PAURI GARHWAL SANITATION SCAM: जिला पंचायत में फर्जी भुगतान के गंभीर आरोपों के चलते जिलाधिकारी स्वाति एस। भदौरिया द्वारा मामले की जांच के लिये तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है।
विदित रहे कि जिला पंचायत में उपनलकर्मी की पत्नी के खाते में फर्जी तरीके से लगभग 75 लाख रुपये का भुगतान किया गया है और उनके द्वारा ब्लैंक चेक के माध्यम से उक्त भुगतान को अपने खातों में ट्रांसफर किया गया है।
जिलाधिकारी ने प्रकरण की गंभीरता को देखते हुये टेंडर प्रक्रिया, बैंक खातों की जांच, भुगतान व्यवस्था तथा इसमें संलिप्त अधिकारियों और कर्मचारियों की भूमिका की जांच के लिये मुख्य विकास अधिकारी पौड़ी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच समिति गठित की है। जिसमें उपजिलाधिकारी पौड़ी एवं मुख्य कोषाधिकारी को सदस्य नामित किया गया है। उन्होंने जांच कमेटी को निर्देश दिये कि नियमानुसार विस्तृत जांच कराएं और एक पखवाड़े (15 दिन) के भीतर जांच आख्या प्रस्तुत करें।
जिलाधिकारी ने कहा कि मुख्यमंत्री की भ्रष्टाचार के विरुद्ध ज़ीरो टॉलरेंस की नीति के तहत किसी भी तरह का भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। साथ ही उन्होंने सभी कर्मचारियों/अधिकारियों को ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के निर्देश दिये।
आरटीआई से हुआ खुलासा:
बताया जा रहा है कि वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी ने उपनल कर्मचारी की पत्नी को नौकरी लगाने के नाम पर उसका बैंक खाता लिया। उसी खाते के माध्यम से सफाई का टेंडर स्वीकृत कर दिया गया। सफाई कर्मचारी का कहना है कि उसे टेंडर प्रक्रिया की कोई जानकारी नहीं दी गई। अब वह बीते मार्च से लेकर अब तक तीन से चार बार देहरादून विजिलेंस कार्यालय के चक्कर काट चुका है। मामले की गंभीरता को देखते हुए विजिलेंस जांच की मांग की जा रही है।
इस पूरे प्रकरण में जिला पंचायत की कार्यप्रणाली पर फिर से सवाल उठने लगे हैं। यह भी बताया जा रहा है कि पत्रावलियों से छेड़छाड़ की वजह से पूरे मामले को दबाने का प्रयास किया गया, जिससे संबंधित अधिकारी का निलंबन हुआ है। वित्तीय वर्ष 2024-25 की ऑडिट रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ कि एक उपनल सफाई कर्मचारी की पत्नी के खाते में 75 लाख रुपये की राशि सफाई कार्यों के नाम पर जमा की गई। घोटाले की परतें तब खुलीं जब स्थानीय निवासी करन रावत ने सूचना का अधिकार (RTI) के तहत यह जानकारी मांगी। RTI से सामने आया कि उपनल सफाई कर्मचारी के तीन पारिवारिक सदस्यों के नाम पर जिले के 15 विकासखंडों में ठेकेदारी के टेंडर स्वीकृत किए गए।
चौंकाने वाली बात यह है कि इन लोगों के पास ठेकेदारी का पूर्व अनुभव, जीएसटी नंबर या अन्य वैधानिक पंजीकरण भी नहीं था। इसके बावजूद लाखों रुपये का काम उन्हें सौंपा गया। प्रत्येक ब्लॉक में 2 सफाई कर्मचारी तैनात किए गए, कुल संख्या 30 रही। इन्हें प्रति कर्मचारी 15 हजार रुपये प्रति माह का भुगतान किया गया। वहीं 10 अतिरिक्त कर्मचारी, जो VIP ड्यूटी और दुर्गम क्षेत्रों में तैनात रहे, उन्हें 1,000 रुपये प्रतिदिन या 30,000 रुपये मासिक भुगतान किया गया। सफाई कार्यों के लिए यह टेंडर जनवरी से सितंबर 2023 के बीच संचालित रहा। आरटीआई कार्यकर्ता का कहना है कि इस अवधि में ठेके के नाम पर सरकारी धनराशि की जमकर बंदरबांट की गई। करन रावत ने मांग की है कि इस पूरे प्रकरण की विजिलेंस जांच होनी चाहिए. दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर कठोर कार्रवाई की जाए।