Jagada festival in Mahasu Devta Temple Hanol: जौनसार बावर के हनोल स्थित प्रसिद्ध सिद्धपीठ महासू देवता मंदिर में आयोजित राजकीय मेला (जागड़ा पर्व) आज धूमधाम से शुरू हुआ। दो दिवसीय जागड़े पर्व के पहले दिन हजारों की संख्या में श्रद्धालुओं ने देव दर्शन किए। इस दौरान भंजरा पंचरा की ध्यांटुडियों (बेटियां) ने बौठा महासू और चालदा महासू देवता को सात तोले का सोने का छत्र अर्पित कर गांव की खुशहाली और सुख शांति की कामना की। सोने का छत्र गांव की 300 बेटियों ने आपसी सहयोग से धन एकत्र कर देव को अर्पित करने के निए खरीदा था। छत्र अर्पित करने वालों में विवाहित और अविवाहित दोनों ही ध्यांटुड़िया शामिल रहीं।
जागड़ा पर्व को देखने के लिए जौनसार बावर, उत्तरकाशी, टिहरी गढ़वाल और हिमाचल प्रदेश के सीमांत क्षेत्र से रोडवेज बसों, टैक्सी, यूटिलिटी और निजी वाहनों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु मेला देखने पहुंचे। श्रद्धालुओं ने मंदिर में दर्शन और पूजन किया। वहीं शाम को कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज हनोल में रात्रि प्रवास के लिए पहुंचेंगे।
300 से अधिक गांव की ध्यांटुडियां हुई शामिल
छत्र अर्पित करने में देव पुजारी कुलदीप शर्मा, प्रवेश शर्मा, कुल पुरोहित तुलसी राम शर्मा, डिगंबर सिंह बिष्ट, भंडारी रमेश चौहान, कुंवर सिंह चौहान, देव माली दीवान सिंह चौहान, क्षेत्र पंचायत सदस्य कांती राणा, ग्राम प्रधान रीता बिष्ट, अमीता देवी, मुल्लो देवी, सीमा तोमर, पूलमा देवी, सुंदला देवी, टीको देवी, पारो देवी, रविता देवी, सुमित्रा देवी, सुरमा देवी सहित 300 से अधिक गांव की ध्यांटुडियां भी उपस्थित रही।
महासू देवता की कहानी-
महासू देवता मंदिर उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में त्यूनी-मोरी रोड के नजदीक व चकराता के पास हनोल गांव में टोंस नदी के पूर्वी तट पर स्थित है। महासू देवता जौनसार बावर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के ईष्ट देव हैं। महासू को न्याय के देवता भी कहा जाता है। महासू देवता मंदिर में महासू देवता की पूजा की जाती हैं, जो कि शिवशंकर भगवान के अवतार माने जाते हैं। ‘महासू देवता’ एक नहीं चार देवताओं का सामूहिक नाम है और स्थानीय भाषा में महासू शब्द ‘महाशिव’ का अपभ्रंश है। चारों महासू भाइयों के नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू (बौठा महासू) और चालदा महासू है, जो कि भगवान शिव के ही रूप हैं। मिश्रित स्थापत्य शैली के इस मंदिर का निर्माण नवीं सदी में हुआ माना जाता है। वर्तमान में यह मंदिर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के संरक्षण में है। कहा जाता है कि पांडवों ने भी माता कुंती के साथ कुछ वक्त इसी स्थान पर गुजारा था। यह मंदिर 9वीं शताब्दी में बनाया गया था।
किवदंती है कि महासू देवता का मंदिर जिस गांव में बना है उस गांव का नाम हुना भट्ट ब्राह्मण के नाम पर रखा गया है। इससे पहले यह जगह चकरपुर के रूप में जानी जाती थी। पांडव लाक्षा ग्रह( लाख का महल) से निकलकर यहां आए थे। हनोल का मंदिर लोगों के लिए तीर्थ स्थान के रूप में भी जाना जाता है।
महासू देवता के बारे में बहुत ही कम लोग जानते है। महासू देवता न्याय के देवता है, जो उत्तराखड के जौनसार-बावर क्षेत्र से सम्बन्ध रखते है। महासू देवता चार देव भ्राता है जिनके नाम इस प्रकार है।
- बोठा महासू
- पबासिक महासू
- बसिक महासू
- चालदा महासू
जनजाति क्षेत्र जौनसार – बावर के ग्राम हनोल स्थित तमसा (टौंस) नदी किनारे श्री महासू देवता का मंदिर वास्तुकला के नागर शैली में बना है। पौराणिक कथा के अनुसार किरमिक नामक राक्षस के आंतक से क्षेत्रवासीयो को छुटकारा दिलाने के लिए हुणाभाट नामक ब्राह्मण ने भगवान शिव और शक्ति की पूजा / तपस्या की। भगवान शिव और शक्ति के प्रसन्न होने पर मैट्रेथ हनोल में चार भाई महासू की उत्पत्ति हुई और महासू देवता ने किरमिक राक्षस का वध कर क्षेत्रीय जनता को इस राक्षस के आंतक से मुक्ति दिलाई, तभी से लोगो ने महासू देवता को अपना कुल आराध्य देवता माना और पूजा अर्चना शुरू की।
बोठा महासू , बाशिक महासू, पवासी महासू और चालदा चार महासू भाई है। बोठा महासू देवता का मुख्य मंदिर हनोल में है, बोठा महासू को न्याय का देवता कहा जाता है उनका निर्णय स्थानीय लोगो में सर्वमान्य होता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार महासू मंदिर हनोल में 9 वीं से 10 वीं शताब्दी का बताया गया है।
महासू देवता के प्रति क्षेत्रवासियों की अटूट श्रद्धा
महासू देवता के प्रति क्षेत्रवासियों की अटूट श्रद्धा है आज भी किसी भी विवाद होने पर न्याय के लिए ग्रामीण महासू देवता के मंदिर में पहुंचते हैं। इस पर्व को दोनों गांव के ग्रामीण धूमधाम से मनाते हैं। गांव से बाहर रहने वाले लोग भी इस मौके पर गांव पहुंचते हैं और देवता के दर्शन कर मन्नतें मांगते हैं।