श्रीनगर गढ़वाल: दिवंगत विभूति भगवती चरण शर्मा ‘निर्मोही’ की जयंती पर आखर समिति द्वारा उनके छाया चित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
“सुद्दि-मुद्दि गुस्सा नी ह्वे जाणू
प्रीत बिना कै मा नि रुसाणू”
गढ़वाली लोकगीत के लेखक यानी इस गीत के रचयिता दिवंगत विभूति गढ़वाल के श्रेष्ठ कवि और हिलांस जैसे कालजई गढ़वाली काव्य संग्रह के रचयिता श्रेष्ठ समाजसेवी और श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ स्वर्गीय भगवती चरण शर्मा ‘निर्मोही’ की जयंती के अवसर पर 11 सितंबर वुधवार शाम को गढ़वाली भाषा-साहित्य-संस्कृति को समर्पित ‘आखर समिति’ द्वारा श्रीनगर गढ़वाल के कल्याणेश्वर मंदिर में आयोजित बैठक में निर्मोही जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्हें याद किया गया। सभी जानते हैं कि निर्मोही जी का यह गीत उत्तराखंड के गौरव गढ़रत्न नरेंद्र सिंह नेगी जी ने गाया हुआ है। निर्मोही जी का जन्म 11 सितंबर 1911 में सिराला गांव देवप्रयाग में हुआ था।
इसके बाद ‘आखर समिति’ के संदीप रावत अपनी “ढ़िमढ़िम” रचना का वाचन किया. आज की बैठक की शुरुआत दिवंगत गढ़वाली साहित्यकार, समाज सेवी स्व. भगवती चरण शर्मा ‘निर्मोही’ के चित्र पर माल्यार्पण और पुष्प अर्पित कर की गई। बैठक की अध्यक्षता आखर के वरिष्ठ सदस्य डी.पी.खण्डूड़ी द्वारा की गई। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि ऐसी दिवंगत विभूतियों को याद किए जाना जरूरी है, जिन्होंने समाज के लिए और गढ़वाली साहित्य में अपने अमूल्य योगदान दिया है।
बैठक मे वक्ताओं ने समाज और साहित्य में निर्मोही जी के योगदान पर चर्चा की। उसके बाद आखर की पहले की गतिविधियों और आगे होने वाली गतिविधियों/प्रस्तावित कार्यक्रम पर चर्चा की गई। इसके साथ ही समय-समय पर दिवंगत गढ़वाली साहित्यकारों के साथ उन गढ़वाली साहित्यकारों को भी याद किया गया जो, जिनके लिखे साहित्य पर भी चर्चा हो हुई जो अब गढ़वाली साहित्य में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। बैठक में आखर समिति के डीपी खंडूरी, प्रभाकर बाबुलकर, राजीव कगड़ियाल, संदीप रावत, आरती पुण्डीर, श्रीमती अनीता काला, श्रीमती प्रियंका नेगी, श्रीमती रेखा चमोली आदि मौजूद रहे।