नई दिल्ली: इन दिनों उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों को संविधान की पांचवीं अनुसूची में शामिल करने की मांगजोर-शोर से उठ रही है। इस मांग को लेकर पर्वतीय राज्य के मूल निवासी 22 दिसंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर अपनी आवाज बुलंद करने आ रहे हैं। उत्तराखंड एकता मंच के बैनर तले 22 दिसंबर यानी रविवार को दिल्ली के जंतर-मंतर पर ‘उत्तराखंड मूल निवासी संसद’ का आयोजन किया जा रहा है। इसमें राज्य के अनेक बुद्धिजीवी, समाजसेवी, विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधि, पूर्व नौकरशाह, पूर्व फौजी, आंदोलनकारी, महिलाएं, युवा आदि शामिल होकर उत्तराखड के पर्वतीय इलाके को पहले की भांति जनजातीय क्षेत्र घोषित कर सरकार से इसे संविधान की 5वीं अनुसूची में शामिल करने की मांग करेंगे।

उत्तराखंड एकता मंच का कहना है कि यह इलाका पहले जनजातीय क्षेत्र के तौर पर अधिसूचित था और यहां के मूल निवासियों को जल, जंगल, जमीन संबंधी अधिकार प्राप्त थे, जिन्हें सरकार ने 1972 में खत्म कर दिया था। इसका पर्वतीय जनजीवन पर बहुत विपरीत असर पड़ा। पर्वतीय क्षेत्रों में आजीविका के साधनों की नितांत कमी तथा अन्य कारकों से बहुत तीव्र गति से पलायन हो रहा है और हजारों गांव जनशून्य हो गए हैं।

पहाड़ में घटती जनसंख्या के कारण पिछली बार हुए विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन में पहाड़ों की विधानसभा सीटें कम हो गईं और अगले परिसीमन में यहां का प्रतिनिधित्व और भी घटने की आशंका है। इसका सीधा दुष्प्रभाव यहां के विकास तथा लोगों के जीवन स्तर पर पड़ रहा है। जबकि, यह क्षेत्र दो अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से घिरा हुआ है। इस दुर्गम क्षेत्र का जनविहीन होते जाना राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से बहुत खतरनाक हो सकता है। इस महत्वपूर्ण विषय पर राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से ध्यान दिया जाना जरूरी है।

यह सभी समस्याएं केवल उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र को फिर से जनजातीय क्षेत्र घोषित कर इसे संविधान की 5वीं अनुसूची में शामिल करने से ही हल होंगी। यह क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से जनजाति बहुल रहा है। इसीलिए, भारत सरकार द्वारा किसी भी समुदाय को जनजाति घोषित करने के जो मानक निर्धारित किए गए हैं, उनमें उत्तराखंड का पर्वतीय क्षेत्र खरा उतरता है, क्योंकि यह मूलत: खस जनजातीय क्षेत्र था। इसके ऐतिहासिक तथा सरकारी प्रमाण मौजूद हैं।

संगठन का कहना है कि जनजाति का दर्जा वापस मिलने तथा संविधान की 5वीं अनुसूची में शामिल करने से पहाड़ी इलाकों से बहुत तेजी से हो रहे पलायन पर रोक लगेगी और पहाड़ में पहले जैसी खुशहाली लौटेगी। ‘उत्तराखंड मूलनिवासी संसद’ में इन्हीं मुद्दों पर उत्तराखंड के जनमानस द्वारा प्रस्ताव पास किया जाएगा। इसके बाद, सरकार को एक ज्ञापन देकर यही मांग की जाएगी की वे उत्तराखंड विधानसभा में 5वीं अनुसूची का प्रस्ताव पास करके इसे केंद्र सरकार को भेजें ।

पांचवीं अनुसूची से जुड़ी खास बातें

  • इस अनुसूची का मकसद आदिवासी समुदायों की संस्कृति, रीति-रिवाज, जमीन, और संसाधनों के अधिकारों को बचाना है।
  • इस अनुसूची के तहत आने वाले इलाकों में गैर-आदिवासी लोगों या संस्थाओं को जमीन हासिल करने के लिए राज्यपाल की अनुमति लेनी होती है।
  • अनुसूचित क्षेत्रों में शांति और संतुलन बना रहता है।
  • अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन के लिए राज्यपाल के पास विशेष अधिकार और जिम्मेदारियां होती हैं।
  • अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन से जुड़ी रिपोर्ट हर साल या राष्ट्रपति की मांग पर राज्यपाल राष्ट्रपति को देता है।

क्या होंगे फायदे?

  • आदिवासी समुदायों के अधिकारों की रक्षा होगी।
  • स्थानीय समुदायों के संसाधनों और आजीविका पर अधिकार सुरक्षित रहेंगे।
  • प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन पर रोक लगेगी।
  • बाहरी लोगों द्वारा ज़मीन खरीदने के नियम सख्त होंगे।
  • युवाओं को सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण का लाभ मिलेगा।