श्रीनगर गढ़वाल : राजकीय इंटर कॉलेज सुमाड़ी, जनपद पौडी गढवाल के हिन्दी अध्यापक अखिलेश चन्द्र चमोला द्वारा लिखित पुस्तक “शैक्षिक नवाचार एवम् क्रियात्मक शोध” का अवलोकन जगमोहन सिंह कठैत, वरिष्ठ प्रवक्ता, सेवारत प्रशिक्षण संस्थान चढ़ीगाँव द्वारा किया गया। इस अवसर पर जगमोहन सिंह कठैत ने कहा कि पुस्तक में श्री चमोला ने वर्तमान परिदृश्य में बच्चों के साथ संवाद स्थापित करने का ऑनलाइन शिक्षण जो माध्यम है, तथा उस पर विशद् रूप से चर्चा की है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि समय के साथ प्रत्येक मनुष्य की सोच तथा गतिविधियों में भी परिवर्तन आ जाता है। यह परिवर्तन नई खोज नये अनुसंधान की ओर चलने के लिए हमें प्रेरित करता है। कोविड-19 के चलते मोबाइल ही हमारे संप्रेषण का मुख्य आधार बन गया है। पुस्तक में यह भी स्पष्ट किया गया है कि ऑन लाइन शिक्षण की प्रक्रिया में
अभिभावक भी पठन पाठन की सम्पूर्ण गतिविधि से परिचित हो जाते हैं। उन्हें इस जिम्मेदारी का बोध हो जाता है कि हमारे पाल्य किस तरह से सीख रहे हैं। शिक्षा के क्षेत्र में ऑनलाइन शिक्षण को महत्वपूर्ण क्रान्ति के रूप मे प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। साथ ही आज युवा वर्ग पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण कर रहा है। सही क्या है? गलत क्या है? आदि का निर्णय नहीं ले पा रहा है। फलस्वरूप कुन्ठा का शिकार होकर जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर पा रहा है। इस स्थिति में चमोला ने अपनी पुस्तक में छात्रों के मार्ग दर्शन के लिए महापुरुषों के प्रेरणा दायनी विचारों को समाहित किया है। इस अतुलनीय प्रयास से छात्रों में भारतीय संस्कृति के बीज भी रोपित होंगे। बहुधा शिक्षा को त्रिमुखी प्रक्रिया के रूप में जाना जाता है। इसमें शिक्षक, विद्यार्थी व अभिभावक इन तीनों की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।
श्री चमोला ने अभिभावकों की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी प्रकाश डाला है। स्पष्ट किया है कि केवल सुन्दर गुलाबों की कल्पना करने मात्र से ही सुन्दर गुलाबों की कल्पना नहीं की जा सकती है। उस के लिए आधार भूमि जरूरी है। इसी प्रकार बच्चों के सन्दर्भ में अभिभावकों की भूमिका आधार शिला की भाँति है। अभिभावकों का अपने पाल्यो के प्रति जो कर्तव्य हैं उन्हें समझना बहुत ही जरूरी है। इस विषय पर भी अभिभावकों को पुस्तक में महत्वपूर्ण सुझाव दिए गए हैं। इस स्थिति में यह पुस्तक छात्रों के साथ ही अभिभावकों के लिए भी उपयोगी साबित होगी। श्री चमोला ने पुस्तक में इस विषय को भी उजागर किया है कि हर छात्र अपने आप में अद्भुत प्रतिभा से सम्पन्न रहता है। बस आवश्यकता उसको सही वातारण देने की है। साथ ही छात्रों में उत्साह का संचार भरने के लिए उनके मार्ग दर्शन के लिए महत्वपूर्ण सुझाव भी दिये गये हैं। जो बडे सहज और पठनीय हैं। निश्चित ही उन सुझावों का अध्ययन अध्ययन करने से छात्र अपने लक्ष्य को सुगमता से प्राप्त कर सकते हैं। यह पुस्तक छात्रों के लिए वरदान साबित होगी।
इस बात को भी हम नकार नहीं सकते हैं कि शिक्षक को केवल अपनी पाठ्य पुस्तक तथा पाठ्य क्रम तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। एक आदर्श शिक्षक के अन्दर निरन्तर नये अनुसंधान करने की प्रवृत्ति भी होनी चाहिये। भावी पीढ़ी ही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है। यही राष्ट्र की धरोहर है। इस सन्दर्भ में यह देखना जरूरी है कि ये क्यों पिछड रहे हैं? इनका गुणवत्ता युक्त परिणाम क्यों नहीं आ रहा है? वे स॓स्कार शून्य क्यों हो रहे हैं? इस सन्दर्भ में हिन्दी अध्यापक श्री चमोला का प्रयास सराहनीय है। पुस्तक में सकारात्मक दृष्टिकोण की बात कही गई है। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि चमोला जी ने यह अभिनव प्रयास अपने ही बिद्यालय के छात्रों पर किया है। जिसमें छात्रों के अधिगम स्तर में अपेक्षित परिवर्तन देखने को मिला है। जिसकी अनुशंसा मदन सिंह रावत मुख्य शिक्षा अधिकारी जनपद पौडी गढवाल ने भी की है।