शीतकाल में पर्वतीय क्षेत्रों में ऊंचाई व ठंड के हिसाब से सेब, नाशपाती, आड़ू,प्लम, खुबानी, अखरोट आदि के पौधों का रोपण किया जाता है। फल पौध लगाने से पूर्व, स्थान का चयन, समुद्र तल से ऊंचाई,किस्मौं का चयन, तापमान, सूर्य की दिशा (ढलान) भूमि का पी.एच.मान आदि बातों का ध्यान रखना आवश्यक है।
भूमि का चुनाव एवं मृदा परीक्षण :
फल दार पौधौ का रोपण पथरीली भूमि को छोड़कर सभी प्रकार की भूमि में किये जा सकता हैं परन्तु जीवाँशयुक्त बलुई दोमट भूमि जिसमें जल निकास की व्यवस्था हो सर्वोत्तम रहती है। जिस भूमि में उद्यान लगाना है, उस भूमि का मृदा परीक्षण अवश्य कराएं जिससे मृदा का पीएच मान (पावर औफ हाइड्रोजन या पोटेंशियल हाइड्रोजन) व चयनित भूमि में उपलव्ध पोषक तत्वों की जानकारी मिल सके। पीएच मान मिट्टी की अम्लीयता व क्षारीयता का एक पैमाना है यह पौधों की पोषक तत्वों की उपलब्धता को प्रभावित करता है यदि मिट्टी का पीएच मान कम (अम्लीय)है तो मिट्टी में चूना मिलायें यदि मिट्टी का पीएच मान अधिक (क्षारीय) है तो मिट्टी में कैल्सियम सल्फेट, (जिप्सम) का प्रयोग करें। भूमि के क्षारीय व अम्लीय होने से मृदा में पाये जाने वाले लाभ दायक जीवाणुओं की क्रियाशीलता कम हो जाती है साथ ही हानीकारक जीवाणुओ /फंगस में बढ़ोतरी होती है साथ ही मृदा में उपस्थित सूक्ष्म व मुख्य तत्त्वों की घुलनशीलता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अधिकतर फल पौधों के लिए 5.5 – 7.5 के पीएच की भूमि उपयुक्त रहती है।
रेखांकन तथा गढ्ढों की खुदाई :
पौधों के सही विकास व अधिक फलत तथा अच्छे गुणों वाले फल प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि पौधों को निश्चित दूरी पर लगाया जाय।
पौध रोपण की उचित दूरी
सेब नानस्पर – 6 X 6 M
सेब स्पर। – 4 X 4 M
नाशपाती- 7 X 7 M
आडू ,प्लम खुवानी- 6×6 M
अखरोट 10 X 8 M
रेखांकन एवं गड्ढा खुदान:
वर्गाकार या आयता कार तथा अधिक ढलान वाले पहाड़ी स्थानों में कन्टूर विधि में रेखांकन कर, 1x1x1 मी॰ आकार के गढ्ढे माह नवम्बर / दिसंबर में खोदकर खुला छोड देना चाहिए ताकि सूर्य की तेज गर्मी से कीडे़ मकोड़े मर जाय। गड्डा खोदते समय पहले ऊपर की 6″ तक की मिट्टी खोद कर अलग रख लेते हैं इस मिट्टी में जींवास अधिक मात्रा में होता है गड्डे भरते समय इस मिट्टी को पूरे गड्डे की मिट्टी के साथ मिला देते हैं इसके पश्चात एक भाग अच्छी सडी गोबर की खाद या कम्पोस्ट जिसमें ट्रायकोडर्मा मिला हुआ हो को भी मिट्टी में मिलाकर गढ्ढों को जमीन की सतह से लगभग 20 से 25 से॰मी॰ ऊंचाई तक भर देना चाहिए ताकि पौध लगाने से पूर्व गढ्ढों की मिट्टी ठीक से बैठ कर जमीन की सतह तक आ जाये।
पौधों का चुनाव :
पौधे क्रय करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए।
1- सही जाति के पौधे हों।
2- पौधें स्वस्थ एवं मजबूत हों।
3- कलम का जुड़ाव ठीक हो।
4- चश्मा (कलम) मूलवृंत पर 15 से 20 से॰मी॰ उँचाई पर लगा हों।
5- पौधों की उम्र 1 वर्ष से कम तथा 2 वर्ष से अधिक ना हो।
6- पौधों की मुख्य जड़ कटी न हो।
पौध विश्वसनीय स्थान जैसे राजकीय संस्था, कृषि विश्वविद्यालय अथवा पार्वती क्षेत्रों में स्थित आसपास की पंजीकृत पौधालयों से ही क्रय किया जाय। आडू,प्लम , खुबानी की बीजू पौधों पर ग्राफ्ट किये पौधे ही लगायें। मैदानी क्षेत्रों में स्थित पौधशालाओं में रूटैड कट्टिग्स पर एक ही साल में पौधे तैयार हो जाते हैं कट्टिग्स पर ग्राफ्ट किये पौधे पर्वतीय क्षेत्रों में नहीं चल पाते। आडू,पल्म और खुबानी का रोपण यात्रा मार्ग के आसपास अधिक से अधिक करें इनसे फल मई से लेकर जुलाई अगस्त तक मिलते हैं इन्हीं दिनों यात्री अधिक संख्या में उत्तराखंड में भ्रमण पर आते हैं।
पौध लगाने का समय तथा विधि :
शीतकालीन फल पौधों के लगाने का उपयुक्त समय जनवरी से फरवरी तक का है।
पौधे लगाते समय ध्यान देने योग्य बातें-
1- पौधों को गढ्ढे के मध्य में लगाना चाहिए।
2- पौधों को एकदम सीधा लगाना चाहिए।
3- पौधों को मिट्टी में इतना दबाया जाय जितना पौधालय में दबा है।
4- यह भी ध्यान रखा जाय कि किसी भी दशा में पौधों की कलम के जोड़ वाला भाग मिट्टी से ना ढकने पायें।
5- पौध लगाने के बाद जड़ के आस पास की मिट्टी को पैरों से खूब दबा देना चाहिए।
पौधे यदि दूर से लाये गये है तो लगाने से पूर्व उन्हें Trenching अर्थात गडें में कुछ समय के लिए दबा दें, जिससे पूरे पौधे में पानी का संचार हो सके। पौध लगाने से पूर्व पौधे को ग्राफ्ट से 45-50 सेंटीमीटर पर अवश्य काट लें। शीतोष्ण फलों बिशेष कर सेब का रोपण करते समय व्यवसायिक किस्मों के साथ 25 से 33 % उचित परागण कर्ता किस्मों का रोपण उचित दूरी पर करें जिससे व्यवसायिक किस्मों में प्रर्याप्त परागण हो सके।
सेब :
समुद्र तल से 1600 से 2500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित क्षेत्र जहां पर पुष्पन एवं फलन के लिए सर्दियों में 800 से 1200 घंटे अति ठंढ यानि 7 डिग्री सैंटीग्रेट से कम तापमान रहता है, सेब की खेती के लिए उपयुक्त होता है| सेव के पौधौ के लिए हिमाचल प्रदेश के समीपवर्ती अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र या जो क्षेत्र हिमालय के काफी नजदीक है तथा जिनका ढाल उत्तर दिशा को हो का ही चयन करें।उत्तराखंड भौगोलिक रुप से temperate zone नही है।यहां पर ऊचाई व बर्फीले पहाडौं का लाभ लेते हैं अब उतनी ठंड नही मिल पाती है जितनी सेव के पेडौं के लिए आबश्यक है।
जनपद उत्तरकाशी व हिमाचल से लगे अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र सेब के लिए उपयुक्त है। जहां पर पूर्व में सेव के बाग लगे हों, उन स्थानौं में नये सेव के बाग उगाने में सफलता नहीं मिलती है।उन स्थानौ पर अखरोट व नाशपाती के फल पौधों का रोपण करें।
उन्नत किस्में :
शीघ्र पकने वाली– जुलाई से अगस्त माह में पकने वाली किस्में -टाइडमैन अर्ली वारसेस्टर, अर्ली शनवरी, चौबटिया प्रिंसेज, चौबटिया अनुपम, रेड जून, रेड गाला, फैनी, विनोनी आदि।
मध्य में पकने वाली– अगस्त से सितम्बर में पकने वाली किस्में जैसे- रेड डेलिशियस, रायल डेलिशियस, गोल्डन डेलिशियस, रिच-ए-रेड, रेड गोल्ड, रेड फ्यूजी, जोनाथन आदि ।
देर से पकने वाली– सितम्बर से अक्टूबर में पकने वाली किस्में जैसे- रायमर, बंकिघम, आदि।
स्पर किस्में- रेड चीफ, आर्गन स्पर, समर रेड, सिल्वर स्पर, स्टार स्पर रेड प्रमुख है|
परागण किस्में– सेब में पर परागण के द्वारा फल बनते है, इसलिए बाग लगाते समय मुख्य किस्मों के साथ परागण किस्में लगाई जानी चाहिए, शीघ्र पकने वाली किस्मों के लिए टाइडमैन , मध्य समय में तैयार होने वाली डेलिशियस वर्ग की किस्मों के लिए गोल्डन डेलिशियस, गोल्डन स्पर, रेड गोल्ड आदि परागकारी किस्मों का प्रयोग करना चाहिए।
पुष्प वाली किस्में– इसके अलावा लम्बे समय तक पुष्पन व अधिक मात्रा में पुष्प देने वाले सेब जंगली किस्में जैसे- मन्चूरियन, स्नो ड्रिफ्ट गोल्डन हॉर्नेट आदि किस्में, जो कि मधुमक्खियों को आकर्षित करने में अधिक सक्षम है, को प्रयोग करना अधिक लाभदायक है, उद्यान में फूल आते समय मधुमक्खियों के बक्से रखने से परागण क्रिया को प्रभावी बनाया जा सकता है| 6 से 7 मधुमक्खियों के डिब्बे प्रति हेक्टयर बगीचे के अच्छे परागण के लिए उपयुक्त माना जाता है।
नाशपाती :
समुद्रतल से लगभग 600 मीटर से 2700 मीटर तक इसका फल उत्पादन सम्भव है। इसके लिए 500 से 1500 घण्टे शीत तापमान 7 डिग्री सेल्सियस से नीचे होना आवश्यक है। निचले क्षेत्रों उत्तर से पूर्व दिशा वाले क्षेत्रों में और ऊँचाई वाले दक्षिण से पश्चिम दिशा के क्षेत्रों में नाशपाती के बाग लगाने चाहिए। सर्दी में पड़ने वाले पाले, कोहरे और ठण्ड से इसके फूलों को भारी क्षति पहुँचती है। इसके फूल 3.50 सेल्सियस से कम तापमान पर मर जाते है।
उन्नत किस्में :
अगेती किस्में- अर्ली चाईना, थम्ब पियर, आदि।
मध्यम किस्में- बारटलैट, रैड बारटलैट, मैक्स-रैड बारटलैट, फ्लैमिश ब्यूटी (परागण) और स्टारक्रिमसन आदि।
पछेती किस्में- कान्फ्रेन्स (परागण), डायने डयूकोमिस, काश्मीरी नाशपाती और विन्टर नेलिस आदि|
मध्यवर्ती, निचले क्षेत्र व घटियों हेतु- पत्थर नाख, कीफर (परागण), चाईना नाशपाती, गोला, पंत पीयर-18, विक्टोरिया और पंत पियर-3 आदि।
आडू:
आड़ू की खेती के लिए शीतोष्ण तथा समशीतोष्ण जलवायु उपयुक्त रहती है| आड़ू की खेती मध्य पर्वतीय क्षेत्र, घाटी तथा तराई और भावर क्षेत्रों के सबसे अनुकूल है| इस फसल को कुछ कुछ निश्चित समय के लिए 7 डिग्री सेल्सियस से भी कम तापमान की आवश्यकता होती है।
उन्नत किस्में:
अगेती किस्में- सनरेड, फ्लोरडा किंग, फ्लोरडा सन, सहारनपुर प्रभात, पेरीग्रीन, एलेक्जेन्डर, एल्टन, रैड हैवन, शरबती, शाने पंजाब आदि।
मध्यम समय- एलवर्टा, तोतापरी, (क्रोफोर्ड अर्ली) शान-ए-पंजाब, और फ्लोरडा रेड आदि।
पछेती किस्में- पैराडीलक्स, रेडजून, जुलाई एलबर्टा और गोल्डन बुश आदि।
नैक्ट्रीन किस्में- आर्म किंग, सन रेड, और सनक्रेस्ट आदि।
आलूबुखारा (प्लम-आलूबुखारा या प्लम की उत्तम खेती समुद्रतल से 900 और 2500 मीटर वाले क्षेत्रों में होती है।
यूरोपीय आलूबुखारा को 7º सेल्सीयस से कम ताममान लगभग 800 से 1500 घण्टों तक चाहिए जब कि जापानी आलूबुखारा को उक्त तापमान 100 से 800 घण्टो तक चाहिए| यही कारण है कि इसका उत्पादन कम ऊँचाई वाले स्थानों में भी किया जा सकता है।
उन्नत किस्मै:
1. समुद्र तल से 2000 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों के लिये।
जल्दी पकने वाली किस्में- फर्स्ट प्लम, रामगढ़ मेनार्ड, न्यू प्लम।
मध्य समय में पकने वाली किस्में- विक्टोरिया, सेन्टारोजा।
देर से पकने वाली किस्में- मेनार्ड, सत्सूमा, मैरीपोजा।
2. समुद्र तल से 2000 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों के लिये डोमेस्टिकावर्ग की मुख्य किस्में- ग्रीन गेज, ट्रान्समपेरेन्ट गेज, स्टैनले, प्रसिडेन्ट आदि।
3. समुद्र तल से 1000 मीटर तक ऊँचाई वाले क्षेत्रों के लिये- फ्रंटीयर, रैड ब्यूट, अलूचा परपल, जामुनी, तीतरों, लेट यलो और प्लम लद्दाख।
खुबानी:
खुबानी के लिए 1000 से 2200 मीटर उँचाई तक के ऐसे स्थान उपयुक्त होते है, जहाँ गर्मी (तापक्रम) अधिक न हो इसके अच्छे उत्पादन के लिए ठंडी व शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है।
उन्नत किस्में
शीघ्र तैयार होने वाली- कैशा, शिपलेज अर्ली, न्यू लार्जअर्ली, चौबटिया मधु, डुन्स्टान और मास्काट आदि।
मध्यम अवधि में तैयार होने वाली-
शक्करपारा, सफेदा, केशा, मोरपार्क, टर्की, चारमग्ज आदि।
देर से पकने वाली किस्में- रायल, सेन्ट एम्ब्रियोज, एलेक्स और वुल्कान आदि।
सुखाकर मेवे के रुप में प्रयोग होने वाली किस्में- चारमग्ज, नाटी, पैरा पैरोला, सफेदा, शक्करपारा और केशा आदि।
मीठी गिरी वाली किस्में- सफेदा, पैराचिनार, चारमग्ज, नगेट, नरी और शक्करपारा आदि।