Nag Panchami 2022 : नाग (सर्प की एक प्रजाति) अगर अचानक किसी को दिख जाएं तो अच्छे अच्छे लोगों के पसीने छूट जाते हैं। लेकिन, हिंदू धर्म में जिस तरह से देवी देवताओं की पूजा की जाती है, वैसे ही नाग देवता की भी पूजा की जाती है। नागों की पूजा के लिए एक विशेष दिन भी निर्धारित किया गया है। हिंदू पंचांग के अनुसार श्रावण मास के शु्क्ल पक्ष की पंचमी तिथि को नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। यह दिन नाग देवता की पूजा के लिए समर्पित होता है। इस वर्ष यह त्यौहार आज यानी 2 अगस्त को है. पौराणिक काल से सर्प देवताओं की पूजन की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि नाग की पूजा करने से सांपों के कारण होने वाला किसी भी प्रकार का भय खत्म हो जाता है।
नाग पंचमी शुभ मुहूर्त
- नाग पंचमी तिथि की शुरुआत- 02 अगस्त सुबह 05 बजकर 13 मिनट से
- नाग पंचमी तिथि समाप्त- 03 अगस्त सुबह 05 बजकर 41 मिनट तक
नाग पंचमी पौराणिक कथा
नागों को पंचमी तिथि बहुत ही प्रिय है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शक्तिशाली नाग धरती के अंदर नाग लोक में वास करते हैं। नागों को लेकर सिर्फ एक नहीं बल्कि कई मान्यताएं हैं।
भविष्य पुराण के अनुसार, महर्षि कश्यप की कई पत्नियां थी, जिनमें से एक का नाम कद्रू और दूसरी का नाम विनिता था। एक बार महर्षि कश्यप ने अपनी पत्नी कद्रू को प्रसन्न होकर उन्हें तेजस्वी नागों की माता बनने का वरदान दिया। इस तरह हई सांपों की उत्पत्ति हुई। वहीं, ऋषि कश्यप की दूसरी पत्नी विनिता, पक्षीराज गरुड़ की माता बनी। कद्रू और विनिता के बीच हमेशा ही ईर्ष्या रहती थी।
समुद्र मंथन के दौरान एक सफेद रंग का बहुत ही सुंदर घोड़ा प्रकट हुआ था। जिसे देखकर विनिता से कहा कि देखो कितना सुंदर घोड़ा है। कद्रू विनिता को नीचा दिखाना चाहती थी। कद्रू बोली इस घोड़े की पुंछ काली है। फिर कद्रू ने नांगों के पास जाकर उनसे कहा कि तुम इस घोड़े पर लिपट जाओ और ताकी उसकी पूंछ काली प्रकट हो। नागों ने ऐसा करने से मना कर दिया और कहा कि हम सत्य के मार्ग पर ही चलेंगे। इससे क्रोधित होकर कद्रू ने अपने पुत्रों को ही श्राप दे दिया। उन्होंने कहा कि पांडव वंश में राजा जनमेजय होंगे जो नागों का विनाश करने के लिए सर्प मेध यज्ञ करवाएंगे। उनके यज्ञ में जलकर तुम सभी मर जाओगे।
श्राप मिलने के बाद नाग पुत्र दुखी हुए और वह वासुकी नाग को आगे कर ब्रह्मा जी के पास पहुंचे। ब्रह्मा जी बोले चिंता मत करो। तुम्हारी एक बहन होगी जरत्कारु उनका विवाह जरत्कारु नाम के ऋषि से ही होगा। इन दोनों से आस्तिक नामक पुत्र उत्पन्न होगा। वह इस यज्ञ को रोकेगा और नागों की रक्षा करेगा। जिसे सुनकर नाग बहुत प्रसन्न हुए। समय आने पर राजा जनमेजय ने राजा परीक्षित की सर्प द्वारा मृत्यु होने पर नाग वंश का विनाश करने के लिए सर्प मेध यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में लाखों करोड़ों नाग जलकर भस्म होने लगे। जब आस्तिक मुनि वहां पहुंचे तो उन्होंने नाग यज्ञ को रुकवाया और नागों के ऊपर ठंडा दूध डाला। जिससे नागों के शरीर को ठंडक मिली साथ ही धान का लावा रखा। इससे नागों की जीवन बच गया। नागों का अस्तित्व धरती पर रह गया। जिस दिन ब्रह्माजी ने नागों के बचने का वरदान दिया था, उस दिन पंचमी तिथि थी। जिस दिन आस्तिक मुनि ने यज्ञ को रुकवाकर नागों को बचाया उस दिन भी पंचमी तिथि थी।
नागों ने वचन दिया की जो भी व्यक्ति आस्तिक मुनि का नाम लेगा, वे वहां से बिना किसी को नुकसान पहुंचाए चले जाएंगे। साथ ही नाग पंचमी के दिन जो व्यक्ति लकड़ी, मिट्टी, गोबर से नाग बनाकर उन्हें फूल, दूध, धान, लावा से पूजे करेंगे उनको और उनके परिवार को नाग भय नहीं रहेगा। इस तरह नागपंचमी व्रत पूजा की शुरुआत हुई और नागों को पंचमी तिथि प्रिय हुआ।
जैन दर्शन के अनुसार भगवान् पार्श्वनाथ की मूर्तियों में सर्प का चिन्ह उनका प्रतीक होता हैं .मुनि पार्श्वनाथ के समय एक व्यक्ति कुल्हाड़ी से एक लकड़ी को काट रहा था। वहां से जाते समय मुनि राज उससे बोले कि इस लकड़ी के अंदर एक सर्प युगल है। उन्होंने उस युगल सर्प को बचाया यह देखकर धर्मेंद्र और पद्मावती मुनिराज पार्श्वनाथ को उस उपसर्ग से बचाने की कोशिश करने से खुद को रोक नहीं पाए।
धर्मेंद्र सर्प बन कर मुनिराज के सिर पर रख दिया, जबकि पद्मावती उससे और ऊपर चली गई और उसके फन से एक छत्र बना दिया। कुछ समय बाद जब मुनिराज पार्श्वनाथ को ज्ञान की प्राप्ति हुई, तो कमठ उनकी तपस्या से प्रसन्न हो गए और उनके चरणों में प्रणाम करते हुए उपसर्ग को रोक दिया।
इसके अलावा सर्प हमारे जलवायु और खेती में लाभकारी होते हैं। इनको जबतक छेड़ो नहीं ये किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते।
विद्यावाचस्पति डॉक्टर अरविन्द प्रेमचंद जैन भोपाल