Navratri 2024: अक्सर आप सुनते आ रहे होंगे कि नवरात्रि या अन्य किसी भी व्रत के दिनों में पूरे घर में प्याज और लहसुन नहीं खाया जाता। इन दिनों नवरात्रि के व्रत चल रहे हैं। नवरात्रि का त्योहार साल में दो बार मनाया जाता है, चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि। नवरात्रि के दौरान 9 दिनों तक व्रती के अलावा भी पूरे घर में प्याज और लहसुन नहीं खाया जाता है। जबकि प्याज और लहसुन सेहत के लिए काफी अच्छा माना जाता है। और यह खाने का स्वाद बढ़ाने के साथ-साथ कई रोगों से लड़ने में मदद करता है। लेकिन फिर भी इसे व्रत के दौरान खाने में इस्तेमाल नहीं करते हैं। आखिर क्या कारण है कि नवरात्रि या अन्य किसी भी व्रत के दौरान प्याज और लहसुन से बना भोजन नहीं खाया जाता है। आइए जानते हैं नवरात्रि के दौरान प्याज लहसुन नहीं खाने के पीछे की धार्मिक मान्यता, आयुर्वेदिक तथा वैज्ञानिक कारण के बारे में।
आयुर्वेद के अनुसार, खाद्य पदार्थों को उनकी प्रकृति और खाने के बाद शरीर में होने वाली प्रतिक्रिया के आधार पर तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है। पहला सात्विक भोजन, दूसरा राजसिक भोजन और तीसरा तामसिक भोजन। इन तीनों ही प्रकार के भोजन का मनुष्य के जीवन पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है।
सात्विक भोजन
माना जाता है कि जो व्यक्ति सात्विक भोजन यानी दूध, घी, अनाज, सब्जियां, फल आदि का सेवन करता है, तो उनके अंदर सत्व गुण सबसे अधिक होते हैं। ऐसा भोजन करने से व्यक्ति सात्विक बनता है। इसको लेकर एक श्लोक भी कहा गया है।
आहारशुद्धौ सत्तवशुद्धि: ध्रुवा स्मृति:। स्मृतिलम्भे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्ष:॥
इस श्लोक का अर्थ है कि आहार शुद्ध होगा तो व्यक्ति एंदर से शुद्ध होगा और इससे ईश्वर में स्मृति दृढ़ होती है। स्मृति प्राप्त हो जाने से हृदय की अविद्या जनित हर एक गांठ खुल जाती है। माना जाता है कि सात्विक भोजन करने से व्यक्ति का मन शांत होने के साथ विचार शुद्ध होते हैं।
राजसिक भोजन
शास्त्रों के अनुसार ऐसा भोजन करने वाले लोगों का मन अधिक चंचल होता है और ये लोग संसार में प्रवृत्त होते हैं। राजसिक भोजन में नमक, मिर्च, मसाले, केसर, अंडे, मांस-मछली आदि आते हैं।
तामसिक भोजन
वेद -शास्त्रों के अनुसार, लहसुन और प्याज तामसिक भोजन की श्रेणी में आता है। माना जाता है कि इन दोनों चीजों का सेवन करने से व्यक्ति अंदर रक्त का प्रवाह बढ़ या फिर घट जाता है। ऐसे में व्यक्ति को अधिक गुस्सा, अंहकार, उत्तेजना, विलासिता का अनुभव होता है। इसके साथ ही वह आलसी और अज्ञानी भी हो जाता है। इसी कारण कई ब्राह्मण अथवा पूजा पाठ करने वाले लोग इसका सेवन नहीं करते हैं।
आयुर्वेदिक कारण
आयुर्वेद के मुताबिक, प्याज और लहसुन को तामसिक प्रकृति का माना जाता है और कहा जाता है कि यह शरीर में मानसिक और भावनात्मक ऊर्जा को बढ़ा देता है, जिससे मन भटक जाता है। इसलिए नवरात्रि के उपवास के दौरान इसकी अनुमति नहीं है। प्याज के साथ लहसुन को रजोगिनी के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि लहसुन को ऐसा पदार्थ माना गया है जिससे आपकी इच्छाओं और प्राथमिकताओं में अंतर करना मुश्किल हो जाता है।
वैज्ञानिक कारण
व्रत के दौरान लोग सात्विक भोजन करते हैं लेकिन इसके पीछे धार्मिक मान्यता के अलावा एक वैज्ञानिक कारण भी है। चैत्र नवरात्रि अप्रैल के महीने आती है, जिस दौरान मौसम बसंत ऋतु से ग्रीष्म ऋतु में जाने लगता है। वहीँ शरदीय नवरात्रि अक्टूबर-नवंबर के महीने में आती है, जिस दौरान मौसम शरद ऋतु से सर्दियों के मौसम में जाने लगता है। इस तरह मौसम बदलने के कारण इम्यूनिटी कमजोर होने लगती है। ऐसे में इस मौसम में सात्विक भोजन करने से पाचन तंत्र सही रहता है और शरीर के टॉक्सिन्स शरीर से बाहर आते हैं।
व्रत के दिनों में प्याज-लहसुन न खाने के पीछे की पौराणिक कथा
वैसे तो हिंदु धर्म में कई मान्यताएं हैं लेकिन जब बात नवरात्रि में प्याज और लहसुन खाने की बात आती है तो सभी लोग अच्छे से इस नियम का पालन करते हैं। हिंदु पुराणों के मुताबिक, पूजा-पाठ या फिर किसी भी व्रत के दौरान लहसुन और प्याज का ना ही उपयोग करना चाहिए और ना ही उनसे बने भोजन का सेवन करना चाहिए।
हिंदु पुराणों में बताई गई कथा मुताबिक, जब देवता और असुरों के बीच सागर मंथन हो रहा था तो उसमें 9 रत्न निकले थे और आखिरी में अमृत निकला था। इसके बाद भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप लिया और देवताओं को अमृत पिलाने लगे। तभी एक दानव ने चालाकी से देवताओं का रूप रख लिया और देवताओं की लाइन में लग कर अमृत पी लिया। लेकिन सूर्य और चंद्र देव ने उस राक्षस को पहचान लिया और उन्होने विष्णु जी को बता दिया। ऐसे में भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उस राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन उसने थोड़ा अमृत पान किया था, जो अभी उसके मुख में था। सिर कटने से खून और अमृत की कुछ बूंदें जमीन पर गिर गईं। उससे ही लहसुन और प्याज की उत्पत्ति हुई। जिस राक्षस का सिर और धड़ भगवान विष्णु ने काटा था, उसका सिर राहु और धड़ केतु के रूप में जाना जाने लगा। मान्यता है कि राक्षस से उत्पन्न होने के कारण भी लहुसन और प्याज का सेवन नहीं किया जाता है।