भारत के 74वें गणतन्त्र दिवस के अवसर पर सामाजिक संस्था धाद ने स्मृतिवन में झंडारोहण का आयोजन किया। धाद के केंद्रीय अध्यक्ष लोकेश नवानी ने झंडा फहराकर भारत के संविधान के मूल्यों को जीवन मे लाने की बात की।

वहीं उर्जा भवन देहरादून में भारत के 74 वें गणतन्त्र दिवस के अवसर पर उत्तराखण्ड पवार कॉर्पोरेशन द्वारा भारतीय गणतंत्र के नैतिक मूल्यों को जन जन तक पहुंचाने और उसको अपने कार्यक्रमों से  अधिक समावेशी बनाने के लिए सामाजिक संस्था धाद को सम्मानित किया गया। धाद की ओर से यह सम्मान केंद्रीय उपाध्यक्ष गणेश चन्द्र उनियाल और महासचिव तन्मय ममगाईं द्वारा कॉर्पोरेशन के प्रबंध निदेशक अनिल यादव से प्राप्त किया गया।

स्मृतिवन में झंडारोहण के अवसर पर उपाध्यक्ष डीसी नौटियाल ने अपने संबोधन में सभी को 74वें गणतंत्र दिवस की बधाई देते हुए कहा कि इस संविधान निर्माण के बाद ही असंख्य बलिदानों को एक श्रद्धांजलि मिल पाई। भारतीय संविधान विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का प्रतिनिधि है, इसके बनने और लागू होने के दिन का अपना एक विशेष  गौरवशाली इतिहास है। एक नागरिक के तौर पर हम सभी को एक बेहतर देश के निर्माण के लिए लगातार प्रयासरत रहना चाहिए।

धाद के अध्यक्ष लोकेश नवानी ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमें संविधान बनने और उसके पीछे के इतिहास को बार बार इस अवसर पर याद करने की जरूरत है। ताकि हम संविधान की मूल आत्मा को न भूलें।  भारत का संविधान दुनिया के उन चुनिंदा संविधानों में से एक है, जिसमें भविष्य का दृष्टिकोण छिपा है और साथ ही साथ एक ऐसे बेहतर समाज के निर्माण की परिकल्पना भी इसमें समाहित है, जो समाज की धर्म, जाति,  परंपरा से उपजी विद्रूपताओं से समाज को बचाने की क्षमता भी रखता है।

संविधान के मूल उद्देश्यों को पाने के लिए समाज की मदद से अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने का धाद एक बेहतरीन उदाहरण है। यदि विचार  दृढ़ और नेकनीयत हो तो कम संसाधनों में भी समाज पर प्रभाव छोड़ा जा सकता है और धाद इस परिकल्पना से ही उपजा हुआ संगठन है। धाद ने अपनी गतिविधियों और प्रयोगों के मार्फत समाज में व्याप्त टैबू और हीनभावना को तोड़ने का काम किया। लगातार वैचारिक स्तर पर काम करने का नतीजा ही है कि आज धाद को प्रदेश के बाहर देश-विदेश में भी लोग जान रहे हैं। धाद सकारात्मक विचार के साथ काम करने वाली संस्था है। इस अवसर पर मौजूद थे।

ऊर्जा भवन में कॉर्पोरेशन के कर्मचारियों और अधिकारियों को संबोधित करते हुए धाद की ओर से तन्मय ममगाईं ने इस सम्मान के लिए आभार प्रकट करते हुए कहा कि धाद के सभी कार्यक्रम भारतीय संविधान के उन मूल्यों के निमित्त हैं जिनकी स्थापना देश की आजादी के बाद लिखित संविधान में दर्ज है। धाद के  कार्यक्रम एक कोना कक्षा का जहां शिक्षा में समाज की रचनात्मक भूमिका के लिए प्रदेश के स्कूलों में समाज के आम आदमी के सहयोग से 600 कोनों की स्थापना के साथ काम कर रहा है वहीं पुनरुत्थान समाज के संकटग्रस्त परिवार के बच्चों की शिक्षा में 45 लाख के योगदान के साथ आगे बढ़ रहा है।

उत्तराखण्ड के लोकपर्वो को सामजिक संदर्भो के साथ स्थापित करने की धाद की पहल ने हरेला, घी संग्रान्द, इगास और फूलदेई को व्यापक पहचान दिलाई है। प्रकृति पर्व हरेला को समाज और शासन तक पहुंचाने के साथ 300 पौधों का स्मृतिवन, बालवन के प्रयोग हो रहे हैं वही फंचि कल्यो जैसे आयोजन पहाड़ के अन्न और उसकी भोजन परम्परा को पुनः स्थापित कर रहे हैं।

हमारे सभी कार्यक्रम समाज को धाद यानी आवाज लगा रहे हैं और उनकी भागी दारी के साथ आगे बढ़ रहे हैं।