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करवा चौथ को सुहागिनों का त्योहार भी कहा जाता है। इस दिन सुहागिनें अपने पति की लंबी उम्र के लिए पूरे दिन उपवास रखती हैं। और शाम को पूजन करने के बाद चांद और पति को छलनी में से देखने के बाद जल ग्रहण कर उपवास पूरा करती हैं। करवा चौथ का त्यौहार प्रत्येक वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को शुभ महूर्त पर मनाया जाता है इस बार करवा चौथ शनिवार 27 अक्टूबर को है। वैसे तो करवा चौथ का त्यौहार मुख्यतः उत्तर भारत में खास तौर पर पंजाब में मनाया जाता है। परन्तु पिछले कुछ वर्षों से करवाचौथ का त्योहार का भी ग्लोबलाइजेशन हो गया है और अब करवा चौथ देश में ही नहीं अपितु विदेशों में भी मनाया जाने लगा है।

आखिर क्यों छलनी में चाँद और पति का चेहरा देखकर यह व्रत पूरा किया जाता है?

करवा चौथ के व्रत में छलनी का खास महत्व है। इस दिन पूजा की थाली में सुहागिन महिलाएं पूजा की सामग्री के साथ छलनी भी रखती है। करवा चौथ की रात को सुहागिन महिलाएं चाँद और पति को छलनी में से देखकर अपना व्रत पूरा करती हैं। चाँद निकलने के बाद महिलाएं छलनी में पहले दीपक रख चांद को देखती हैं और फिर अपने पति को देखती हैं। इसके बाद पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर व्रत पूरा करवाते हैं।

छलनी में चाँद और पति का चेहरा देखकर यह व्रत पूरा करने के पीछे की कहानी यह है कि हिंदू मान्यताओं के अनुसार चंद्रमा को भगवान ब्रह्मा का रूप माना जाता है और चांद को लंबी आयु का वरदान मिला हुआ है। चांद में सुंदरता, शीतलता, प्रेम, प्रसिद्धि और लंबी आयु जैसे गुण पाए जाते हैं। इसीलिए सभी महिलाएं चांद को देखकर ये कामना करती हैं कि ये सभी गुण उनके पति में आ जाएं।

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करवा चौथ मनाने के पीछे एक कथा भी है जिसके अनुसार जब सत्यवान की आत्मा को लेने के लिए यमराज आए तो पतिव्रता सावित्री ने उनसे अपने पति सत्यवान के प्राणों की भीख मांगी और अपने सुहाग को न ले जाने के लिए निवेदन किया। यमराज के न मानने पर सावित्री ने अन्न-जल का त्याग दिया। और वह अपने पति के शरीर के पास विलाप करने लगीं। पतिव्रता स्त्री के इस विलाप से यमराज विचलित हो गए और उन्होंने सावित्री से कहा कि अपने पति सत्यवान के जीवन के अतिरिक्त वह कोई और वर मांग ले।

तब सावित्री ने यमराज से कहा कि आप मुझे कई संतानों की मां बनने का वर दें, जिसे यमराज ने हां कह दिया। पतिव्रता स्त्री होने के नाते सत्यवान के अतिरिक्त किसी अन्य पुरुष के बारे में सोचना भी सावित्री के लिए संभव नहीं था। अंत में अपने वचन में बंधने के कारण एक पतिव्रता स्त्री के सुहाग को यमराज लेकर नहीं जा सके और सत्यवान के जीवन को सावित्री को सौंप दिया। कहा जाता है कि तब से स्त्रियां अन्न-जल का त्यागकर अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए करवाचौथ का व्रत रखती हैं।

करवाचौथ पूजन का शुभ मुहूर्त 

करवाचौथ का व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को होता है। अमृत सिद्धि और सिद्धि योग में यह व्रत पड रहा है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार शनिवार की शाम 6 बजकर 37 मिनट पर चतुर्थी तिथि प्रारंभ हो रही है, जो 28 अक्टूबर की शाम 4 बजकर 54 मिनट पर समाप्त होगी। करवाचौथ पूजन का शुभू मुहूर्त शनिवार को 5 बजकर 48 मिनट से शाम 7 बजकर 4 मिनट तक रहेगा। रात में चंद्रमा को अघ्र्य देकर व्रत खोला जा सकता है। करवाचौथ पर चतुर्थी के देवता गणोश के अलावा शिव-पार्वती, कार्तिकेय के रूप चंद्रमा की पूजा की जाती है।

करवा चौथ के दिन 27 अक्टूबर को रात 7:38 बजे चंद्रोदय होगा लेकिन भद्रा 7: 58 बजे तक रहेगी। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग रात नौ बजे तक रहेगा। ऐसे में रात आठ से नौ बजे के बीच पूजन करना सबसे कल्याणकारी होगा।

करवाचौथ पूजन की विधि

करवाचौथ की कथा गेंहु व चावल के दाने हाथ पर लेकर सुननी चाहिए। मिट्टी के करवे में गेहूं ढक्कन में चीनी, उसके ऊपर वस्त्र दक्षिणा, सुहाग सामग्री रखकर सास या जेठानी को रात में चंद्रमा उदय होने पर छलनी की ओढ़ में चंद्रमा का दर्शन करके अघ्र्य देना चाहिए। कहा जाता है कि महाभारत काल में द्रोपदी ने अर्जुन के लिए इस ब्रत को किया था। चंद्रमा मानसिक विकारों को दूर करता है।