नवरात्रि के व्रत शुरू हो रहे हैं, हमारे देश में व्रत-त्यौहार में साबूदाना खाना सामान्य बात है। इसे पूर्ण शाकाहारी एवं व्रत के नियमों के अनुसार सात्विक भोजन माना जाता है। बल्कि कई जगह तो इसे प्रसाद के तौर पर भी चढ़ाया जाता है। इसके अलावा साबूदाना के गुण इसे स्वास्थ्य के लिए अच्छा बनाते हैं। और कई बार बीमारी में भी साबूदाना खिलाया जाता है। लेकिन अगर आपको पता चले कि आपके द्वारा व्रत में खाया जाने वाला साबूदाना शाकाहारी नहीं मांसाहरी है तो आप इस पर यकीन नहीं करेंगे। और जब आपको साबूदाना की हकीकत पता चलेगी तो फिर आप अगली बार साबूदाना खाने से पहले दस बार सोचेंगे।
आखिर क्यों साबूदाना को मांसाहारी कहा जा रहा है।
वैसे साबूदाना बनता तो एक प्राकृतिक वनस्पति से ही है। इसे सागो पाम के पौधे के तने व जड़ में पाए जाने वाले गूदे से बनाया जाता है। परन्तु साबूदाना को बनाने की प्रक्रिया ही इसे मांसाहारी बना देती है। बता दें कि तमिलनाडु ही देश में एक ऐसा राज्य है जहां पर बड़ी मात्रा में साबूदाना का निर्माण होता है। यहाँ बड़े पैमाने पर सागो पाम के पेड़ पाए जाते हैं। तमिलनाडु में तकरीबन जितनी भी फैक्ट्रियां हैं, वहां साबूदाना लाकर मांसाहारी बना दिया जाता है।
साबूदाना बनाने की प्रक्रिया
अब आपको बनाते हैं कि साबूदाना कैसे बनाया जाता है। तमिलनाडु में इन फैक्ट्रियों में सबसे पहले साबूदाना के पेड़ की जड़ों को काटकर लाया जाता है। जड़ों को करीब 40 फिट गहरे बड़े-बड़े गड्ढों में सड़ने के लिए डाल दिया जाता है, ताकि कुछ दिनों बाद ये जड़े सड़ जाएं और इनमें से आसानी से साबूदाना निकाला जाए। इन खुले गड्ढों के ऊपर बड़ी-बड़ी लाइटें लगाई जाती हैं, जो साबूदाना को मांसाहारी बनाने का सबसे बड़ा कारण है। दरअसल इन लाइटों की रोशनी से हजारों कीड़े-मकोड़े आकर्षित होते हैं और ये कीड़े या तो इन खुले गड्ढों में गिरते रहते हैं या फिर खुद ही गड्ढों में जाना शुरू कर देते हैं। इसके अलावा फैक्ट्री के मजदूर इन साबूदाने के गड्ढो में पानी डालते रहते हैं, जिसकी वजह से इनमें सफेद रंग के कीट पैदा हो जाते हैं। यहाँ सड़ने का, कीड़े-मकोड़े गिरने का और सफेद कीट पैदा होने का क्रम करीब 5 से 6 महीनों तक चलता रहता है। और फिर मशीनों से इस कीड़े-मकोड़े युक्त गूदे को आटे जैसी शक्ल देकर मशीनों द्वारा छोटा-छोटा गोल आकार देकर साबूदाना तैयार किया जाता है। अंत में यह साबूदाना पॉलिश किया जाता है और फिर इसे पैक करके बाजार में बेचने के लिए भिजवा दिया जाता है, वह भी बिना सफेद कीड़े निकाले हुए। और इस तरह साबूदाना शाकाहारी होते हुए भी मांसाहारी बन जाता है। अब आप समझ लीजिये बाजार में जो साबूदाना हम खा रहे हैं, वह असल में शाकाहारी नहीं, बल्कि मांसाहारी साबूदाना खा रहे हैं। जो कि व्रत के नियमों के हिसाब से पूर्ण रूप से एक तामसिक भोजन है।