प्रवर्तन निदेशालय ईडी की ओर से लगातार की जा रही जांच के खिलाफ विपक्ष के कई नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। लेकिन आज सुबह सुप्रीम कोर्ट की ओर से विपक्षी नेताओं को राहत नहीं मिली है। सर्वोच्च अदालत ने  बुधवार को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) के विभिन्न प्रावधानों की संवैधानिकता चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया। अदालत ने पीएमएलए के तहत प्रवर्तन निदेशालय को मिले गिरफ्तारी के अधिकार को बरकरार रखा है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग के तहत गिरफ्तारी मनमानी नहीं है। कोर्ट ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के उन प्रावधानों की वैधता को कायम रखा है, जिनके खिलाफ आपत्तियां लगाई गई थीं। दरअसल, विपक्ष ने याचिका दायर प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के कई प्रावधानों को कानून और संविधान के खिलाफ बताया था। वहीं आज सुप्रीम कोर्ट ने उनकी दायर याचिका को रद करते हुए कानून को सही बताया है।

कोर्ट ने कहा, मनी लॉन्ड्रिंग एक स्वतंत्र अपराध है। उसे मूल अपराध के साथ जोड़ कर ही देखने की दलील खारिज की जा रही है। कोर्ट ने ये भी कहा, सेक्शन 5 में आरोपी के अधिकार भी संतुलित किए गए हैं। ऐसा नहीं कि सिर्फ जांच अधिकारी को ही पूरी शक्ति दे दी गई है। दलीलों में ये भी कहा गया था कि, गलत तरीके से पैसा कमाने का मुख्य अपराध साबित न होने पर भी पैसे को इधर-उधर भेजने के आरोप में पीएमएलए का मुकदमा चलता रहता है। इसके अलावा ये भी कहा गया कि, इसका इस्तेमाल गलत तरीके से किया जाता है। साथ ही ये भी कहा गया था कि कानून में अधिकारियों को मनमाने अधिकार दिए गए हैं।‌

बता दें कि पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिंदबरम, महाराष्‍ट्र सरकार के पूर्व मंत्री अनिल देशमुख, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती समेत 242 याचिकाकर्ताओं ने प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत ईडी द्वारा की गई गिरफ्तारी, जब्ती और जांच की प्रक्रिया को चुनौती दी थी। गौरतलब है कि प्रवर्तन निदेशालय की जांच के खिलाफ विपक्षी नेताओं ने मोर्चा खोला हुआ है। इन दिनों भी ईडी कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी से नेशनल हेराल्ड केस में पूछताछ कर रही है। ‌