उत्तराखंड के चमोली जनपद में रविवार सुबह ग्लेशियर का टूटना बड़ी तबाही बन गया। ग्लेशियर टूटने के बाद से आई तबाही में अब तक 07 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 200 से ज्यादा लापता बताये जा रहे हैं।
एवलांच (Avalanche) क्या है।
पहाड़ों पर जमी बर्फ का टूटकर गिरना एवलांच (Avalanche) यानि हिमस्खलन कहलाता है। पहाड़ों पर बर्फ के ज्यादा बढ़ने, तापमान में बढ़ोतरी, हवा में नमी की कमी, भूकंप, नैचुरल, इंसानी विस्फोट आदि किसी भी वजह से एवलांच हो सकता है। हिमालय के ऊंचे हिस्सों में एवलांच यानि हिमस्खलन यूं तो आम बात है मगर ये बर्फीले तूफान तब और खतरनाक हो जाते हैं जब ऊंची चोटियों पर ज्यादा बर्फ जम जाती है। किसी ढलान वाली सतह पर तेज़ी से हिम के बड़ी मात्रा में होने वाले बहाव को हिमस्खलन (avalanche) कहते हैं।
एवलांच (Avalanche) कैसे आता है
पहाड़ों पर जब तापमान कम होता है तो उनकी ऊंची चोटियों पर बारिश नहीं बर्फबारी होती है। ये बर्फ रुई की तरह मुलायम होती है। लगातार बर्फबारी के बाद पहाड़ों के ऊपर अलग से बर्फ की चट्टान तैयार हो जाती है। इस बीच अगर धूप निकल जाए या फिर हवा में नमी की कमी हो जाए तो इस बर्फ के ऊपर एक कड़ी परत जम जाती है। ठीक वैसे ही जैसे की आपके फ्रीज़र में बर्फ जमती है। अब बर्फ के इसी हार्ड सरफेस पर जब दोबारा बर्फबारी होती है, तो वो ज्यादा देर तक उस हार्ड सरफेस पर नहीं टिक पाती है। ऐसी बर्फ भारी होती है और नीचे की ओर सरकने लगती है। चूंकि गुरुत्वाकर्षण का नियम यहाँ भी काम करता है, और नीचे की ओर सरकती हुई बर्फ (snowslide) अपने साथ पहाड़ पर जमे हुए बर्फ को घसीटती है। ऐसे में बर्फीले तूफान की स्थिति बन जाती है। पहाड़ की ढलान जितनी तीखी होगी एवलांच उतना ही शक्तिशाली और तबाही करने वाला होगा। क्योंकि ढलान वाली जगह पर ये काफी तेज रफ्तार से आगे बढ़ती है। और ये तब तक नहीं रुकती जबतक समतल मैदान नहीं मिल जाए। एक एवलांच लाखों टन बर्फ को समेटते हुए आगे बढ़ता है, जिसकी स्पीड 300 से 350 किलोमीटर प्रति घंटे से भी ज्यादा होती है। इसके अलावा बड़े और भारी ग्लेशियर का टूटना भी पहाड़ों पर आने वाली बाढ़ का कारण बन जाता है। इसका नतीजा काफी भयानक हो सकता है।
ग्लेशियर (Glacier) क्या होते हैं और कैसे टूटते हैं?
पहाड़ों में लगातार होने वाली बर्फबारी के कारण भारी मात्रा में बर्फ जमने के बाद बनने वाला प्राकृतिक संरचना ग्लेशियर कहलाती है। ग्लेशियर के अंदर ही अंदर जब बर्फ पिघल कर पानी भर जाता है तो उसका दबाव ग्लेशियर के किनारों को कमजोर करता है। पानी अपना रास्ता खोजते हुए ग्लेशियर के भीतर ही बहता है। इससे और तेजी से बर्फ पिघलती है। पानी की जमी हुई यह मात्रा पर्वतीय ढाल के अनुसार नीचे की ओर खिसकती रहती है और हिमनदी या हिमानी और हिमनद कहलाती है। ग्लेशियर से ही पिघल कर बहने वाला पानी नदियों में बहता है।
ग्लेशियर टूटने के कई कारण हो सकते हैं। एक तो गुरुत्वबल के कारण ग्लेशियर की सतह पर दबाव पड़ता है और वह टूट जाता है। दूसरा अगर इसके किनारों पर तनाव पड़े तो भी यह टूट जाता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण भी ग्लेशियर टूट रहे हैं। पहाड़ों पर लगातार बढ़ रहा मानवीय हस्तक्षेप खनन आदी ग्लेशियर की टूटन के लिए जिम्मेदार है।
ग्लेशियर (Glacier) के टूटने से आ जाती है बाढ़
बड़े और भारी ग्लेशियर का टूटना पहाड़ों पर आने वाली बाढ़ का कारण बन जाता है। इसका नतीजा काफी भयानक हो सकता है। ग्लेशियर के अंदर ही अंदर जब बर्फ पिघल कर पानी भर जाता है तो उसका दबाव ग्लेशियर के किनारों को कमजोर करता है। पानी अपना रास्ता खोजते हुए ग्लेशियर के भीतर ही बहता है। इससे और तेजी से बर्फ पिघलती है।
सियाचिन ग्लेशियर (Siachen Glacier)
सियाचिन दुनिया का सबसे ऊंचा वॉर ज़ोन है जो काराकोरम रेंज में समुद्र तल से 20 हज़ार फ़ुट की ऊंचाई पर स्थित है। नॉर्थ पोल और साउथ पोल के बाद सियाचीन दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है। यहां भारत-पाक नियंत्रण रेखा के पास ड्यूटी देने वाले सैनिकों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। क्योंकि यहां नॉर्मल टेंपरेचर माइनस 10 डिग्री होता है जबकि अक्टूबर से मार्च तक यहां का पारा माइनस से 70 डिग्री नीचे चला जाता है। यहां तक कि सर्दियों के मौसम में बर्फीले तूफ़ान और तेज़ हवाएं 200 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से चलती हैं। जिसमें हिमस्खलन का भी खतरा बना रहता है।
सियाचिन को 1984 में मिलिट्री बेस बनाया गया था। तब से लेकर अब तक 873 सैनिक सिर्फ खराब मौसम, बर्फीले तूफान और हिमस्खलन के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं। सियाचिन के नॉर्थ ग्लेशियर के पास 18 नवंबर 2019 को भयंकर हिमस्खलन (एवलांच) हुआ था। इसमें 4 जवानों के साथ 2 पोर्टरों (कुली) की मौत हो गई थी। जब ये एवलांच हुआ उस वक्त 19 हजार फीट पर सेना के 8 जवानों का दल गश्त कर रहा था।