ghughuti

उत्तराखण्ड के पारम्परिक लोकउत्सवों में मकर संक्राति के दिन मनाये जाने वाले “उत्तरैणी” और “मकरैणी” का विशेष महत्त्व है। एक तरफ जहाँ गढ़वाल क्षेत्र में मकर संक्राति को “मकरैणी” के रूप में मानते हैं वहीँ कुमाऊं क्षेत्र में मकर संक्राति को “उत्तरैणी”  या घुघतिया त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। मकर संक्राति से सूर्य के उत्तरायण की ओर जाने की वजह से इस दिन को ‘उत्तरैणी’  के नाम से मनाया जाता है। कुमाऊं में मकर संक्रांति के पहले दिन लोग रातभर जागरण करते हैं। रात्रि को महिलायें व पुरुष अलग-अलग ग्रुप में इकट्ठा होकर तरह-तरह के पकवान बनाते हैं और सभी मिलजुल कर खाते हैं। मकर संक्राति के दिन सुबह जल्दी उठकर आस पास की नदी या पवित्र धारों में ठंडे पानी से स्नान कर भगवान विष्णु की आराधना करते हैं। इसके पश्चात बड़ों के चरण स्पर्शकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। बड़े-बुजुर्ग आशीर्वाद के साथ साथ गुड़ या मिठाई खाने को देते हैं। इस विशेष अवसर पर बागेश्वर स्थित सरयू नदी में स्नान करने का महत्व प्रयाग की त्रिवेणी में स्नान करने जितना महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इसी उपलक्ष्य में बागेश्वर में विश्व प्रसिद्द उतरैणी मेला भी लगता है।

आटे और गुड़ की घुघुति’ बनाकर काले कौवों को खिलाई जाती है

काले कौवा काले घुघुति माला खाले।
लै कौवा पूरी, मैं कैं दिजा सुनक छूरी।।
लै कौवा बौड़, मैं कैं दिजा सुनक घ्वड़।।ghughuti-festival

मकरसंक्रांति की रात को कुमाऊनी समाज आटे में गुड़ या चीनी मिलाकर ‘घुघुति’ व्यंजन बनाते हैं। यह अपनी तरह की एक अनोखी परंपरा है। जो केवल इसी अवसर पर बनाया जाता है। सबसे पहले पानी गरम कर उसमें गुड़ या चीनी मिलाकर कर चाशनी बना ली जाती है। फिर आटे में मिलाकर कर गूंथ लिया जाता है। और उसके बाद इस आटे से हिंदी के ४ की तरह की आकृति की ‘घुघुति’ बनाई जाती हैं। जिसे तेल या घी में पूरियों की तरह तला जाता है। जिसे दूसरे दिन सुबह माला में पिरो कर सभी बच्चों के गले में डाल दिया जाता है। फिर कौवों को बुला-बुला कर बच्चे उन्हें ‘घुघुति’ खिलते हैं और अपने लिए उपहार मांगते हैं। कौवों को खिलाने के बाद ‘घुघुतियों’ को सभी मित्रगणों व रिश्तेदारों को बांटा जाता है।

इसके पीछे कई पौराणिक कहावते हैं। जिसमें एक यह भी है कि जब कुमाऊं में चंद्रवंश का राज था उस समय के राजा द्वारा कुमाऊं के बागेश्वर स्थित बागनाथ मंदिर में पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ किया गया था जिसके परिणामस्वरूप उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। जिसको राजा की पत्नी प्यार से ‘घुघुति’ नाम से पुकारती थी। प्राय: कुमाऊं के लोग कबूतर की तरह दिखने वाले पक्षी को ‘घुघुति’ नाम से बोला करते हैं। रानी ने ‘घुघुति’ को मोतियों की माला पहना रखी थी जो ‘घुघुति’ को काफी प्रिय थी। जब कभी वह रोता था तो मां उसे चुप कराने के लिए उक्त माला कौवों को देने की बात कर डराती थी जिससे ‘घुघुति’ चुप हो जाया करता था। राजसी षड़यंत्र में कौवों द्वारा ‘घुघुति’ की सहायता करने से संबंधित यह त्योहार आज कुमाऊं का प्रमुख त्यौहार है।

माया शाही, ग्रेटर नोएडा

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