एक प्रयोगधर्मी और नवाचारी किसान के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले किसान नरेंद्र सिंह मेहरा ने एक और नवाचार किया है। इस बार उन्होंने गोबर, राख और गोमूत्र से एक ऐसे बीज बम का नवाचार किया है जो प्राकृतिक खेती के साथ ही किसानों के लिए हर दृष्टि से लाभप्रद है। जो प्राकृतिक खेती के साथ ही जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण और उत्पादन लागत कम करने का एक नायाब तरीका है।

किसान मेहरा ने बताया कि वर्तमान समय में खेतिहर मजदूरों की कमी होने के कारण खेती करना बहुत कठिन होता जा रहा है। इस समस्या के समाधान के लिए उन्होंने इसका विकल्प बीज बम के रूप में खोजा।

बीज बम बनाने की विधि एवं लाभ

बीज बम बनाने के लिए 10 किलोग्राम गाय का गोबर 2 किलो लकड़ी की राख और 2 लीटर गोमूत्र की आवश्यकता होती है। इन तीनों चीजों को मिलाकर बहुत अच्छी तरह गूंथ लिया जाता है और उसके पश्चात अखरोट के दानों के बराबर आकार की गोलियां बना ली जाती है तथा उनमें एक छिद्र भी बना लिया जाता है। उसके पश्चात उन्हें धूप में इतना सुखा लिया जाता है कि उनकी पूरी नामी खत्म हो जाए। तत्पश्चात उन्हें सुरक्षित स्थान पर रख लिया जाता है। यह कार्य अकेला व्यक्ति जब भी उसे समय मिले कर सकता है। इन गोलियों में राख की उपलब्धता होने की वजह से कैल्शियम, पोटेशियम, मैग्नीशियम, सल्फर और फास्फोरस पर्याप्त मात्रा में मिल जाती है। जो मृदा का पीएच मान बढ़ाने में सहायक होता है।

इन बीज बम की गोलियों में जल धारण क्षमता अत्यधिक होती है कम से कम 15 से 20 दिनों तक एक पौधे को पर्याप्त मात्रा में नमी देने के लिए इसमें जल संग्रह हो जाता है। यदि मई माह में हमें धान के बीजों का रोपण करना हो तो हम सूखी जमीन पर ही इन गोलियों के छिद्रों में बीज को भरकर 2% ट्राईकोडरमा के घोल में 24 घंटे तक के लिए भिगो देते हैं। एक कुशल मजदूर श्री विधि से 2 दिन में एक एकड़ खेत में धान का रोपण कर सकता है। इस प्रकार हम जल और मानव श्रम की बचत कर अपनी लागत को कम कर सकते हैं। इस विधि से जहां एक ओर बीज दर में कमी आती है वहीं उत्पादन अधिक होता है।

पूर्ण रूप से सूखे हुए इन बीज बम के अंदर बीजों को सुरक्षित और संरक्षित भी रखा जा सकता है। यह पद्धति वर्षा आधारित पर्वतीय खेती के लिए वरदान साबित हो सकती है। इस पद्धति से मोटे अनाजों की खेती कर अधिक लाभ कमाए जा सकता है। किसान द्वारा  इस पद्धति से प्रदर्शन स्वरूप धान में प्रयोग किया गया है जिसके सकारात्मक परिणाम दृष्टिगत हो रहे हैं।

गर्मियों में लगाई जाने वाली फसलों में अधिक कारगर है यह विधि

यदि देखा जाए तो गर्मियों में बोई जाने वाली फसलों के लिए यह विधि अधिक कारगर है धान के लिए यह विधि सर्वोत्तम है। यदि गेहूं में इसका प्रयोग किया जाए तो दो सिंचाई ही गेहूं के लिए पर्याप्त होगी।

जनपद नैनीताल के मुख्य कृषि अधिकारी डॉ. बी के एस यादव इस नवाचार से बहुत प्रभावित हैं। उन्होंने फोन पर किसान को बधाई देते हुए कहा कि वह इस पद्धति को किसानों के बीच प्रथम पंक्ति प्रदर्शन के रूप में अपनाएंगे।

यदि एक वर्ग मीटर भूमि पर सौ बीज बमों में सौ अनाज के दानों को बोया जाए तो प्रति एकड़ उत्पादन का अंतर परंपरागत तरीके से की  गई खेती से कम से कम 30% अधिक पाया जाएगा।