garhwali-film-pitrkuda

Garhwali Film Pithrikuda:पितरों के प्रति देवभूमि उत्तराखंड की अनूठी लिंगवास परम्परा पर बनी गढ़वाली फीचर फिल्म पितृकुड़ा एक मार्च से इंदिरापुरम (गाजियाबाद) के जयपुरिया मॉल (RR  सिनेमा) में प्रदर्शित होने जा रही है। पर्वतीय बिगुल फिल्मस् के बैनर तले बनी गढ़वाली फिल्म पितृकुड़ा बीते 2 फरवरी को देहरादून के रिटज सिनेमा हॉल में रिलीज की गई थी। यहाँ फिल्म को अपार सफलता मिलने के बाद अब इस फिल्म को दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले प्रवासी उत्तराखंडियों के लिए एक मार्च से इंदिरापुरम (गाजियाबाद) के जयपुरिया मॉल (RR  सिनेमा) में प्रदशित किया जा रहा है।

पितृकुड़ा एक पारिवारिक फिल्म है जो भावानात्मक रिश्तों पर बनी है। फिल्म में पितरों की खुशी एवं नाराजगी के असर को दर्शाया गया है। सिल्वर स्क्रीन पर पहली बार लोगों को पितृकुड़ा संस्कार का चित्रण दिखयी देगा। फिल्म में जर्बदस्त एक्शन थ्रिलर, रोमांच, हास्य और मधुर गीत संगीत है। फिल्म की शूटिंग मसूरी, टिहरी, देहरादून, नैनीताल, चोपता आदि रमणीक स्थलों पर हुई है।

फिल्म के निर्देशक प्रदीप भण्डारी का कहना है कि यह फिल्म प्रत्येक उम्र के दर्शक को मंत्रमुग्ध करेगी। फिल्म पहाड़ की लोक परंपराओं को दर्शाती है। इससे नई पीढ़ी को जरूर देखना चाहिए ताकि वे अपने पित्रों का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें। फिल्म में पलायन के दर्द को भी दिखाया गया है। स्थ ही पहाड़ों में नेपालियों की भूमिका को भी विशेष स्थान दिया गया है। यह फिल्म निश्चित की लोगों के दिलों को छुएगी।

क्या है पितृकुड़ा (लिंगवास) परम्परा

देवभूमि उत्तराखण्ड की अपनी अनेक दुलर्भ परम्पराएं और संस्कार हैं. जिसके लिए वह दुनिया में एक विशिष्ट स्थान रखती है। इन्हीं में से एक अहम परम्परा है अपने परिवार के दिवंगत परिजनों का ‘पितृकुड़ा’ (पितरों का घर) में लिंग स्थापना संस्कार, जिसे लिंगवास भी कहा जाता है। ‘पितृकुड़ा’ अर्थात पत्थरों से बना एक छोटा सा घरनुमा स्थल। ‘पितृकुड़ा’ संस्कार विशेष रूप से उत्तराखण्ड के गढ़वाल क्षेत्र में निभाया जाता है।

 देवी देवताओं की भांति पूजा जाता है

केदारखण्ड में यह लोक मान्यता है कि यदि मृतक व्यक्ति को उचित समय पर विधि विधान से ‘पितृकुड़ा’ में स्थापित नहीं किया गया तो उसकी आत्मा को मनुष्य योनि से मुक्ति नहीं मिलती है और वह भटकती रहती है तथा नाराज होने पर पितृदोष भी करती है। लोक मान्यता है कि पितृकुड़ा में स्थापित होने के बाद उनके पूर्वज पितर देवता के रूप में परिवार जनों की रक्षा करते हैं और घर में सुख शान्ति और वैभव बढ़ाते हैं। फिल्म के निर्देशक प्रदीप भण्डारी का कहना है कि पहाड़ में पितरों को वर्तमान दौर में अपने मूल से दूर होते पहाड़ वासियों एवं नई पीढ़ी के समक्ष पितृकुड़ा की विशेषता, महत्वता और उसकी दिव्यता को परभाषित एवं प्रदर्शित करना अत्यन्त आवश्यक हो गया है। इसी उद्देश्य से उन्होंने एक कहानी के माध्यम से पितृकुड़ा के महत्व को बताया है, जो काफी लोकप्रिय हो गयी है। फिल्म पितृकुड़ा 1 मार्च से जयपुरिया सनराईज माल (RR सिनेमा) इन्द्रापुरम में लग रही है। जिसका शो टाइम है 3 बजे से है। हर रोज केवल एक ही शो चलेगा. टिकट की बात करें तो फिल्म का टिकट रुपये 150/- से 200 /- तक रखा गया है।

फिल्म के मुख्य कलाकारों में हैं राजेश जोशी, पदम गुसांई, प्रदीप भण्डारी, शुभ चन्द्रा, शिवानी भण्डारी, सुषमा व्यास, कोमल नेगी राणा, आयुषी जुयाल, बीनीता नेगी, अनामिका राज, गोकुल पंवार, गम्भीर जयाड़ा, बृजेश भट्ट, रवि नेगी, दीपक रावत, शिव कुमार, आरपी बडोनी आदि हैं। फिल्म के गीतों को तीन प्रमुख संगीतकारों संजय कुमोला, अमित वी. कपूर तथा सुमित गुसांई ने संगीत दिया है। जबकि गीतों को जितेन्द्र पंवार, पदम गुसांई, संजय कुमोला, प्रीती काला, प्रेरणा भण्डारी नेगी, रवि गुसांई और राजलक्ष्मी ने अपने स्वरों से सजाया है।