Will Rahul Gandhi not be able to contest the 2024 and 2029 Lok Sabha elections?

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी 4 साल पहले साल 2019 में जब कर्नाटक में मोदी सरनेम को लेकर जब बयान दे रहे थे, तब उन्होंने सोचा भी नहीं होगा यह उनकी सियासत में इस कदर भारी पड़ जाएगा कि कोर्ट 2 साल की सजा सुना देगी और लोकसभा की सदस्यता भी चली जाएगी। यह दोनों घटनाएं राहुल गांधी के साथ 24 घंटे के अंदर हुई। एक दिन पहले यानी गुरुवार को गुजरात की सूरत सेशन कोर्ट ने राहुल गांधी को मोदी सरनेम को लेकर की गई टिप्पणी के मामले में 2 साल की सजा सुनाई। कोर्ट के इस फैसले के बाद अभी कांग्रेस हाईकमान इस पर मंथन ही कर रहा था कि अचानक शुक्रवार को लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता रद कर दी है।

अब आखिरी विकल्प कानूनी रास्ता अपनाने का कोर्ट के आदेश के बाद इस बात को लेकर बहस छिड़ गई थी कि क्या कांग्रेस नेता की लोकसभा सदस्यता चली जाएगी। कुछ कानूनी विशेषज्ञों ने कहा था है कि वायनाड के सांसद दोषी ठहराए जाने के साथ ही स्वत ही अयोग्य साबित हो गए हैं। कुछ विशेषज्ञों ने कहा था कि वह अपनी अयोग्यता को चुनौती दे सकते हैं। हालांकि, आज लोकसभा सचिवालय ने पुष्टि की कि राहुल गांधी को संसद से अयोग्य घोषित कर दिया गया है। अब राहुल के सामने आखिरी विकल्प कानूनी रास्ता अपनाने का ही रह गया है। इसकी तैयारी भी उनकी कानूनी टीम ने शुरू कर दी है। हालांकि इस मामले में राहुल सेशन कोर्ट, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं, पर वहां से राहत न मिलने पर राहुल अगले 8 साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। इनमें 2024 ओर 2029 के लोकसभा चुनाव शामिल हैं।

आज आए इस फैसले की वजह राहुल खुद ही हैं।‌ लोकसभा सचिवालय के अयोग्य ठहराया जाने के 3 घंटे के बाद राहुल ने ट्वीट कर लिखा, ‘मैं भारत की आवाज के लिए लड़ रहा हूं, मैं हर कीमत चुकाने को तैयार हूं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा भाजपा ने राहुल को अयोग्य घोषित करने के लिए सभी तरीके आजमाए। जो सच बोल रहे हैं उन्हें वो पसंद नहीं करते, लेकिन हम सच बोलते रहेंगे। हम जेपीसी की मांग जारी रखेंगे, जरूरत पड़ी तो लोकतंत्र बचाने के लिए जेल भी जाएंगे।

प्रियंका गांधी ने कहा कि डरी हुई सत्ता की पूरी मशीनरी साम, दाम, दंड, भेद लगाकर राहुल गांधी की आवाज दबाने की कोशिश कर रही है। मेरे भाई न कभी डरे हैं, न कभी डरेंगे। सच बोलते हुए जिये हैं, सच बोलते रहेंगे। देश के लोगों की आवाज उठाते रहेंगे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने कहा हम राजनीतिक और कानूनी तौर पर यह लड़ाई लड़ेंगे। हमें चुप नहीं कराया जा सकता है, दबाया नहीं जा सकता। पीएम से जुड़े अडाणी के महाघोटाले पर जेपीसी बनाने की बजाय राहुल गांधी की सदस्यता रद की जा रही है। भारतीय लोकतंत्र का ओम शांति हो गया है।

राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने कहा कि राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म करना तानाशाही का एक और उदाहरण है। सीएम गहलोत ने कहा कि राहुल गांधी देश की आवाज हैं जो इस तानाशाही के खिलाफ अब और मजबूत होगी। सीएम गहलोत ने कहा कि राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता खत्म करना तानाशाही का एक और उदाहरण है। बीजेपी ये ना भूले कि यही तरीका उन्होंने इंदिरा गांधी के खिलाफ भी अपनाया था और मुंह की खानी पड़ी। राहुल गांधी देश की आवाज हैं जो इस तानाशाही के खिलाफ अब और मजबूत होगी। कांग्रेस पार्टी की तरफ से प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए अभिषेक सिंघवी ने कहा, सरकारी संस्थाओं का दमन हो रहा है। राहुल को सच बोलने की सजा मिली है। लोकतंत्र का गला घोंटा जा रहा है।

कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने ट्वीट कर कहा, ए तलवार तुझे झुकना होगा गर्दन ने बगावत कर दी है। राहुल गांधी को डराना आपके बस की बात नहीं है पीएम मोदी, अडानी को बचाने की सारी कोशिशें नाकाम होंगी। कांग्रेस सांसद केसी वेणुगोपाल ने कहा, जिस दिन राहुल गांधी ने अडानी, पीएम के खिलाफ सवाल उठाए, राहुल गांधी को चुप कराने के लिए इस प्रकार की साजिश शुरू की गई। यह भाजपा सरकार के लोकतंत्र विरोधी, तानाशाही रवैये का स्पष्ट मामला है।

फिलहाल राजधानी दिल्ली में सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, समेत तमाम विपक्षी नेता मंथन करने में लगे हुए हैं। ‌वहीं दूसरी और केरल के वायनाड में भी लोकसभा के उपचुनाव कराने को लेकर चर्चाएं भी शुरू हो गई हैं। राहुल गांधी साल 2019 में वायनाड से ही कांग्रेस की टिकट पर जीत कर सांसद बने थे।

10 साल पहले राहुल गांधी ने ऑर्डिनेंस नहीं फाड़ा होता तो बच जाती सांसदी

लोकसभा सचिवालय की ओर से आज राहुल गांधी को अयोग्य ठहराए जाने के बाद मनमोहन की सरकार में 10 साल पहले की घटना भी खूब ट्रेंड हो रही है। आज मीडिया और सोशल मीडिया पर राहुल गांधी के ऑर्डिनेंस फाड़ने की खबरें भी सुर्खियों में है।‌ बता दें कि 2019 मानहानि मामले में दोषी पाया जाना तो राहुल की सांसदी रद होने की वजह बनी ही, पर यह बच भी सकती थी अगर राहुल ने 10 साल पहले इस मामले से जुड़ा ऑर्डिनेंस फाड़ा नहीं होता। दरअसल 2013 में मनमोहन सिंह के देश के प्रधानमंत्री रहते यूपीए सरकार ने एक ऑर्डिनेंस पेश किया गया था। इस ऑर्डिनेंस के अनुसार दागी नेता यानी कि ऐसे नेता जिन्हें कोर्ट से दो साल या उससे ज्यादा की सजा मिली हो, उनकी विधायकी या सांसदी रद नहीं की जानी चाहिए। पर राहुल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इस ऑर्डिनेंस को बकवास बताते हुए इसकी एक कॉपी को फाड़ दिया था। इतना ही नहीं, राहुल ने मनमोहन को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने तक की बात कर दी थी। मनमोहन उस समय अमरीका दौरे ओर थे। सितंबर, 2013 में राहुल ने इस ऑर्डिनेंस की कॉपी को फाड़ा था। इसके बाद अक्टूबर, 2013 में यूपीए सरकार ने इस ऑर्डिनेंस को वापस ले लिया था। ऐसे में आज राहुल की सांसदी रद होने पर करीब 10 साल पहले उनका इस विषय में फाड़े गए ऑर्डिनेंस मामला फिर से ताज़ा हो गया। क्योंकि अगर राहुल ने 10 साल पहले यूपीए सरकार के ऑर्डिनेंस को नहीं फाड़ा होता, तो आज उनकी लोकसभा सांसद के तौर पर सदस्यता बरकरार रहती।

क्या है पूरा मामला

दरअसल, राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि के मामले में गुजरात की एक अदालत ने दो साल के कारावास की सजा सुनाई है, जिसके बाद से उनकी लोकसभा सदस्यता पर खतरा मंडराने लगा था। वैसे तो अदालत ने सजा सुनाने के बाद ही उनकी सजा निलंबित कर दी थी और उन्हें जमानत देते हुए अपील के लिए 30 दिन का समय भी दिया है, लेकिन इससे उन्हें बहुत राहत मिलती नहीं दिख रही है। राहुल को अब अपनी संसद सदस्यता बचाने के लिए अपनी अपील में पूरे केस को गलत साबित कर स्वयं को निर्दोष साबित करना होगा या फिर शिकायतकर्ता से समझौता करना होगा।

राहुल गांधी ने क्या कहा था?

राहुल गांधी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान 13 अप्रैल को कर्नाटक के कोलार में एक चुनावी रैली को संबोधित किया था। इस दौरान उन्होंने कहा था, ”नीरव मोदी, ललित मोदी और नरेन्द्र मोदी का सरनेम कॉमन क्यों है? सभी चोरों का सरनेम मोदी ही क्यों होता है? राहुल के खिलाफ भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने धारा 499 और 500 के तहत मानहानि का केस दर्ज कराया था।

अब क्या विकल्प हैं राहुल गांधी के पास?

राहुल गांधी की संसद सदस्यता बचाने के सभी रास्ते अभी बंद नहीं हुए हैं। उनके पास हाईकोर्ट में जाने का विकल्प है। अगर हाईकोर्ट सूरत सेशन कोर्ट के फैसले पर स्टे लगा देता है तो उनकी सदस्यता बच सकती है। वहीं, अगर हाईकोर्ट से राहत नहीं मिलती है तो राहुल सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं। शीर्ष अदालत अगर फैसले पर स्टे लगा देता है तो उनकी सदस्यता बच जाएगी। अगर उन्हें राहत नहीं मिलती है तो वे आठ साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।

क्या था सुप्रीम कोर्ट के फैसले को निष्क्रिय करने वाला अध्यादेश?

सितंबर 2013 में डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने अध्यादेश पारित कर सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को निष्क्रिय किया था, जिसमें कहा गया था कि सांसदों और विधायकों के दोषी पाए जाने पर उनकी सदस्यता रद्द कर दी जाएगी। फैसले के खिलाफ अध्यादेश पारित भी हो गया था और उस वक्त भाजपा, वामदल समेत कई विपक्षी पार्टियों ने इसका विरोध भी किया था। विपक्षी पार्टियों के हंगामे के बाद कांग्रेस ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए अध्यादेश की अच्छाइयों को जनता के सामने रखने की कोशिश की थी, लेकिन प्रेस कॉन्फ्रेंस के बीच में राहुल गांधी पहुंचे और खुद की ही सरकार पर सवाल खड़े करने लगे। इस दौरान उन्होंने अध्यादेश को बकवास बताया था और अध्यादेश की कॉपी को फाड़ दिया था। और इस तरह राहुल गांधी के दखल के बाद यूपीए सरकार ने इस अध्यादेश को वापस ले लिया गया था. अगर उस समय इस अध्यादेश को वापस नहीं लिया जाता, तो शायद आज राहुल गाँधी के साथ ये स्थिति नहीं होती।

उस वक्त राहुल गांधी ने कहा था कि राजनीतिक दलों की वजह से हमें इसे लाने की आवश्यकता है। हर कोई यही करता है, लेकिन यह सब बंद होना चाहिए। अगर हम देश में भ्रष्टाचार से लड़ना चाहते हैं, तो ऐसे सभी छोटे समझौते बंद करने पड़ेंगे। साथ ही उन्होंने सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को गलत बताया था।

शंभू नाथ गौतम