कल्जीखाल : पौड़ी जनपद का एक गांव इन दिनों काफी चर्चा में हैं। और इस गांव का चर्चा में होना भी स्वाभाविक है, क्योंकि वर्ष 2013 में आखिरी परिवार के पलायन कर जाने के बाद पूरी तरह से निर्जन (घोस्ट विलेज) हो चुका यह गांव कोरोना महामारी के चलते एक बार फिर से आबाद हो चुका है। यही नहीं दो रोज पहले ही पौड़ी जनपद के जिलाधिकारी डॉ. विजय जोगदण्डे ने मुख्य सड़क से करीब 3 किलोमीटर पैदल चलकर इस गांव में लौटे प्रवासियों से मुलाकात कर उनका हालचाल जाना। जिलाधिकारी के गांव पहुंचने पर प्रवासी भावुक हो गए थे।
हम बात कर रहे हैं पौड़ी जनपद के विकासखण्ड कल्जीखाल के पट्टी मनियारस्यूं की ग्राम पंचायत थनुल के अंतर्गत चौंडली गांव की। हमारे संवाददाता ने बताया कि जिला मण्डल मुख्यालय से करीब 40 किलोमोटर दूर इस गांव में आज से दो दशक पहले करीब 15 परिवार रहते थे। हालाँकि मूलभूत सुविधाओँ के अभाव में पलायन के चलते यह गाँव तभी लगभग खाली हो गया था। परन्तु वर्ष 2013 में इस गांव का आखरी परिवार (प्रेम सिंह नेगी उनकी पत्नी सुरमा देवी) भी वृद्धा अवस्था में मूलभूत सुविधाओँ के अभाव में ना चाहते हुए भी अपने बेटों के साथ दिल्ली चले गए। और वर्ष 2013 में इस गांव को भी अन्य कई गांवो की तरह घोस्ट विलेज घोषित कर दिया गया।
बताते हैं कि एक समय चौंडली गांव बेहद आबाद था। जहां पर कई प्रकार के कृषि उत्पाद उगाये जाते थे, पशुपालन होता था। यहाँ की सिंचित खेतों की बासमती काफी प्रसिद्ध थी। इस गांव में आसपास गांवों के लोग भी खेती करने आते थे। चारो तरफ पर्याप्त मात्रा में झरनों का बहता पानी था। पूर्वजो ने अपनी ही मेहनत से सिंचाई के लिए गूल बनाई थी। गांव की मुख्य आजीविका खेती और पशुपालन ही था। लेकिन धीरे-धीरे परिस्थितियां विकट होती चली गई, लोगों ने जंगली जानवरों के प्रकोप से बर्बाद होती फसल के चलते खेती बाड़ी भी छोड़ दी। और इसके साथ ही मूलभूत सुविधाओं के अभाव तथा रोजगार की तलाश में लोगों ने गांव ही छोड़ दिया।
कोरोना की प्रथम लहर में चौण्डली गांव के तीन भाई जगदीश, मनमोहन और जगमोहन गांव लौटे और अपना पुश्तैनी मकान मरम्मत करवाकर कई महीने गांव में ही रहे। परन्तु फिर कुछ दिन बाद सुविधाओं के अभाव में वापस चले गए। परन्तु जैसे ही कोरोना महामारी की दूसरी लहर आयी, तो कोरोना से महफूज रहने के लिए फिर से गांव की याद आई। और तीनो भाई आपसी सलाह मशविरा कर परिवार सहित गांव लौट आए। उनके आने से फिर गांव आबाद हो गया। और निर्जन हो चुका चौंडली गांव अखबारों की सुर्खियां बन गया। जिलाधिकारी भी प्रवासियों की सुध लेने पैदल गांव पहुंच गए। उनके गांव पहुंचने पर महिलाएं भावुक हो गयी। जिलाधिकारी ने दुर्गम गांव में कई किलोमीटर पैदल चल कर उनकी समस्याएं इत्मीनान से सुनी। उनके गांव के साथ साथ अन्य गांवों में आए प्रवासियों की उम्मीद जगी। हालाँकि चौंडली गाँव इस तरह का अकेला गांव नहीं था। एक रिपोर्ट के मुताबिक पूरे उत्तराखंड में कुल 1700 से ज्यादा घोस्ट विलेज (निर्जन गाँव) हैं। जिन गांवों से पूरी तरह पलायन हो चुका है। इनमे से सबसे ज्यादा 517 घोस्ट विलेज अकेले पौड़ी जिले में हैं।
उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले प्रदेश के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने वर्चुअल कांफ्रेंस के मध्यम से प्रदेश के सभी जिलाधिकारियों को कहा था कि कभी कभी मुख्यालय छोड़कर गांवों की सुध भी ले लिया करें। अब पौड़ी जिलाधिकारी द्वारा सुदूरवर्ती गांव में जाकर प्रवासियों की सुध लेने, मूलभूत सुविधायें उपलब्ध करवाने तथा उनको स्वरोजगार से जोड़ने के लिए अपने स्तर से किये गए प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री ने भी जिलाधिकारी पौडी की सरहाना की।
ग्राम प्रधान थनुल नरेन्द्र सिंह नेगी ने भी उनकी ग्राम सभा में जिलाधिकारी के आने पर आभार ब्यक्त किया।
जगमोहन डांगी
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