दुबला पतला हड्डियों का ढाचा मात्र शरीर, घुटनों तक खादी की धोती, कंधों पर चादर, हाथ में लाठी, यह था आधुनिक विश्व का युग पुरुष, भारत ने उसे बापू कहकर पुकारा। संसार ने उसकी महामानव के रूप में वन्दना की। वह महात्मा बुद्ध की भांति मानवीय पशुता का शिकार होकर चला गया। हम आज भी उसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम से याद करते हैं। गांधी एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक सोच और एक विचारधारा है। गांधी जी के बारे में जितना लिखा जाये उतना कम है। उन्होंने आजीवन सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर देशवासियों को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। गांधी जी हमेशा कहते थे कि किसी भी तरह के विरोध का मार्ग हिंसात्मक नहीं हो सकता है। अहिंसा में जो शक्ति है, उसकी जगह हिंसा कभी नहीं ले सकती है। भारत के लोग ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के तमाम महान शख़्सियत गांधी जी के व्यक्तित्व से प्रभावित थे। यही कारण है कि उनके जन्मदिवस 02 अक्टूबर को पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर सन 1869 को गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी राजकोट के दीवान थे। माता पुतलीबाई एक धार्मिक महिला थी। बालक मोहनदास पर उसका विशेष प्रभाव था। गांधी जी की शुरूआती शिक्षा राजकोट में हुई। विद्यालय में एक बार निरीक्षक के आने पर आंग्ल भाषा के कुछ शब्द लिखाये गये। गांधी जी ने एक शब्द अशुद्ध लिख दिया। अध्यापक ने आगे के लड़के की नकल करने का संकेत दिया। बालक मोहनदास ने यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। आगे चलकर विश्व को सत्य का संदेश देने वाला बालक भला यह कैसे करता नक़ल? “होनहार विरवान के होत चिकने पात” सत्यवादी हरिश्चन्द्र नाटक ने तो उन्हें पूरी तरह सत्य का दीवाना बना दिया। 13 वर्ष की आयु में इनका विवाह कस्तूरबा के साथ हो गया था। सन 1888 मे बैरिस्टरी पढने इंग्लैंड चले गये। सन 1891 मे इंग्लैंड से लौटकर वकालत आरम्भ की। वास्तव में देश को तो उनकी सेवा एवं कुशल नेतृत्व की आवश्यकता थी। वकालत उनका व्यवसाय नहीं बन सकी। कहाँ सत्य की पूजा और कहाँ वकालात? तभी गुजरात के एक व्यवसायी के मुकदमे के सिलसिले में उन्हें दक्षिण अफ़्रीका जाना पडा। सन 1893 में दक्षिण अफ्रीका के डर्बन बंदरगाह पर गांधी जी उतरे। भारतीयों का वहाँ पल पल पर अपमान किया जाता था। अदालत में गांधी जी को पगडी उतारने को कहा गया। रेलयात्रा करते समय अपमानित किया गया। भारतीयों की इस तरह की दुर्दशा को देख कर गांधी जी का हृदय विद्रोह कर उठा। उन्होंने भारतीयों की दशा सुधारने की कसम खाई। यहाँ से सत्याग्रह का जन्म हुआ। और उन्होंने देश सेवा का व्रत ले लिया।
सत्य अहिंसा पर आधारित सत्याग्रह आन्दोलन दक्षिण अफ्रीका की धरती पर छिड गया। यह मानव इतिहास का अद्भुत आन्दोलन था। प्रधान मंत्री जनरल स्मट्स प्रखर ज्योति के सम्मुख परास्त हो गए। गांधी स्मट्स समझौता हुआ, अफ्रीका में भारतीयों को सम्मान पूर्ण स्थान प्राप्त हुआ। सफलता प्राप्त कर वे भारत लौटे। गांधी जी ने सावरमती नदी के तट पार एक आश्रम की स्थापना की। वह गांधी जी की तपोभूमि थी। यही रहकर इस सावरमती के इस संत ने कोटि कोटि जनता का मार्ग दर्शन करते हुए स्वतन्त्रता आन्दोलन की बागडोर अपने हाथों में ले ली। भारत के राजनीतिक क्षितिज पर गांधी जी का उदय भुवन भास्कर की भाति हुआ। कोटि कोटि भारतीय अपने इस सर्वमान्य नेता के आह्वान पर जीवन अर्पित करने को तैयार हो गए। गांधी जी भारतीय जनता पर ऐसे छा गए कि
चल पडे जिधर दो डग मग में, बड गए कोटि पग उसी ओर!
पड गई जिधर भी एक दृष्टि,गढ गए कोटि दृग उसी ओर!!
प्रथम विश्व युद्ध में संकट के समय गांधी जी ने अग्रेजो का साथ देने के लिए भारतीयों का आह्वान किया। विजय प्राप्त करने के बाद अग्रेजो ने बदले में “रौलेट ऐक्ट” लागू कर दिया। जलियावाला बाग में हजारों भारतीयों को भून डाला। 1921 से गांधी जी को कई बार जेल जाना पडा। इस चुम्बकीय व्यक्तित्व के आकर्षण से अनेक कर्मठ स्वतन्त्रता सेनानी उनके आस पास एकत्रित हो गए। सन 1930 से गांधी जी की ऐतिहासिक “डाँडी यात्रा” शुरू हुई। नमक कानून को तोड़ा गया। पूर्ण स्वराज्य की मांग को लेकर देश एक बार अग्रेजो के विरुद्ध खडा हो गया। सन 1942 में बम्बई अधिवेशन में गांधी जी ने नारा दिया- अग्रेजो भारत छोड़ो। लगभग सभी नेताओ को गिरफ्तार कर लिया गया। गांधी जी को पूरा आगाखां में नजरबंद रखा गया। वही कस्तूरबा की मृत्यु हुई। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अग्रेजो ने भारत से अपना बोरिया बिस्तर समेट लिया। परन्तु जाने से पहले अंग्रेजों ने देश के दो टुकड़े कर दिए। भारत और पाकिस्तान। इस प्रकार 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ।
महात्मा गांधी केवल राजनीतिक नेता नहीं थे। राजनीति तो समय के अनुसार उनका कार्य क्षेत्र बन गई। सच्चे अर्थो में वे मानव सेवी थे। दलितो और शोषको के उद्वारक थे। गांधी जी का कहना था कि पाप से घृणा करो पापी से नहीं। साम्प्रदायिकता मनुष्य को पागल बना देती है। 30 जनवरी 1948 को नाथुराम विनायक गौडसे ने संध्या के समय प्रार्थना में पधारते ही गांधी जी पर गोलियों की बौछार कर दी। अपने हत्यारे को हाथ जोडकर नमस्कार करते हुए हे राम कहकर प्राण त्याग दिए। 78 साल के महात्मा गान्धी का अंत हो चुका था। बिड़ला हाउस में गान्धी के शरीर को ढँककर रखा गया था। लेकिन जब उनके सबसे छोटे बेटे देवदास गान्धी वहाँ पहुँचे तो उन्होंने बापू के शरीर से कपड़ा हटा दिया ताकि दुनिया शान्ति और अहिंसा के पुजारी के साथ हुई हिंसा को देख सके। महामानव की मृत्यु पर सारा संसार अवाक रह गया। मानवता रो उठी। सत्य अहिंसा का पुजारी चला गया। विश्व प्रेम का संदेश वाहक सदा सदा के लिए मौन हो गया। गांधी जी मरकर भी अमर हो गए। उनकी समाधि स्थल राजघाट विश्व के समस्त मानवो का तीर्थस्थान बन गया।
महात्मा गांधी आधुनिक विश्व के युगपुरुष थे। गांधी वादी दर्शन ही स्वार्थ हिंसा और अनैतिकता के अंधकार ने भटकती मानवता के लिए एक मात्र प्रकाश पुन्न है। छायावादी युग की महान कवयित्री महादेवी वर्मा की वाणी में उस महामानव को प्रणाम करते हुए हम अपने भाव सुमन उनके चरणो में अर्पित करते हैं।
हे धरा के अमर सुत!
तुमको अशेष प्रणाम!
जीवन के सहस्तर् प्रणाम।
मानव के अनन्त प्रणाम!
लेखक : अखिलेश चन्द्र चमोला, राज्यपाल पुरस्कार तथा विभिन्न राष्ट्रीय सम्मानोपाथियो से सम्मानित हिंदी शिक्षक।