सभी का टीकाकरण होने के बाद कम से कम छह महीने तक कोविड प्रोटोकाल को व्यवहार में रखना होगा
कोरोना ही नहीं बल्कि टीबी और निमोनिया से भी बचाता है मास्क
कोरोना के प्रति ढिलाई न बरतें, अभी खत्म नहीं हुआ है संक्रमण का खतरा
नोएडा : कोरोना वैक्सीन आने की खबर के साथ ही लोगों का अंदाज लापरवाहपूर्ण हो गया है, लोग मास्क लगाने में अभी से ही कोताही बरतने लगे हैं, लोगों की यही लापरवाही कोरोना की चेन तोड़ने में बाधक है। बेशक कोरोना की वैक्सीन आ रही है, लेकिन मास्क लगाने, हाथ धोने की आदत और शारीरिक दूरी का पालन बदस्तूर जारी रखना होगा। यह बात मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. दीपक ओहरी ने कही।
डा. ओहरी ने कहा कि जब हर एक व्यक्ति को कोरोना की वैक्सीन लग जाएगी, उसके बाद भी कम से कम छह माह तक सभी को उसी तरह से मास्क पहनना होगा और बार-बार हाथ धोने की आदत और शारीरिक दूरी के पालन को व्यवहार में शामिल रखना होगा, तभी हम कोरोना को हरा पाएंगे। उन्होंने कहा मास्क भी वैक्सीन की तरह ही कोरोना संक्रमण से बचाता है। कोरोना ही नहीं अन्य तमाम दूसरी बीमारियों के संक्रमण को मास्क पहन कर रोका जा सकता है। उन्होंने कहा कि घर से बाहर निकलने पर मास्क से मुंह व नाक को अच्छी तरह से ढककर वायरस व बैक्टीरिया से जुड़ी बीमारियों जैसे- कोरोना, टीबी व निमोनिया ही नहीं बल्कि एलर्जी, अस्थमा व वायु प्रदूषण जनित तमाम बीमारियों से भी सुरक्षित रह सकते हैं। इस समय बढ़ता प्रदूषण व सर्दी इन बीमारियों को और भी गंभीर बना सकता है, ऐसे में अभी किसी भी तरह की ढिलाई बरतना खुद के साथ दूसरों को भी मुश्किल में डालने वाला साबित हो सकता है। उनका कहना है कि मास्क की महत्ता को आज हर किसी को समझना बहुत ही जरूरी हो गया है, क्योंकि कोरोना, टीबी और निमोनिया खांसने व छींकने से निकलने वाली बूंदों के जरिये एक दूसरे को प्रभावित करती हैं।
सीएमओ ने कहा कि वायु प्रदूषण का असर फेफड़ों पर ही नहीं बल्कि शरीर के अन्य हिस्सों पर भी पड़ता है। कम तापमान व स्मॉग के चलते धूल के कण ऊपर नहीं जा पाते और नीचे ही वायरस व बैक्टीरिया के संवाहक का कार्य करते हैं, ऐसे में अगर बिना मास्क लगाए बाहर निकलते हैं तो वह साँसों के जरिये शरीर में प्रवेश करने का मौका पा जाते हैं। वायु प्रदूषण में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 माइक्रान यानि बहुत ही महीन धूल कण ज्यादा नुकसानदायक साबित हो सकते हैं, क्योंकि वह सांस मार्ग से फेफड़ों तक पहुँच सकते हैं जबकि 10 माइक्रान तक वाले धूलकण गले तक ही रह जाते हैं जो गले में खराश और बलगम पैदा करते हैं। वायु प्रदूषण के कारण सांस मार्ग में सूजन की समस्या पैदा होती है और सूजन युक्त सांस मार्ग कई बीमारियों को आमन्त्रण देता है।