देहरादून : पैरालंपिक शूटिंग में कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पदक जीत चुकी देश की पहली दिव्यांग शूटर दिलराज कौर आज जीवनयापन के लिए नमकीन और बिस्किट बेचने को मजबूर हैं। उत्तराखंड के देहरादून निवासी अंतर्राष्ट्रीय निशानेबाज दिलराज कौर विभिन्न प्रतियोगिताओं में 24 स्वर्ण, 08 रजत और 03 कांस्य पदक जीत चुकी है। दिलराज कौर के पैर भले ही कमजोर हैं, लेकिन शूटिंग रेंज में उनका अचूक निशाना ही उनकी पहचान है। ग्रेजुएशन की पढ़ाई के दौरान उन्हें शूटिंग की प्रेरणा मिली। इसके बाद 2004 में तीसरी उत्तरांचल स्टेट शूटिंग चैंपियनशिप में 10 मीटर एयर पिस्टल का स्वर्ण पदक जीतने के साथ दिलराज के कॅरियर की शुरुआत हुई। उन्होंने उत्तराखंड स्टेट शूटिंग चैंपियनशिप में 2016 से 2021 तक चार स्वर्ण पदक जीते। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी एक रजत पदक हासिल किया।
परन्तु आज दिलराज कौर पारिवारिक संकट के कारण मुश्किल हालात में हैं। पिता और भाई की मृत्यु के बाद उनके सामने आर्थिक संकट और भी गहरा गया है। मजबूरी में वो अपनी मां के साथ नमकीन-बिस्किट सहित छोटा-मोटा सामान बेच रहीं हैं, जिससे कि उनके घर का खर्च चल सके। आज यह अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी देहरादून के गांधी पार्क के बाहर दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करती दिखी। बकौल दिलराज, उन्होंने बीते 15-16 साल में निशानेबाजी में राष्ट्रीय ही नहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देश और प्रदेश का मान बढ़ाया है। इसके बदले में सरकार उन्हें एक अदद नौकरी तक उपलब्ध नहीं करा पाई। अब वह नमकीन-बिस्किट की अस्थायी दुकान के सहारे खुद के पैरों पर खड़ा होने की कोशिश कर रही हैं।
दिलराज ने सिस्टम पर तंज कसते हुए कहा, हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि आत्मनिर्भर बनो। मैं नमकीन-बिस्किट बेचकर आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रही हूं। तीन-चार महीने से घर के आसपास अस्थायी दुकान लगा रही थी, मगर वहां ज्यादा बिक्री नहीं होती थी। किसी ने सुझाव दिया कि भीड़ वाले क्षेत्र में दुकान लगाओ तो गांधी पार्क के बाहर काम शुरू कर दिया।
दिलराज की जो उपलब्धियां हैं उनके अनुसार उन्हें खेल या दिव्यांग कोटे से नौकरी मिलनी चाहिए थी। दिलराज बताती हैं कि इसके लिए उन्होंने हर स्तर पर गुहार लगाई। कई बार आवेदन भी किया, मगर हर बार निराशा ही हाथ लगी।
दिलराज ने बताया कि उनके पिता सरकारी कर्मचारी थे। गंभीर रूप से बीमार होने के कारण उनके उपचार पर लाखों रुपये खर्च हुए। लंबे समय तक बीमार रहने के बाद वर्ष 2019 में पिता की मौत हो गई। कुछ समय पहले एक दुर्घटना में उनका भाई घायल हो गया। उनके उपचार पर भी बहुत ज्यादा खर्च आया। बाद में भाई की भी मौत हो गई। अब वो और उनकी मां किसी तरह अपनी आजीविका चला रही हैं। परिवार की पूरी सेविंग पिता और भाई के उपचार पर खर्च हो चुकी है। तब सीएम विवेकाधीन कोष से भी उनकी मदद की गई थी। साथ ही कई लोगों ने भी मदद की। परन्तु उपचार से उन पर कर्ज हो गया है, जिसे वो चुकाने का प्रयास कर रही हैं।