One Nation One Election: हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग एवं डॉक्टर अंबेडकर उत्कृष्टता केंद्र के संयुक्त तत्वाधान में “एक राष्ट्र एक चुनाव : भारत के चुनावी भविष्य का विश्लेषण ” विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल आफ इंटरनेशनल स्टडीज के प्रो. फूल बदन रहे। उन्होंने कहा कि जिस लोकतंत्र में जितनी सहजता और पारदर्शिता से जनता को अपना प्रतिनिधि चुनने की आजादी होती है, वह उतना ही बेहतर लोकतंत्र कहलाता है। देश में एक साथ चुनाव कराने के साथ-साथ कुछ चुनाव सुधार करने आवश्यक हैं। चुनाव में राजनीतिक अपराधीकरण पर रोक लगाने की भी सबसे अधिक जरूरत है। उन्होंने कहा कि हमें एक राष्ट्र, एक चुनाव के विषय में चर्चा करने से पूर्व चुनाव में उत्पन्न भ्रष्टाचार व लोकतंत्र संबंधित नकारात्मक पक्षों को सुधारने की भी आवश्यकता है।
मानविकी और सामाजिक विज्ञान की संकाय अध्यक्ष प्रोफ़ेसर हिमांशु बौड़ाई ने चुनाव के ऐतिहासिक पक्षों का परिचय देते हुए कहा कि पहले स्वतंत्रता के बाद 1967 तक चुनाव एक साथ ही होते थे किंतु धीरे-धीरे परिस्थितियां बदलने लगी। एक राष्ट्र एक चुनाव के विषय में उन्होंने इसके लिए आने वाली समस्याओं व उनके समाधान के ऊपर अपने विचार रखें जिसका प्रारंभ उन्होंने अंबेडकर के वक्तव्य के साथ किया, ‘आप किसी भी व्यवस्था को अपना लीजिए, जब तक आप नहीं बदलोगे कुछ नहीं बदलेगा। समाज में उपस्थित जाति, धर्म एवं भाषा को उन्होंने लोकतंत्र के लिए तथा चुनावों के लिए नुकसानदेह बताया। उन्होंने कहा कि इनमें सुधार लाकर लोकतंत्र को बचाना होगा। उन्होंने मत या वोट की विशेषता को बताते हुए कहा कि मत ही जनता की शक्ति है इसे अच्छे से प्रयोग किए जाने की जरूरत है।
राजनीति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर एमएम सेमवाल ने भारतीय चुनावों में प्रारंभ से लेकर अभी तक हुए बदलाव के विषय में विस्तार से बताया जिसमें उन्होंने कहा कि स्वतंत्र भारत के पहले तीन चुनावो में मात्र 10 करोड़ रुपए का खर्चा आया था किंतु 2019 के लोकसभा चुनाव में लगभग 60 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। वर्तमान चुनावों के विषय में बात करते हुए उन्होंने कहा कि जब भी चुनाव होते हैं तब मीडिया केवल चुनाव पर ही चर्चा करता है विकास के अन्य मुद्दे गौण हो जाते हैं। इसके साथ ही पहले राजनेताओं में धैर्य, सहजता के साथ राष्ट्रहित का भाव भी रहता था लेकिन आज प्रत्येक राजनेता अपने दल एवं चुनाव तक सीमित हो गया है। उन्होंने एक राष्ट्र ,एक चुनाव के सकारात्मक एवं नकारात्मक पक्षों पर अपने विचार रखते हुए कहा कि एक साथ चुनाव में क्षेत्रीय मुद्दों की उपेक्षा होगी एवं यह क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व पर भी प्रश्नचिन्ह लगा सकता है। बार-बार चुनाव जनता के राजनीतिक टेंपरेचर को मापने का एक साधन है। हमें ऐसा पॉलीटिकल कल्चर स्थापित करना होगा जिसमें सरकार स्थाई बने। संविधान में संशोधन करते समय यह देखना जरूरी है कि संसदीय ढांचे की मजबूती भी बने रहे और राज्यों की संप्रभुता भी बरकरार रहे।
छात्रा अलापनी जेपी ने एक राष्ट्र एक चुनाव के समक्ष चुनौतियों एवम उसकी संभावनों पर अपनी बात रखी।
एमए के छात्र प्रकाश ने भारत के चुनावों के विषय में विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि भारत में पहले 1967 तक भी एक चुनाव ही होता था। लेकिन धीरे धीरे चुनावों में बदलाव होते रहे। लेकिन वर्तमान में फिर इसकी मांग की जा रही है जो सही भी है, क्योंकि जब अमेरिका और ब्रिटेन में एक चुनाव होते हैं तो यह भारत में भी संभव है।
कार्यक्रम का संचालन शोध छात्रा विदुषी डोभाल द्वारा किया गया। कार्यक्रम में सर्वश्रेष्ठ वक्त्ता का प्रमाण पत्र राजनीति विज्ञान विभाग के एमए के छात्र दीपक कुमार को मिला। इस कार्यक्रम में DACE से डॉक्टर आशीष बहुगुणा एवं डॉक्टर प्रकाश , तथा राजनीति विज्ञान विभाग के शोध छात्र शुभम, देवेंद्र, अरविंद, आयुषी, शैलजा एवं अन्य विभागों के स्नातक एवं स्नातकोत्तर के छात्र छात्राएं उपस्थित थे।