Pharma Expo 2022: इंडिया एक्सपो मार्ट में चली रही फार्मास्युटिकल क्षेत्र की सबसे बड़ी प्रदर्शनी में नवीनतम तकनीकों व उत्पादों को प्रदर्शित करने के साथ ही फार्मा क्षेत्र में नवाचारों को सामने लाने पर भी जोर दिया जा रहा है। इसको लेकर चर्चा की जा रही है। भारतीय फार्मा कंपनियां उत्पन्न होने वाले मूल्य में वैिक नेतृत्व कैसे और किस तरह हासिल कर सकती हैं, विनिर्माण और आपूर्ति श्रृंखला का अनुकूलन करके विकसित देशों के साथ प्रतिस्पर्धा और वैश्विक नवप्रवर्तकों के साथ मानचित्र पर रहने के लिए जटिल जेनरिक और नई रासायनिक संस्थाओं में अनुसंधान में तेजी लाना आदि विषयों पर चर्चा की गई। विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे।
इस दौरान फार्मास्युटिकल क्षेत्र में नवाचारों और पहलों के साथ एक बड़ा बदलाव लाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे उद्योग जगत के खिलाड़ियों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित भी किया गया। सम्मेलन के दौरान इस बात पर भी जोर दिया गया कि भारत में मजबूत फार्मा बाजार के बाद भी दवा सामग्री बनाने वाली कंपनियां उबर नहीं पायी। वर्ष 2000 के दौरान सक्रिय दवा सामग्री विनिर्माण क्षेत्र में कम लाभ होने के कारण घरेलू दवा कंपनियों ने धीरे- धीरे इसका उत्पादन बंद कर दिया। ऐसे में दवा बनाने वाली फार्मा कंपनियों ने इसका आयात करना शुरू कर दिया।
फार्मा कंपनियों के लिए दवाओं पर बढ़ते लाभ अनुपात के कारण चीन से आयात एक सस्ता विकल्प था। इसके चलते चीन से आयात बढ़ता चला गया। वर्तमान में भारत कुल एपीआई का आयात लगभग 68 फीसद करता है। इंफार्मा मार्केट्स इन इंडिया के प्रबंध निदेशक योगेश मुद्रास ने बताया कि देश में फार्मा कंपनियों को एपीआई बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए सरकार ने भी पीएलआई योजना शुरू की थी। इसके अंतर्गत पिछले पांच वर्षो भारतीय दवा कंपनियों ने एपीआई विनिर्माण क्षेत्र में प्रगति हासिल की है।