उत्तराखंड में वर्ष 2011 में तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा आपदाग्रस्त 233 गांवों को चिन्हित किया गया था और इनके पुनर्वास हेतु बाकायदा दिशानिर्देश जारी किए गए थे। सरकार ने ही इन 233 गांवों को मानव निवास हेतु असुरक्षित घोषित कर दिया था। और वर्ष 2013 में आई भीषण आपदा के बाद यह सूची और लंबी हो गई होगी। ये गांव नीचे से या ऊपर से भूस्खलन की चपेट में कभी भी आ सकते हैं कुछ गांव तो ऐसे हैं जहाँ लोग बरसात आने पर दूसरे स्थानों पर चले जाते हैं। अधिकांश गांव भू स्खलन से खतरे में हैं जबकि कुछ नदी कटाव से खतरे में हैं। टिहरी बांध की झील के ऊपर के भी कुछ गांव इस सूची में शामिल किए गए हैं। उन पर टिहरी बांध की पुनर्वास नीति लागू की जानी है।
10 साल हो गए। साल दर साल इन गांवों पर खतरा बढ़ता जा रहा है। कुछ गांवों को बसाने के लिए जगह भी चिन्हित हुई, लेकिन गांव दूसरे स्थानों पर बस नहीं पाए। वर्ष 2011 में चिन्हित गांवों की सरकारी सूची इस प्रकार से है.
चमोली: पिलंग (खोला), सैकोट (नगाड़ी), सैकोट (टैटुणा), रोपा (कोलधार), बछेर (गांधीनगर), नैथोली, सरतोली, लासी, लस्यारी सिन्ना, कनोल नारंगी, मंजू लगा बेमरू, तल्ला रोपा, गुडम, बुंगा तोक, बंगथल, हनुमान चट्टी तोक में घृत गांव, द्वीव तपौण, करछौ, पल्ला, जखेला, किमाणा, मोल्टा, भैंटा – पिलखी, पाखी (बजूड़ा), अलग्वाड़, ल्यारी, थौणा, चाई, गणाई, टंगड़ी मल्ली, टंगड़ी टल्ली, दाड़िमी, डुगरी, भैंटा (पिल्खी), पया़ चोरमी, खरोड़ी, परसारी, बरोसी, भ्याड़ी, छपाली, ट्यूला, नौण, नैना, मैखुरा, नौसारी, भरसंजी, बणद्वारा, नारंगी व देवपुरी।
टिहरी गढ़वाल : रमोलसारी, पनेथ, बनाली मध्ये जिजली, सरमोली, अगुंडा, पिन्सवाड़, मरवाड़ी, मेड, कोटी, जमोलना, बढडियारकुड़ा, आगर, भैंसर्क का कण्डारी गांव, रगड़ी, म्यार, रोलाकोट, नकोट, स्यांसू।
पौड़ी गढ़वाल : बुकंडी, सिमल्या, जोग्याणा, क्वीराल गांव, कसाणा, भैंसवाड़ा, कमेड़ी, दिगोली, तथा 11 अन्य गांव (सूची में 11 अन्य गांवों के नाम नहीं हैं)
उत्तरकाशी : साडा, स्याबा, पौंटी, गौर और छानिका।
रुद्रप्रयाग : पांजणा।
देहरादून : गोहरी माफी आओर लड़ीखेत।
2013 की आपदा के दौरान रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी और टिहरी जिले के अनेक गांवों पर भी संकट आया है। ऐसे गांवों के साथ ही कुमाऊं के आपदा ग्रस्त गांवों के बारे में आगे जानकारी दी जाएगी।
देवेन्द्र जोशी