सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति जनजाति को प्रमोशन में आरक्षण को लेकर आज देश की सबसे बड़ी अदालत ने अपना महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट के इस फैसले का कई दिनों से इंतजार किया जा रहा था। शुक्रवार को शीर्ष अदालत ने प्रमोशन में आरक्षण मामले में हस्तक्षेप करने से साफ तौर पर इंकार कर दिया। अदालत ने मानकों में बदलाव से इनकार कर दिया।
कोर्ट ने कहा कि प्रमोशन में आरक्षण का आधार होना चाहिए। आधार का समर्थन करने वाले आंकड़े होने चाहिए और समय-समय पर इसकी समीक्षा भी होनी चाहिए। केंद्र सरकार समीक्षा की अवधि तय करे। सर्वोच्च अदालत ने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के फैसलों में जो आरक्षण के पैमाने तय किए हैं। उनमें हम छेड़छाड़ नहीं कर सकते हैं। इसके साथ सुनाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को आंकड़े जुटाने का आदेश दिया है। इसके साथ कोर्ट ने आगे कहा कि पीठ के फैसले के बाद आरक्षण के लिए नया पैमाना नहीं बनाया जा सकता। कोर्ट ने ये भी कहा कि प्रतिनिधित्व के बारे में एक तय अवधि में समीक्षा होनी चाहिए। समीक्षा की अवधि क्या होगी कोर्ट ने इसे केंद्र पर छोड़ दिया है।
जस्टिस एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मामले की सुनवाई की। मामले की अगली सुनवाई 24 फरवरी को होगी। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को लेकर बीते साल 2021 के अक्टूबर महीने में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। जस्टिस एल नागेश्वर राव, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बीआर गवई की तीन सदस्यीय पीठ इस मामले पर अपना फैसला सुनाया। जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने अटार्नी जनरल, एडिशनल सॉलिसीटर जनरल समेत सभी की दलीलों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था।
केन्द्र सरकार ने दी थी यह दलील
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार ने जो बात कही थी उसके अनुसार, आजादी के 75 सालों के बाद भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को जनरल क्लास के समान योग्यता के स्तर पर नहीं लाया जा सका है। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने शीर्ष न्यायालय से कहा था कि, इतने सालों के बाद भी एससी, एसटी और पिछड़ा वर्ग को लोगों के लिए ए ग्रेड की नौकरी में उच्च पद प्राप्त करना बहुत कठिन है। शीर्ष अदालत ने प्रमोशन में आरक्षण मामले में हस्तक्षेप करने से साफ तौर पर इंकार कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग को लोगों को प्रमोशन में आरक्षण देने के मुद्दे को यह कहकर मना कर दिया था कि यह राज्यों का मुद्दा है। कोर्ट ने कहा था कि यह राज्यों को तय करना है कि इसे कैसे लागू करना है।