चिपको आंदोलन के प्रणेता, पदम विभूषण व प्रख्यात पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का आज एम्स ऋषिकेश अस्पताल में निधन हो गया। 94 वर्षीय बहुगुणा को बीते 8 मई को कोरोना संक्रमित होने के कारण उन्हें बीती आठ मई को एम्स ऋषिकेश में भर्ती किया गया था। शुक्रवार की दोपहर करीब 12 बजे पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा ने अंतिम सांस ली। उनके पुत्र राजीव नयन बहुगुणा एम्स में ही मौजूद है। पर्यावरणविद बहुगुणा का अंतिम संस्कार ऋषिकेश गंगा तट पर शुक्रवार को ही पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।
प्रसिद्ध पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म टिहरी के पास मरोड़ा गांव में नौ जनवरी 1927 को हुआ। उनके पिता अंबादत्त बहुगुणा टिहरी रियासत में वन अधिकारी थे। वह तब महज 13 साल के थे, जब टिहरी में श्रीदेव सुमन के संपर्क में आए। उस अवधि में श्रीदेव सुमन टिहरी रियासत के खिलाफ आंदोलन कर रहे थे। महज 13 साल की उम्र में सुंदरलाल बहुगुणा के मन में कुछ अलग करने की ऐसी धुन सवार हुई कि वह अमर शहीद श्रीदेव सुमन के संपर्क में आ गए। इसके बाद उन्होंने टिहरी रियासत के खिलाफ बगावत से लेकर शराबबंदी, ‘चिपको’ आंदोलन, टिहरी बांध विरोधी आंदोलन सहित कई अन्य आंदोलनों की अगुआई की और पर्यावरण संरक्षण के लिए बेमिसाल कार्य किया।
बहुगुणा को मिले सम्मान
- 1981 में पद्मश्री
- 1986 में जमनालाल बजाज पुरस्कार
- 1987 में राइट लाइवलीहुड अवार्ड
- 1989 में आइआइटी रुड़की से डीएससी की मानद उपाधि
- 2009 में पद्मविभूषण
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने जताया गहरा दुःख
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने विश्व प्रसिद्ध पर्यावरणविद् और पद्मविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि चिपको आंदोलन को जन जन का आंदोलन बनाने वाले सुंदरलाल बहुगुणा जी का निधन न केवल उत्तराखण्ड और भारतवर्ष बल्कि समस्त विश्व के लिये अपूरणीय क्षति है। सामाजिक सराकारों व पर्यावरण के क्षेत्र में आई इस रिक्तता को कभी नहीं भरा जा सकेगा। ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें, और शोकाकुल परिजनों को धैर्य व दुख सहने की शक्ति प्रदान करें।