भारतीय संस्कृति की मूल है गौ माता, जाने विशेषतायें

हमारे प्राचीन पौराणिक ग्रन्थों में गाय यानी गौ माता को भारतीय संस्कृति का प्रतीक माना गया है। गाय को कपिला, पदमा, गौरी, धेनु, भद्रा, सुरभी, हिन्दुमाता आदि अनेक नामों से जाना जाता है। गाय सदियों से भारतवर्ष में पूजनीय रही है। गौ पालन से ही इस देश के निवासियों का जीवन व्यतीत होता था। इसी कारण गौ वंश संरक्षण ही जीवन का लक्ष्य था। गौ वंश का संवर्धन करना प्रत्येक भारतीय अपने जीवन का कर्तव्य समझता था। भारतीय संस्कृति के मूल रूप में गौ माता रही है। इसके बिना भारतीय तथा भारतीयता का कोई अर्थ नहीं  रह जाता है। ऋग्वेद (1/54/6) में इस तरह का वर्णन देखने को मिलता है. गौ भक्त गण, अश्विनी कुमार से प्रार्थना करते हैं कि हे अश्विनी कुमार हम आपके उस गौलोक रूप निवास-स्थान में जाना चाहते हैं। जहाँ सींग वाली, सर्वत्र विचरण करने वाली गौयें निवास करती हैं। वहीं पर सर्वव्यापक विष्णु भगवान का परम पद वैकुण्ठ प्रकाशित हो रहा है। हिन्दू धर्म में गाय को गौमाता कहा गया है। पुराणों में धर्म को भी गाय कहा गया है। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं गायों की सेवा किया करते थे। कहा जाता है कि ब्रह्मा जी ने जब भी सृष्टि की रचना की, तो सर्वप्रथम पृथ्वी पर गौमाता को ही भेजा। सभी पशुओं में गाय ही इस तरह का पशु है कि जिसके मुंह से माँ शब्द का उच्चारण होता है। इसी कारण कहा जाता है कि माँ शब्द की उत्पत्ति गौ माता के ही द्वारा ही हुई है। वाल्मीकि रामायण से लेकर महाभारत श्रीमद्भागवत गीता पुराण आदि ग्रन्थों से ज्ञात होता है कि बडे से बडे राजा महाराजा लाखों की संख्या में गौ वंश का पालन करते थे। लाखों गायों का एक साथ दान किया करते थे। समाज में बेहतर तथा उत्कृष्ट कार्य करने वाले को गाय दी जाती थी। भगवान राम ने दस सहस्त्र करोड़ गायें विद्वानों को विधिपूर्वक दान की थी। अयोध्या कांड के 32 सर्ग में प्रसंग आता है कि एक बार भगवान राम के पास त्रिजट नामक ब्राह्मण देवता आये। राम चन्द्र जी ने कहा आप अपनी छडी को जितनी दूर तक फेंक सकेंगे, वहां तक की सारी गाय आपको मिल जायेगी। ब्राह्मण ने पूरी ताकत के साथ छडी को फेंका। छडी हजारों गायों के गौष्ट में जाकर गिरी। भगवान श्री राम ने त्रिजट का सम्मान करते हुये वहां तक की सारी गायें उनके आश्रम में पहुंचा दी। गायों की प्राप्ति पर त्रिजट ब्राह्मण ने अपनी गौशाला में जाकर बडे ही श्रद्धा पूर्वक प्रार्थना करने लगे हे प्रभो/गायों ने हमारे यहाँ आकर  हमारा कल्याण किया है। वे हमारी गौशाला में सुख से बैठे और उसे सुंदर शब्दों से गुंजा दें। ये अनेकों रंग की गायें अनेक प्रकार के बछडे बछडियों को जने और परमात्मा के यजन के लिए ऊषा काल से पहले दूध देने वाली हों।

श्रीमद भागवत में भगवान श्री कृष्ण की गौ भक्ति, गाय सेवा, गाय दान का बडा ही रोचक प्रसंग आता है। योगेश्वर श्री कृष्ण भगवान प्रतिदिन संध्या तर्पण और गुरु पूजन करने के पश्चात पहले पहले व्याही हुई दुधारू बछडो वाली सीधी शान्त वस्त्रालंकारों से सुसज्जित तेरह हजार चौरासी गायों का दान किया करते थे। इससे सहज ही आकलन किया जा सकता है कि गाय के प्रति कितनी श्रद्धा थी। गाय को कितने संरक्षण के साथ सम्मान प्राप्त था? यह स्वस्थ परम्परा अनादिकाल से ही इस पुण्य भूमि में चली आई है।

महाभारत के विराट पर्व में प्रसंग आता है कि महाराज युधिष्ठिर कितने समर्पित एवं प्रसिद्ध गौ सेवी थे। दुर्योधन ने पाण्डवों के अज्ञात वास के विषय में ग॔गा पुत्र भीष्म से प्रश्न करते हुए कहा कि पितामह पान्डव कहाँ निवास कर रहे होगे? पितामह ने कहा कि इसका बडा सरल सा उत्तर है। जहाँ भी पान्डव रह रहें होगे। वहाँ निश्चित ही गौ वंश की संख्या में वृद्धि हुई होगी। वहाँ धी दूध की किसी तरह से कमी नहीं होगी। महाराज विराट भी गौ पालन तथा गौ संरक्षण के लिए बडे प्रसिद्ध थे। उनके यहाँ लाखों गायें थी। कौंरव इस बात को जानते थे। उन्हें पता चला कि गायें पहले से अधिक हैं। उन्होंने राजा विराट की गायों का हरण कर लिया। गायों की रक्षा के लिए महाराज विराट ने स्वयं युद्ध किया। परन्तु असफल रहे। अन्त में बृहन्नला बनकर विराट की सेवा कर रहे अर्जुन सामने आये और विराट को विजय श्री दिलाई।

शिव मन्दिर में दर्शन करते समय रास्ते में काले रंग की गाय दिखाई देने पर काल सर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है। गलत सपना होने पर उसे गाय के कान पर कहने से सपने का कुप्रभाव समाप्त हो जाता है। गाय के खुरों की धूल को माथे पर लगाने से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है। गाय की परिक्रमा करने से सम्पूर्ण तीर्थ के महात्म्य का फल मिल जाता है। गाय का पूजन करने से सम्पूर्ण मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। घर में ऐश्वर्य सुख समृद्धि के लिए गाय का होना बहुत ही शुभकारी माना जाता है। यदि किसी की संतान नहीं हो रही है तो गाय को चारा खिलाने से संतान की प्राप्ति हो जाती है।

भविष्य पुराण में कहा गया है कि गाय के सींगों में तीनों लोकों के सभी देवता निवास करते हैं। सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा और पालनकर्ता विष्णु गाय के सींगों के निचले हिस्से में विराजमान हैं तो गाय के मध्य भाग में शिव शंकर विराजते हैं। गाय के ललाट में गौरा मां तथा नासिका के भाग में भगवान कार्तिकेय निवास करते हैं। गाय जहां भी बैठती हैं, उसके आसपास के सारे पाप समाप्त हो जाते हैं। कहा जाता है कि गाय अपनी गहरी सांस के द्वारा पापों का क्षय कर देती है। गाय के गौबर (उपलो) से यज्ञ करने पर आस पास का वातावरण शुद्ध हो जाता है। गाय के गौ मुत्र में रोगाणुओं से लड़ने की क्षमता निहित रहती है। इससे अनेक प्रकार की दवाईया बनाई जाती हैं।

इस तरह से शास्त्र सिद्ध करते हैं कि प्राचीन भारत गायों से भरा हुआ था। तब गायों की गिनती कर पाना संभव नहीं था। जन सामान्य तो दूर स्वयं राजा, राजकुमार, दरबारी, गुरु, आचार्य सभी गायों का संरक्षण करनें में अपना सौभाग्य समझते थे। इन तथ्यों से स्पष्ट होता है कि  भारत में गाय से बढकर किसी अन्य की प्रतिष्ठा नहीं थी।

लेखक: अखिलेश चन्द्र चमोला, स्वर्ण पदक विजेता, राज्यपाल पुरस्कार तथा अनेकों राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित।