-3 मिशन की सफलता से अंतिरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा प्रोत्साहन मिलने वाला है। दुनिया ने पहले ही अंतरिक्ष संबंधी प्रयासों से रोजमर्रा की जिंदगी में मिले फायदे देखे हैं जैसे कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर जल पुनर्चक्रण के साथ स्वच्छ पेयजल तक पहुंच, स्टारलिंक द्वारा विश्वभर में इंटरनेट का प्रसार, सौर ऊर्जा उत्पादन में वृद्धि और स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियां आदि, उपग्रह से मिलने वाली तस्वीरों और नौवहन के वैश्विक आंकड़ों की बढ़ती मांग के साथ कई रिपोर्टें दिखाती हैं कि दुनिया पहले ही अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था की तेजी से वृद्धि के चरण में है। ‘स्पेस फाउंडेशन’ ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था 2023 की दूसरी तिमाही में 546 अरब डॉलर के मूल्य पर पहुंच चुकी है। यह आंकड़ा पिछले दशक में इस मूल्य में 91 प्रतिशत की वृद्धि को दिखाता है। आंकड़ों के अनुसार भारत की स्‍पेस इकॉनमी 2020 तक 9.6 अरब डॉलर की थी। 2025 तक इसके बढ़कर 13 अरब डॉलर हो जाने के आसार हैं। चंद्रमा पर सफल लैंडिंग भारत की तकनीकी क्षमता को भी बयां करेगी। आज भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र निजी कंपनियों के लिए भी खुला है। देश में 140 से ज्‍यादा स्‍पेस-टेक स्‍टार्टअप हैं। इनमें स्‍कायरूट, सैटश्‍योर, ध्रुव स्‍पेस और बेलाट्रिक्‍स जैसी कंपनियां शामिल हैं। ये ऐसी टेक्‍नोलॉजी बनाने पर काम कर रही हैं जिनका रोजमर्रा के जीवन में इस्‍तेमाल है। ये कंपनियां सैटेलाइट आधारित फोन सिग्‍नल, ब्रॉडबैंड, ओटीटी से लेकर 5जी और सोलर फार्म तक में स्‍पेस टेक्‍नोलॉजी का इस्‍तेमाल करने के मौके तलाश रही हैं।

भारत का Chandrayaan-1 भी रहा था बेहद कामयाब

भारत की चंद्रयान-1 के साथ चंद्रमा पर पहुंचने की पहली कोशिश अपने लगभग हर उद्देश्य और वैज्ञानिक लक्ष्यों में कामयाब थी, जिसमें पहली बार चांद की सतह पर पानी के सबूत मिले थे। लेकिन इसरो का, दो साल के लिए निर्धारित इस मिशन के 312 दिन पूरे होने के बाद ही अंतरिक्षयान से संपर्क टूट गया था। चंद्रमा के लिए भारत का पहला मिशन, 22 अक्टूबर 2008 को एसडीएससी शार, श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक लॉन्च किया गया था। अंतरिक्ष यान चंद्रमा के रासायनिक, खनिज और फोटो-भूगर्भिक मानचित्रण के लिए चंद्रमा की सतह से 100 किमी की ऊंचाई पर चंद्रमा के चारों ओर परिक्रमा कर रहा था। अंतरिक्ष यान में भारत, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, स्वीडन और बुल्गारिया में निर्मित 11 वैज्ञानिक उपकरण थे। सभी प्रमुख मिशन उद्देश्यों के सफल समापन के बाद, मई 2009 के दौरान कक्षा को 200 किमी तक बढ़ा दिया गया है। उपग्रह ने चंद्रमा के चारों ओर 3400 से अधिक परिक्रमाएं कीं और मिशन तब समाप्त हुआ जब 29 अगस्त को अंतरिक्ष यान के साथ संचार खो गया था।

उसके बाद भारत ने 6 सितंबर 2019 को चंद्रयान-2 मिशन के तहत प्रज्ञान रोवर लेकर जा रहे विक्रम लैंडर के साथ चांद की सतह पर पहुंचने का फिर से प्रयास किया। हालांकि, चंद्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर दूर लैंडर से संपर्क टूट गया और नासा द्वारा ली गयी तस्वीरों ने बाद में पुष्टि की कि यह चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया।