ghee-sankranti

हरेला के महीने भर चला अभियान डॉ माधुरी बड़थ्वाल, रेखा उनियाल के चौमासी गीतों और शांति बिंजोला सुनीता बहुगुणा के ढोल के साथ संपन्न हुआ

हरेला अभियान के नेतृत्व के लिए आशा डोभाल और  पौधा लगाने और उन्हें संरक्षित करने के लिए नागरिकों को हरेला साथी सम्मान दिए गए

धाद का महीने हरेला से घी संग्रान्द तक चलने वाला अभियान आज पहाड़ के अन्न धन और भोजनं के पर्व घी संग्रांद में पहाड़ी भोजन परम्परा के साथ समाप्त हुआ। संस्कृति विभाग प्रेक्षागृह में आयोजित समारोह में हरेला अभियान को नेतृत्व देने के लिए आशा डोभाल को हरेला नायक सम्मान दिया गया। और हरेला माह में पौधा लगाने और उन्हें वृक्ष बनाने के संकल्प के लिए नागरिकों को सम्मानित किया गया। आयोजन का शुभारम्भ शांति बिंजोला, सुनीता बहुगुणा के मांगल गीत के साथ हुआ। इस अवसर पर अर्चना ग्वाड़ी, हिमांशु आहूजा, साकेत रावत, सुशील पुरोहित, बीरेंद्र खंडूरी, दीपक खंडका, महावीर रावत, मनोहर लाल, दयानद डोभाल, सुरेश कुकरेती को हरेला साथी सम्मान के रूप में पहाड़ का अनाज भेंट किया गया।

आयोजन में मुख्य आकर्षण पद्मश्री डॉ माधुरी बड़थ्वाल और रेखा उनियाल के द्वारा पहाड़ में गाये जाने वाले चौमास के लोकगीत रहे। आयोजन का लोक पक्ष रखते हुए डॉ बड़थ्वाल ने कहा कि भादो की पहली संक्रांति हरियाली से भरपूर होती है। ऐसे में भरपूर चारे के कारण गाय के साथ घी दूध की प्रचुरता रहती है। इस अवसर पर बेटियों को मायके बुलाने और जवाईं को भोजन जिमाने के बहुत लोकगीत पाए जाते है।

घी संग्रांद की भोजन अवधारणा को रखते हुए कल्यो की संयोजक मंजू काला ने कहा आज पहाड़ी भोजन परंपरा को जानने समझने की आवश्यकता और इसके साथ जुडी अपार आर्थिक सम्भावनाओ को तलाशा जाना चाहिए। जिसमे फूड और अनाज को टूरिज्म से जोडना और प्रदेश के हवाई अड्डों में फूड विलेज का निर्माण किया जाये। केरल और सिक्किम की तर्ज  पर बुरांश, माल्टे, चुलु, खुबानी के बागानों में होम स्टे संचालन जैस से उपाय किये जाने चाहिए। साथ ही चारधाम मार्ग पर  पहाड़ी स्नैक्स  उपलब्ध करवाना सुनिश्चित किया जाय। साथ ही महिलाओं को पहाड़ी व्यंजन पकने परोसने और उनमे प्रयोग करने के लिए कार्यशालाएं आयोजित की जानी चाहिए। ताकि वे अपने घरों में होम स्टे चलाकर स्वरोजगार उत्पन्न कर सके।

हरेला अभियान का परिचय देते हुए धाद की ओर से तन्मय ने कहा कि हरेला और घी सन्ग्राद कृषि से जुड़े पर्व हैं। जब पूरे देश दुनिया में शहरीकरण बढ़ रहा है, ऐसे में कृषि पर्व आम समाज के बीच में अपनी प्रासंगिकता खो रहे हैं। जबकि आम नागरिक आज भी अपने आहार के लिए उसी कृषि पर आश्रित है। इसलिए हमे एक उपभोक्ता से आगे बढ़ते हुए कृषि समाज के प्रति संवेदनशील होने की जरुरत है। हमे उसके संकटों से भी जुड़ना होगा। धाद ने इस पहाड़ के गाँव खेती से जुड़ते हुए हरेला गाँव और फँची कार्यक्रम के साथ पहल की है। फँची के सचिव किशन सिंह ने कहा कि धाद ने हरेला में शहर में वृक्षरोपण के साथ गाँव के उत्पादक समाज से जुड़ने के लिए हरेला गाँव कार्यक्रम प्रारम्भ किया है। जिसे फँची के माध्यम से शहर में उपभोक्ता समूह बनाते हुए गाँव को आधार दिया जाएगा। कोई भी नागरिक इस मुहीम से मात्र 100 रु के साथ जुड़ सकता हैं।

सभा की अध्यक्षता करते हुए लोकेश नवानी ने कहा कि हरेला को एक सामान्य सांस्कृतिक त्यौहार से निकालकर एक पर्यावरण संरक्षण के अभियान में बदल देना धाद सफलता है। धाद ने इस विचार को नई परिभाषा तो दी ही, इस परिकल्पना को ज़मीन पर भी उतारा तथा इस अभियान से एक वृहत्तर समाज को जोड़ा है। आयोजन का संचालन सुशील पुरोहित और अर्चन ग्वाड़ी  ने किया।

इस मौके पर माया इंस्टिट्यूट से डॉक्टर तृप्ति जुयाल, आई। टी। एम। से निशांत थपलियाल,  इंस्पेक्टर संजय उपरेती, चंद्र शेखर तिवारी, उत्तम सिंह रावत, विनय आनंद बौराई , डाक्टर सरस्वती सिंह, प्रतिभा पाठक, तपस्या सती,  लीला नेगी,  नीलिमा धूलिया, प्रदीप डोभाल , विजय ममगाई , शैलेन्द्र सेमवाल, लक्ष्मी मिश्रा आदि मौजूद रहे।