राजधानी देहरादून स्थित हर्रावाला आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में 4 दिनों से रजिस्ट्रार की नियुक्ति को लेकर राज्य की धामी सरकार पर सवाल उठाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद पुष्कर सिंह धामी ने उत्तराखंड में जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाने की घोषणा की थी। लेकिन इस बार उनके ही कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत ने मुख्यमंत्री धामी के लिए परेशानी बढ़ा दी है। (हालांकि अभी इस बात की पुष्टि नहीं है आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में कुलसचिव की नियुक्ति की गई है उसमें मंत्री हरक सिंह रावत की सहमति है या नहीं। हरक सिंह रावत पर सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि वही राज्य में आयुष मंत्रालय की कमान भी संभाले हुए हैं।)

अब आइए समझते हैं पूरा मामला क्या है, जिसमें राज्य की भाजपा सरकार खुद भी असहज महसूस कर रही है। भाजपा के ही कई नेता मंत्री इस नियुक्ति पर सवाल उठा रहे हैं। देहरादून के घंटाघर से हर्रावाला स्थित आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय करीब 15 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। इस विश्वविद्यालय में 3 साल पहले रजिस्टार मृत्युंजय मिश्रा को वित्तीय गड़बड़ी मामले में गिरफ्तार कर जेल भेजा गया था। इसी साल अगस्त महीने में उनकी सुप्रीम कोर्ट से जमानत हुई है। जमानत के बाद ही उन्हें एक बार फिर से पिछले दिनों आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में कुलसचिव पद की जिम्मेदारी दे दी गई है। इसी को लेकर उत्तराखंड की राजनीति में चार दिनों से सियासी पारा गरम है।

बुधवार को उन्होंने विश्वविद्यालय में रजिस्ट्रार के पद पर ज्वाइन भी कर लिया है। लेकिन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुनील जोशी डॉ मृत्युंजय मिश्रा से पहले से ही गुस्साए बैठे थे। अब मृत्युंजय की रजिस्ट्रार पद पर हुई नियुक्ति के बाद कुलपति ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कुलपति जोशी ने कुलसचिव मृत्युंजय मिश्रा से विश्वविद्यालय से संबंधित प्रशासनिक अधिकार नहीं देने के आदेश जारी कर दिए हैं। वहीं विजिलेंस जांच का सामना कर रहे मृत्युंजय मिश्रा का निलंबन बहाली से भाजपा भी पशोपेश में है। बता दें कि भाजपा सरकार में ही मिश्रा को आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलसचिव पद से हटा दिया गया था। निलंबन बहाली के बाद उनकी कुलसचिव पद पर वापसी कर दी गई है। अपने ही दो फैसलों से राज्य की भाजपा सरकार भी फंसती हुई नजर आ रही है।

वित्तीय गड़बड़ी के मामले में 2018 में मृत्युंजय को गिरफ्तार कर जेल भेजा था

आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में कुलसचिव पद पर रहते हुए भी गड़बड़ी के मामले में 3 दिसंबर 2018 को मृत्युंजय मिश्रा सतर्कता विभाग की कार्रवाई में जेल गए थे। इसी साल अगस्त में उन्हें सर्वोच्च न्यायालय ने जमानत दी थी। सरकार ने डा मृत्युंजय कुमार मिश्रा का निलंबन समाप्त कर उन्हें उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलसचिव पद पर बहाल कर दिया है। साथ ही डा. मिश्रा को निलंबन अवधि का वेतन भुगतान नियमानुसार करने के आदेश भी दिए गए हैं। आयुष शिक्षा सचिव चंद्रेश कुमार ने मंगलवार को इस संबंध में आदेश जारी किया। आदेश में बताया गया कि डा. मिश्रा के खिलाफ 25 जुलाई, 2018 से जारी सतर्कता जांच के क्रम में विभागीय स्तर पर जांच अधिकारी की नियुक्ति और विभागीय अनुशासनिक जांच कराने को शासन ने औचित्यपूर्ण नहीं पाया है। डा. मिश्रा का निलंबन इस प्रतिबंध के साथ समाप्त किया गया है कि सतर्कता विभाग की जांच रिपोर्ट प्रशासनिक विभाग को प्राप्त होने पर गुण दोष के आधार पर कारवाई की जाएगी। मृत्युंजय मिश्रा को 27 अक्टूबर, 2018 को कुलसचिव पद से निलंबित कर आयुष शिक्षा सचिव कार्यालय से संबद्ध किया गया था। तीन दिसंबर, 2018 को मिश्रा को गिरफ्तार कर जिला कारागार में भेजा गया था।

कुलपति प्रो. सुनील जोशी ने शासन के आयुष विभाग को इस निर्णय पर पुनर्विचार करने को लेकर पत्र भेजा है। हालांकि मृत्युंजय मिश्रा का कहना है कि उन्होंने कामकाज शुरू कर दिया है। उधर मिश्रा की बहाली पर राजनीतिक पारा भी गरम हो गया है। वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी इस नियुक्ति के खिलाफ हैं। बताया जा रहा है कि उन्होंने इस मामले में आयुष मंत्री हरक सिंह रावत से भी टेलीफोन पर बात की है। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने मृत्युंजय मिश्रा के निलंबन की बहाली के संबंध में कहा कि वह इस बारे में मुख्यमंत्री धामी से बात करेंगे। उन्होंने कहा कि देखा जाएगा कि आखिर किन परिस्थितियों में सरकार को यह निर्णय लेना पड़ा। वहीं धामी सरकार के कई मंत्री भी मृत्युंजय मिश्रा की आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय में रजिस्टर पद पर हुई नियुक्ति को लेकर बंटे हुए नजर आ रहे हैं।

शंभू नाथ गौतम