kedarnath-aapda 2013

केदारनाथ आपदा: आज से ठीक 9 साल पहले यानी 16 जून 2013 की दरमियानी रात देवभूमि उत्तराखंड की केदार घाटी में आई दैवीय आपदा को याद करते ही उस क्षेत्र के लोगों की रूह कांपने लगती है। 9 साल पहले केदारनाथ धाम से बहने वाली मंदाकनी नदी ने इस कदर विकराल रूप धारण किया कि इसके आगोश में समाकर हजारों श्रद्दालुओं एवं स्थानीय लोगों की जिंदगी लील हो गई। इसके बाद पूरे क्षेत्र में जो तबाही हुई उसके निशान आज भी केदारघाटी में नजर आते हैं। आपदा में कितने लोगों की जान गई इसका भी सटीक आंकड़ा किसी के पास नहीं है, लेकिन हजारों लोगों की मरने की सूचना पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज है। इस आपदा में भारत के ही नहीं बल्कि विदेश के लोगों ने भी अपनी जान गंवाई थी। सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद भी अभी तक 3,183 तीर्थ यात्रियों का कुछ भी पता नहीं है। इस आपदा के बाद पुलिस के पास 3,886 गुमशुदगी दर्ज हुई, जिसमें से विभिन्न सर्च अभियानों में 703 कंकाल बरामद किए गए। आज भी केदारघाटी में नरकंकाल मिलते रहते हैं।

इस दैवीय आपदा से पहले 13 जून 2013 को उत्‍तराखंड में जबरदस्‍त बारिश शुरू हुई थी। इस दौरान वहां का चौराबाड़ी ग्लेशियर पिघल गया था, जिससे मंदाकिनी नदी का जलस्तर देखते ही देखते बढ़ने लगा। इस बढ़े हुए जलस्तर ने उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पश्चिमी नेपाल का बड़ा हिस्सा अपनी चपेट में ले लिया। तेजी से बहती हुई मंदाकिनी का पानी केदारनाथ मंदिर तक आ गया। इसके बाद पूरे क्षेत्र में जो तबाही हुई, उसके निशान आज भी केदारघाटी में नजर आते हैं। भारी बारिश के बीच मंदाकिनी नदी ने विकराल रूप दिखाया और इस हादसे में 6 हजार से ज्यादा लोग लापता हो गए थे।

कैसे हुई इतनी तबाही

दरअसल, केदारनाथ से निकलने वाली मंदाकिनी नदी के दो फ्लड वे (बाढ़ आने का रास्‍ता) हैं। कई दशकों से मंदाकिनी सिर्फ पूर्वी वाहिका में बह रही थी। ऐसे लोगों ने यह मान लिया कि अब मंदाकिनी बस एक धारा में बहती रहेगी। हालांकि, वैज्ञानिक नजरिया यह है कि यदि नदी में 100 साल में एक बार भी बाढ़ आई हो, तो उसके उस मार्ग को भी फ्लड वे माना जाता है। इसलिए इस मार्ग पर निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए। इस मार्ग पर कभी भी बाढ़ आ सकती है। यह साबित भी हो गया। जब मंदाकिनी में बाढ़ आई, तो वह अपनी पुराने मार्ग यानी पश्चिमी फ्लड वे में भी बढ़ी, जिससे उसके रास्ते में बनाए गए सभी निर्माण बह गए।

इस आपदा में फंसे लोगों को बचाने के लिए सेना को तुरंत भेजा गया। सेना के जवानों ने लाखों लोगों को रेस्क्यू किया गया। लगभग 1,10,000 लोगों को सेना ने बचाया। इस दौरान काफी घर, होटल और रेस्‍तरा पानी में बह गए।

इस दौरान आठवीं सदी में बने केदारनाथ मंदिर को भी नुकसान पहुंचा था। मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से प्रमुख है, जिसमें करोड़ों लोगों की आस्था है। हालांकि ये नुकसान आंशिक ही था। बाद में कई शोध संस्थानों ने ये समझने की कोशिश की कि आखिर इतनी विकराल आपदा में मंदिर कैसे सुरक्षित रहा। इसके पीछे कई कारण दिए गए, जिसमें मंदिर की भौगोलिक स्थिति से लेकर कईयों ने दैवीय चमत्कार तक कह दिया।

कहा जाता है मंदिर के ठीक पीछे ऊपर से बहकर आए एक बड़े पत्थर ने बाबा के मंदिर को सुरक्षित कर दिया था। आज उस पत्थर को भीम शिला के नाम से जाना जाता है। इस प्रलय में 2241 होटल, धर्मशाला एवं अन्य भवन पूरी तरह ध्वस्त हो गए थे। पुलिसकर्मियों ने अपनी जान पर खेलकर करीब 30 हजार लोगों को बचाया था। यात्रा मार्ग एवं केदारघाटी में फंसे 90 हजार से अधिक लोगों को सेना द्वारा सुरक्षित बचाया गया।

केदारनाथ आपदा ने कई गांवों को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया था। जैसे केदारनाथ जाने वाला पैदल मार्ग रामबाड़ा और गरुड़चट्टी से होकर गुजरता था। त्रासदी के दौरान बाढ़ से मंदाकिनी नदी की उफनती लहरों ने रामबाड़ा का अस्तित्व ही खत्म कर दिया। इसके बाद सालों निर्माण कार्य चला और साल 2018 में ही ये रास्ता दोबारा तैयार हुआ।

इतने वर्षों में भी पुनर्निर्माण के मरहम से आपदा के जख्म पूरे नहीं भर पाए हैं। अलबत्ता आपदा में तबाह हुई केदारपुरी को संवारने की कोशिशें जारी हैं। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने केदारपुरी में पुनर्निर्माण की जो शुरुआत की, उसे भाजपा सरकार ने जारी रखा। केदारबाबा के भक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिलचस्पी के चलते केदारनाथ में पुनर्निर्माण के कार्यों ने रफ्तार पकड़ी है। पहले चरण के कार्य पूरे हो चुके हैं और दूसरे चरण के कार्यों पर काम शुरू हो गया है।

केदारपुरी में काफी कुछ बदल गया है। 16 जून 2013 की आपदा में तबाह हुए केदारनाथ आज के केदारनाथ में जमीन-आसमान का अंतर है। ये सारे कार्य श्री केदारनाथ उत्थान चैरिटी ट्रस्ट के माध्यम से हो रहे हैं। कुल मिलाकर केदारपुरी में पुनर्निर्माण के मरहम से आपदा के जख्मों को मिटाने की कोशिशें जारी हैं, लेकिन केदारपुरी से जुदा 2013 की आपदा की शिकार केदारघाटी में राहत और पुनर्निर्माण की रफ्तार में वैसी तेजी नहीं रही।