Butter Festival, Daira Bugyal

Butter Festival: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में समुद्र तल से लगभग 11000 फीट की ऊंचाई और 28 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले दयारा बुग्याल में आज ऐतिहासिक और पारंपरिक अंढूड़ी उत्सव यानी बटर फेस्टिवल धूमधाम से मनाया गया। उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 42 किलोमीटर की सड़क दूरी और भटवाड़ी ब्लाक के रैथल गांव से 6 किलोमीटर की पैदल दूरी पर करीब 28 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले दयारा बुग्याल में पीढिय़ों से भाद्रपद संक्रांति के दिन अंढूड़ी उत्सव मनाने की परंपरा चली आ रही है। इस अढूंडी उत्सव को बटर फेस्टिवल के नाम से भी जाना जाता है। इस बार मेले का शुभारंभ गंगोत्री विधायक सुरेश चौहान ने किया। मेलार्थियों ने प्रकृति की पूजा के साथ इस खास उत्सव में भाग लेकर मखमली घास में मक्खन व मट्ठे की होली खेली और इन लम्हों को स्मृतियों में कैद कर सदा के लिए यादगार बना दिया। मेले का लुत्फ लेने विभिन्न स्थानों से दयारा पहुंचे पर्यटकों का उत्साह भी देखते ही बनता था।

दयारा बुग्याल में आयोजित बटर फेस्टिवल के दौरान ग्रामीणों ने 200 किलो मट्ठा और 50 किलो मक्खन का इस्तेमाल कर जमकर होली खेली। जिसमें रैथल, भटवाड़ी, नटीण, गौरसाली के ग्रामीणों संग दिल्ली, आगरा, देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश सहित कई विदेशी सैलानियों के कुल 500 पयर्टकों ने प्रतिभाग किया। यहां राधा और कृष्ण के साथ होल्यारों ने मक्खन एवं मट्ठे की होली खेलते हुए बुग्याल का चक्कर लगाया और मक्खन से भरी मटकी फोड़ी। इस कार्यक्रम में प्रदेश के मुख्यमंत्री ने पहुचना था लेकिन मौसम खराब होने के चलते नही आ पाए। जिसके बाद मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने सोशल मीडिया के माध्यम क्षेत्र वासियों को बधाई दी।

कोरोना काल के दो वर्ष बाद आयोजित इस त्यौहार को इस वर्ष भव्य रूप में मनाया गया। सभी ग्रामीण पुरुष व महिलायें पारंपरिक वेश भूषा के साथ दयारा बुग्याल पहुंचे। जहां सभी ने स्थानीय देवी देवताओं की पूजा अर्चना की और मक्खन मट्ठा की होली खेली। इस दौरान महिलाओं एवं ग्रामीणों ने वाद्यय यंत्रो की थाप पर पारंपरिक रासौ नृत्य किया और दर्शकों का समा बांधा।

क्यों मनाते हैं अढूंड़ी उत्सव (Butter Festival)?

दयारा पर्यटन विकास समिति के अध्यक्ष मनोज राणा ने बतया कि समुद्रतल से 11 हजार फीट की उंचाई पर स्थित दयारा बुग्याल में रैथल के ग्रामीण गर्मियों की शुरूआत में ही अपने मवेशियों के साथ छानियों में चले जाते हैं। सावन महीने के बीतने के साथ ही उंचाई वाले इलाकों में ठंड की दस्तक शुरू हो जाती है तो ग्रामीण भी अगस्त महीने के दूसरे पखवाड़े में मवेशियों संग गांव लौटना शुरू कर देते हैं। इतनी उंचाई पर मवेशियों की रक्षा करने और दुग्ध उत्पादन में अप्रत्याशित वृद्धि होने पर ग्रामीण लौटने से पहले भाद्रपद महीने की संक्राति को यहां दूध मक्खन मट्ठा की होली खेलकर लोक देवताओं की पूजा करते हैं।

पहले इस होली को गाय के गोबर से खेला जाता था। बाद में अढूंड़ी उत्सव को पर्यटन से जोड़ने के बाद ग्रामीणों ने मक्खन और मट्ठे की होली खेलना शुरू कर दिया। वर्तमान समय में बटर फेस्टिवल के नाम से मशहूर हो चुके अढूंड़ी उत्सव के आयोजन से उत्तरकाशी के साथ उत्तराखंड राज्य की लोक संस्कृति का देश-विदेश में प्रचार-प्रसार हुआ है।